हिन्दु धर्म में माता लक्ष्मी को धन, वैभव, संपत्ति, यश और कीर्ति?

हिन्दु धर्म में माता लक्ष्मी को धन, वैभव, संपत्ति, यश और कीर्ति की देवी माना जाता है मान्यता है की माँ लक्ष्मी की कृपा के बिना जीवन में समृद्धि और सम्पन्नता संभव नहीं है मां लक्ष्मी अपने भक्तों की अनेक रूप में मनोकामनाएं पूरी करती है परन्तु धर्म ग्रंथो एवं पुराणों में माँ लक्ष्मी के आठ स्वरूपों का वर्णन है, जिन्हे अष्ट लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। मां भक्तों के सभी दुःख दूर करती है। आज मां लक्ष्मी का प्रिय दिन शुक्रवार है आज के दिन अष्ट लक्ष्मी के सभी स्वरूपों की पूजा अर्चना करने में मां जल्द ही प्रसन्न होगी।

आदि लक्ष्मी-
श्रीमद भगवत पुराण में आदि लक्ष्मी को मां लक्ष्मी का पहला स्वरूप माना जाता है। इन्हें मूल लक्ष्मी या महालक्ष्मी भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि आदि लक्ष्मी मां ने ही श्रृष्टि की उत्पत्ति की हैं एवं भगवान विष्णु के साथ जगत का संचालन करती है। आदि लक्ष्मी माता की साधना करने से उपासकों को जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सुमन सुवन्दित सुंदरी माध्वि चन्द्र सहोदरि हेममये। मुनिगण मण्डित मोक्ष प्रदायिनि। मंजुल भषिणि वेदानुते। कमल सुवासिनी देवसुपूजित सद्गुण वर्षिणी संतनुते। जय जय हे! मधुसूदन कामिनि मां परिपालय ह्मद्यमये।।1।।

धन लक्ष्मी
माता लक्ष्मी का दूसरा ना म धन लक्ष्मी है इनके हाथ धन लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने से आर्थिक परेशानियां दूर होती है साथ ही कर्ज से मुक्ति मिलती है। पुराणें के अनुसार, मां लक्ष्मी ने ये रूप भगवान विष्णु को कुवेर क कर्ज से मुक्ति दिलाने के लिया था
धिमि धिमि धिन्दिभि धिन्दिभि धिन्दिभि! दुन्दुभि नाद सुपूर्ण मये! गम गम कुंकुम कुंकुम शंख निनाद सुवादमते।। प्रणत पुराण सुविद सुरूपिणि वैदिक मार्ग प्रकाशरति। जय जय हे! मधुसूदन कामिनि देहि धनं धन लक्ष्मयुते।।2।।

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धान्य लक्ष्मी
धान्य लक्ष्मी माता लक्ष्मी का तीसरा रूप है। यह संसार में धान्य अर्थात अन्न या अनाज के रूप में वास करती है धान्य लक्ष्मी को मां अन्नपूर्णा का ही एक रूप माना जाता है इनको प्रसन्न करने के लिए कभी भी अनाज या खाने का अनादर नहीं करना चाहिए।
अयिकलि! कल्मष नाशिनि! कामिनि! वैदिक रूपिणि वेदमये! समुद्र समुद्रभव मंगल रूपिणि! मंत्र निवासिनि मंत्रयुते सुशुभ प्रदायिनि अम्बुजवासिनि! देव गणाश्रित पद्मयते। जय जय हे मधुसूदन कामिनी देहि धरा धन धान्यमये ।।3।।

गज लक्ष्मी
माता गज लक्ष्मी, लक्ष्मी की चैथी रूपरूप मानी जाती है। माता गज लक्ष्मी को कृषि और उर्वरता की देवी के रूप में पूजा जाता है। इनकी आराधना करने से संतान की प्राप्ति होती है राजा को समृद्धि प्रदान करने के कारण इन्हे राज लक्ष्मी की कहा जाता है।
जय जय दुर्गति नाशिनि! भामिनि! सर्वफलप्रदा शास्त्रमये। रथगज वीति पदाति समावृत। भूजन मण्डित लोकनुते।। हरिहर ब्रह्मा सुपूजित सेवित, ताप निवारिणि पंथयुते। जय जय हे मधुसूदन कामिनि! हे गजगामिनि! नागमये।।4।।

संतान लक्ष्मी
संतान लक्ष्मी, माता लक्ष्मी की पांचवी रूपरूप मानी जाती है। इन्हें स्कंदमाता के स्वरूप में भी जाना जाता है। इनके चार हाथ है। तथा अपनी गोद में कुमार स्कंद को बालक रूप में लेकर बैठी हुई हंै। ऐसी मान्यता है कि संतान लक्ष्मी भक्तों की रक्षा अपनी संतान के रूप में करती है।
अयि! खववाहिनि मोहनि! चक्रिणि! राग विवर्धिनि गानमये। गुणगण वर्रिधि! लोका हितैषिणि! स्वर गण भूषित ज्ञानयुते।। सकल सुरासुरा देवमुनीश्वर! मानव वन्दि पदममये। जय जय हे! मधुसूदन कामिनि! वंश विवर्धय पुत्रप्रदे। ।5।।

वीर लक्ष्मी
माता लक्ष्मी की छठवी रूवरूप वीर लक्ष्मी माता है वीर लक्ष्मी मां युद्ध में विजय दिलाती है। अपने हाथों तलवार और ढ़ाला जैसे अस्त्र-शस्त्र धारण करती है।
जय कमलासिनि! सत्गति दायिनि! ज्ञान विकासिनि! ज्ञानमये। अनुदिनमर्चित कुंकुम धूसर, भूषि वसित वाद्ययुते कनकधरा स्तुति वैभव वन्दित, शंकर देविक मान्यमये। जय जय है! मधुसूदन कामिनि देहि जयं मम जेयप्रदे।।6।।

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जय लक्ष्मी –
जय लक्ष्मी माता को सावों स्वरूप माना जाता है। माता के इस स्वरूप् की साधना से भक्तों की जीवन के हर क्षेत्र में जय-विजय की प्राप्ति होती है। जय लक्ष्मी माता यश, कीर्ति तथा सम्मान प्रदान करती है।
विधा लक्ष्मीः-
विधा लक्ष्मी माता की आठवी स्वरूप है ये ज्ञान, कला तथा कौशल प्रदान करती है यहा माता ग्रह्माचारिणी देवी की तरह दिखती है। इनकी आराधना करने से शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
प्रणत सुरेश्वर भारति भार्गवि! शोक विनासिनि रत्नमये। मणिमाय भूषित कर्ण विभूषण! शांति समाव्रत हास्ममुखेः नवनिधि दायिनि कल्मष हारिणि। कामित दे फल हास्ययुते! जय जय हे! मधुसूदन कामिनि! पण्डित ज्ञान प्रदे।।7।।