31 अक्टूबर 2024 दीपावली

31 अक्टूबर 2024 दीपावली

दीपावली जिसे आमतौर पर दिवाली के नाम से जाना जाता है, भारत में मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है। यह त्योहार हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है जो पूरे चार दिनों तक चलता है। यह पर्व अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक है। यह त्योहार न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में भारतीय समुदायों द्वारा उल्लास के साथ मनाया जाता है। दीपावली का त्योहार भारत में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृृतिक मान्यताओं के अनुसार मनाया जाता है। इसे केवल एक धार्मिक त्योहार के रूप में नहीं, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृृतिक उत्सव के रूप में भी देखा जाता है। इस दिन लोग अपने घरों को दीपों, रंगोली और सजावटी सामान से सजाते हैं। दीपावली का पर्व न केवल खुशी और आनंद का प्रतीक है, बल्कि यह हमें अपने भीतर की रोशनी को पहचानने और अंधकार को दूर करने की प्रेरणा भी देता है।

Highlight

दीपावली क्यों मनाई जाती है उसके पीछे की पौराणिक कथाः-

  • दीपावली का त्योहार कई कारणों से मनाया जाता है, जिसमें प्रमुख है-

14 वर्ष बाद अयोध्या से लौटे थे प्रभु श्रीरामः

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दीपावली की पौराणिक कथा भगवान राम, सीता और लक्ष्मण जी की है। जब भगवान राम नें रावण का वध किया और सीता को मुक्त किया, तो उन्होंने 14 वर्षों का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटने का निर्णय लिया। उस दिन सभी अयोध्यावासियों नें उनकी वापसी के उपलक्ष्य में दीप जलाए और नगर को रोशन किया। इस दिन दीप जलाना प्रेम और सम्मान का प्रतीक था, जो आज भी दीपावली के दिन किया जाता है।

भगवान श्रीकृृष्ण नंे किया था नरकासुर का वधः

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धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, नरकासुर भू देवी और वराह का पुत्र था। उसकी माता नंे भगवान विष्णु जी से यह वरदान मांगा था कि उनका बेटा शक्तिशाली और दीर्घायु हो। इसके साथ ही, नरकासुर को यह वरदान भी मिला कि जिस दिन उसकी मृत्यु होगी, उस दिन को एक त्योहार के रूप में मनाया जाएगा।
एक बार नरकासुर नंे लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया, जिससे सभी देवी-देवता अत्यंत दुखी हो गए। एक दिन, वे विष्णुजी के पास सहायता के लिए पहुंचे। भगवान विष्णु नंे उन्हें आश्वासन दिया कि वह इस समस्या का समाधान करेंगे। जब द्वापर युग में भगवान कृृष्ण का अवतार हुआ, तब श्रीकृृष्ण नें नरकासुर का वध किया और 16,000 महिलाओं को उसकी कैद से मुक्त कराया। इसी वरदान के कारण नरकासुर की मृत्यु के दिन छोटी दिवाली मनाने की परंपरा शुरू हुई।

समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी का अवतरण

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दिवाली के दिन धन-धान्य की देवी मां लक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व होता है और इसका संबंध समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से है। इस कथा के अनुसार, देवता और असुर मिलकर क्षीर सागर का मंथन कर रहे थे। इसी मंथन के दौरान, कार्तिक अमावस्या के दिन माता लक्ष्मी कमल के फूल पर विराजमान होकर प्रकट हुईं। उन्होंनें भगवान विष्णु को अपने पति के रूप में चुना और संसार को धन, समृद्धि और ऐश्वर्य का आशीर्वाद दिया। इसीलिए, इस दिन लक्ष्मी पूजा का आयोजन किया जाता है।
लक्ष्मी पूजाः दीपावली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन लोग घर में सुख, समृद्धि और धन की देवी माता लक्ष्मी का आह्वान करते हैं।
गुरु हरगोबिंद जी की रिहाईः सिख धर्म में, यह दिन गुरु हरगोबिंद जी की कारागार से रिहाई के रूप में भी मनाया जाता है।

दीपावली मनाए जाने का महत्त्वः

दीपावली का महत्त्व अनेक दृृष्टियों से है-

आर्थिक समृद्धिः इस दिन विशेष रूप से व्यवसायी वर्ग अपने पुराने खाते या बही खाते को निपटाते हैं और नए खाते या बही खाते की शुरुआत करते हैं। इसे धनतेरस पर विशेष महत्व दिया जाता है।
पारिवारिक एकताः दीपावली का पर्व परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ लाता है। जिससे सभी लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं, जिससे पारिवारिक बंधन मजबूत होते हैं।
सांस्कृृतिक परंपराएँः यह त्योहार विभिन्न सांस्कृृतिक परंपराओं को दर्शाता है। रंगोली बनाना, मिठाइयाँ बनाना और नए कपड़े पहनना इस त्योहार का अभिन्न हिस्सा है।
धार्मिक आस्थाः दीपावली का पर्व भगवान राम, कृृष्ण और माता लक्ष्मी की पूजा का प्रतीक है। यह हमें धार्मिक आस्था और भक्ति की ओर प्रेरित करता है।
धार्मिक प्रचार-
दीपावली का त्योहार विभिन्न धर्मों में भी महत्वपूर्ण है। जैन धर्म में, यह दिन भगवान महावीर की निर्वाण तिथि के रूप में मनाया जाता है। सिख धर्म में, यह दिन गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। बौद्ध धर्म में भी यह दिन विशेष रूप से मनाया जाता है।

ऐतिहासिक महत्त्वः-

दीपावली का पर्व भारतीय इतिहास में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस दिन कई ऐतिहासिक घटनाएँ घटी हैं, जैसे भगवान राम का अयोध्या लौटना एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसे दीपावली के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्री कृृष्ण नंे नरकासुर का वध कर लोगों को नरक से मुक्त किया था। यह दिन भी दीपावली के साथ जुड़ा हुआ है। सिख धर्म में, यह दिन गुरु हरगोबिंद जी के कारागार से रिहाई का प्रतीक है।

दीपावली के दिन क्या किया जाता है?

दीपावली के दिन विभिन्न रीतियों और परंपराओं का पालन किया जाता है।

घर की सफाईः दीपावली से पहले लोग अपने घरों की सफाई करते हैं। मान्यता के अनुसार देवी लक्ष्मी केवल स्वच्छ और सुंदर घरों में आती हैं।
दीप जलानाः दीपावली की रात को घरों के बाहर और अंदर दीप जलाए जाते हैं। यह अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक होता है।
लक्ष्मी पूजाः लोग इस दिन लक्ष्मी पूजा का आयोजन करते हैं। विशेष मंत्रों के साथ देवी लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है।
खाने-पीने की तैयारीः इस दिन विशेष मिठाइयाँ और पकवान बनाए जाते हैं और सभी लोग एक-दूसरे को मिठाइयाँ भेंट करके अपनी खुशियाँ साझा करते हैं।
फूलों और रंगोली से सजावटः घर को रंगोली और फूलों से सजाया जाता है, जिससे वातावरण खुशनुमा हो जाता है।

किस दिन दीपावली मनाना शुभ रहेगाः-

दीपावली के अवसर पर रात्रि व्यापिनी अमावस्या का विशेष महत्व होता है। इस वर्ष 31 अक्टूबर 2024 की रात को अमावस्या तिथि है। मान्यता है कि इस रात मां लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं और भक्तों के घरों में जाती हैं। इसलिए, दीपावली का पर्व 31 अक्टूबर को मनाना सभी के अनुकूल रहेगा।

दीपावली के दिन प्रदोष काल का महत्वः-

दिवाली पर प्रदोष काल, यानी सूर्यास्त के समय पूजा करने का खास महत्व होता है। इस बार 31 अक्टूबर 2024 को प्रदोष काल भी है। यदि अमावस्या तिथि 1 नवंबर 2024 को प्रदोष काल को स्पर्श करती, तो उस दिन दिवाली मनाना अधिक उचित होता। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा, इसलिए 31 अक्टूबर को दीपावली मनाना सही है।

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दीपावली की पूजा विधिः-

दीपावली के दिन पूजा करने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
उसके बाद पूजा के लिए एक स्वच्छ और पवित्र स्थान का चयन करें।
पूजा स्थल को अच्छे से साफ करें। यदि संभव हो, तो वहाँ रंगोली बनाएं।
पूजा से पहले दीपक को तेल या घी में भरकर बत्ती लगाकर जलाएं।
एक कलश लें और उसमें जल भरकर रखें, उसके ऊपर एक नारियल रखकर उसे फूलों से सजाएं।
लक्ष्मी और गणेश जी के चित्र या मूर्ति को रखें। उनके सामने फूल, मिठाई और अक्षत अर्पित करें।
अब ॐ श्रीं लक्ष्म्यै नमः मंत्र का जप करते हुए लक्ष्मी जी की आरती करें।
पूजा स्थल पर धूप और अगरबत्ती जलाएं।
सभी सामग्री को एकत्रित करके, दीप जलाकर लक्ष्मी जी की आरती करें।
पूजा के बाद, जो मिठाई और फल अर्पित किए गए थे, उन्हें परिवार वालों के बीच बांटें।
अंत में, मां लक्ष्मी से धन, समृद्धि और खुशियों की प्रार्थना करें।

दीपावली शुभ मुहूर्तः-

अमावस्या तिथि प्रारम्भ – 31 अक्टूबर 2024 को दोपहर 03ः52 मिनट से,
अमावस्या तिथि समाप्त – 01 नवम्बर 2024 को शाम 06ः 16 मिनट पर।

प्रदोष काल प्रारम्भ: सुबह 05ः 36 मिनट से,
प्रदोष काल समाप्तः सुबह 06 15 मिनट तक।
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त -31 अक्टूबर 2024 , शाम  06:56 मिनट से, रात्रि 08:27 मिनट तक।

पूजा की कुल अवधि- 1 घण्टा 31 मिनट्स

पटाखों के बिना दीपावली कैसे मनाएं?

दीपावली का त्योहार पटाखों के बिना भी बहुत खुशी और उल्लास के साथ मनाया जा सकता है। सबसे पहले, घर को दीपों और रंगोली से सजाएँ। मिट्टी के दीपक जलाकर अंधकार को दूर करने का प्रतीक बनाएं। माँ लक्ष्मी की पूजा करें, जिसमें मिठाइयाँ, फल और फूल शामिल हों। परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर समय बिताएं, खेलें या स्वादिष्ट व्यंजन बनाएं। सकारात्मकता बढ़ाने के लिए घर की सफाई करें और पुराने सामानों को दान करें। इस अवसर पर समाज सेवा भी करें, जैसे जरूरतमंदों को भोजन या कपड़े देना, इसके अलावा, आप संगीत और नृत्य का आयोजन कर सकते हैं, जिससे वातावरण खुशनुमा बने। योग और ध्यान का अभ्यास भी करें, जिससे मानसिक शांति प्राप्त हो।
इस प्रकार, आप एक सुरक्षित और सुखद दीपावली का अनुभव कर सकते हैं, जो केवल पटाखों से नहीं, बल्कि प्रेम, स्नेह और सामूहिकता से भरी हो। इस पर्व का असली अर्थ यही है प्रकाश और खुशियों का फैलाव।

दीपावली का धार्मिक तथ्य क्या है?

दीपावली, जिसे दिवाली भी कहा जाता है, धार्मिक दृृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है। यह भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी का अवतरण हुआ, जो धन, समृद्धि और सुख का प्रतीक हैं। हिन्दू धर्म में यह दिन रावण पर भगवान राम की विजय और नरकासुर के वध का भी प्रतीक है। साथ ही, यह दिन सिखों के लिए गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई का भी प्रतीक है। इस प्रकार, दीपावली एकता, खुशी और समृद्धि का पर्व है।

दिवाली के महत्वपूर्ण 5 दिन कौन से हैं?

दिवाली के पांच महत्वपूर्ण दिन निम्नलिखित हैं।

धनतेरसः इस दिन धन और समृद्धि के देवता धन्वंतरि की पूजा की जाती है। लोग नए बर्तन या सोने-चांदी की वस्तुएँ खरीदते हैं।
नरक चतुर्दशीः इसे काली चौदस भी कहते हैं। इस दिन नरकासुर का वध करने के लिए भगवान कृष्ण की पूजा होती है।
दीपावलीः मुख्य पर्व, जब मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लोग दीप जलाकर अंधकार को दूर करते हैं।
गोवर्धन पूजाः इस दिन भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत की पूजा होती है, जिसे अन्नकूट भी कहते हैं।
भाई दूजः इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए पूजा करती हैं।

दिवाली से हमें क्या सीख मिलती है?

दिवाली से हमें कई महत्वपूर्ण सीख मिलती हैं। सबसे पहले, यह अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक है, जो हमें आशा और सकारात्मकता का संदेश देता है। यह पर्व प्रेम, एकता और भाईचारे को बढ़ावा देता है, जिससे हमें अपने परिवार और दोस्तों के साथ संबंध मजबूत करने की प्रेरणा मिलती है। दिवाली हमें सामाजिक जिम्मेदारी का भी एहसास कराती है, जैसे जरूरतमंदों की सहायता करना। इसके अलावा, यह स्वच्छता और सजावट का महत्व सिखाती है। अंततः, दिवाली हमें आंतरिक सुख, समृद्धि और आत्म-अनुशासन की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है।

दिवाली का सामाजिक महत्व क्या है?

दिवाली का महत्व अंधकार से प्रकाश की ओर जाने, सच्चाई और अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह माता लक्ष्मी की पूजा, समृद्धि, और प्रेम का पर्व है। समाज में एकता, भाईचारा और खुशी का संचार करने के लिए यह अवसर प्रदान करता है। दिवाली हमें सकारात्मकता, स्वच्छता और दूसरों की मदद करने की प्रेरणा भी देती है।

 

 

 

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