मान्यता के अनुसार नवरात्रि में माता की आराधना के क्रम में हम सब कलश की स्थापना करतें है स्थापना के समय हम ज्वार का प्रयोग करते है ।
पूजा स्थल पर ज्वारे इसलिए बोये जाते हैं, क्योंकि हिन्दू धर्म ग्रंथों में सृष्टि की शुरूआत के बाद पहली फसल देवी-देवताओं की पूजा की जाती है ।
‘‘जौ को ब्रह्मा जी का स्वरूप माना जाता है ।’’
माना जाता है कि आदिकाल से पूजा-पाठ में हवन के दौरान जौ को आहुति देने की परंपरा चली आ रही है । पूजा-पाठ में इसका सम्मान करने का अर्थ है कि हमें अन्न पानी कि जो ब्रह्मा स्वरूप है उसका सम्मान करना चाहिए । पूजा में जौ का प्रयोग ही इसकी महत्त को स्पष्ट करता है ।
कैसे बोए जाते है जवारे:
जिस स्थान पर आप जौ बोने जा रहे है उसे पहले साफ करें और वहां चावल डालें इसके बाद आप मिट्टी का एक पात्रा रखें ।
पात्रा को पानी से साफ कर लें । इसके बाद पात्रा से साफ बालू डाले इसके बाद आप बालू मै में जौ के दानें डालें । उसके बाद इसी पात्रा में कलश स्थापना करें अब नौ दिन जौ वाले पात्रा में नियमित जल अर्पित करें ।
🍁 दुर्गा माता की प्रतिमा या फोटो के सामने कलश की स्थापना करें उसी कलश में जौ को लगाएं कलश के नीचे बालु या मिट्टी आवश्य रखें।
🍁 जौ के पात्र में आपको रोज जल अर्पित करना चाहिए।
🍁 जब जौ अंकुरित होने लगे तो उसे मौली की मदद से फैली हुई घास को बांध दें।
🍁 नवरात्रि के अवसर पर होने बोने वाली जौ की ग्रोथ को सुख-समृद्धि का सूचक माना जाता है।
🍁 नवरात्रि पूजा का प्रमुख अंग जौ को माना जाता है।
🍁 अंकुरित जौ का रंग अगर नीचे से आधा पीला और ऊपर से आधा हरा है, तो साल का आधा समय अच्छा बीतेगा और आधा समय खराब रहेगा।
🍁 यदि जौ का रंग नीचे से हरा और ऊपर से पीला है, तो साल का शूरूआती समय ठीक होगा और आखिरी का समय परेशानियों से भरा हो सकता है।
🍁 यदि जौ सफेद या हरे रंग की उगती है। तो यह शुभ संकेत है।
🍁 अंकुरित होने के बाद जौ की घास अगर झड़ रही है या टूट रही है तो यह अशुभ संकेत है।
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