आइये जानें भगवान शिव से जुड़े वे रहस्य जिनसे आप हैं अंजान

शिव पुत्र कार्तिकेय का वाहन

कार्तिकेय जी का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग हैं। स्वभाव में मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं।

शिव जी को आदिनाथ शिव क्यों कहा जाता है

सर्वप्रथम शिव जी ने ही धरती पर जीवन का प्रचार-प्रसार किया था इसलिए उन्हें आदिदेव भी कहा जाता है क्योंकि आदिका अर्थ प्रारंभ है।

शिव जी के अस्त्रशस्त्र

शिव जी का धनुष पिनाक, चक्र भवेरंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। इन सभी का निर्माण स्वयं शिव जी ने किया है।

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भगवान शिव जी का नाग

शिव जी के गले में जो नाग लिपटा रहता है, उसका नाम वासुकि है और वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।

शिव जी की अर्धांगिनी

भगवान शिव जी की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा और उर्मि कही गईं।

शिव जी के शिष्य

शिव जी के शिष्य वे हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को सम्पूर्ण धरती पर प्रचारित किया, जिसके कारण भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव जी ने ही गुरु और शिष्य की परंपरा की शुरुआत की थी। शिव जी के शिष्य के नाम इस प्रकार हैं:- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्त्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, इसके अलावा आठवें गौरशिरस मुनि भी थे।

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शिव जी के पुत्र

शिव जी के प्रमुख 6 पुत्र हैं:-1. गणेश, 2. कार्तिकेय, 3. सुकेश, 4. जलंधर, 5. अयप्पा, 6. भूमा सभी के जन्म की कथाएं रोचक हैं।

शिव जी की पंचायत

भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

शिव जी के द्वारपाल

शिव जी के द्वारपाल हैं: नंदी, स्कंद रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा महेश्वर, महाकाल।

शिव जी के पार्षद

जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं, उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।

सभी धर्मों के केंद्र शिव जी

शिव जी की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक यजीदी, सार्बिझ सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में विभक्त हो गई है।

बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय

ख्यातिप्राप्त विद्वानों का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पाली ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं तणंकर, शणंकर और मेघकंर।

देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव जी

भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। शिव जी ने रावण को भी वरदान दिया है और राम जी को भी वरदान दिया। उन्होंने भस्मासुर, दैत्यगुरु शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव सभी आदिवासी, वनवासी, जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।

शिव चिन्हवनवासी से लेकर सभी साधारण व्यक्ति जिस चिन्ह की पूजा करते हैं वह है डमरू और अर्द्ध चंद्र। इसके अलावा रूद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिन्ह माना गया है। ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

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शिव जी की गुफा

शिव जी ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जन्म से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव न जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा अमरनाथ गुफा  के नाम से प्रसिद्ध है।

शिव जी के पैरों के निशान

  1. श्रीपद: श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपाद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिन्ह 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं।
  2. रूद्र पद: तमिलनाडु के नागपटीनम जिले के धिरूवैगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्रर के मंदिर में शिव के पदचिन्ह हैं जिसे रूद्र पदम कहा जाता है। इसके अलावा धिरूवत्रामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिन्ह हैं।
  3. तेजपुर: असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रूप्रपद मंदिर में शिव जी के दाएँ पैर का निशान है।
  4. जागेश्वर: उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिन्ह हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहाँ और दूसरा कैलाश में रखा था।
  5. रांची: झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर (रांची हिल) पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को पहाड़ी बाबा मंदिर कहा जाता है।

शिव जी के अवतार

शिव के प्रमुख अवतारों में वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्रत्याना, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षवय, सुरेश्रर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्रर, हंसरूप, द्विज नतेश्रर आदि हुए हैं। वेदों में रूद्रों का जिक्र है। रूद्र 11 बताए जाते हैं।

शिव जी का विरोधाभासिक परिवार

शिव पुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि साँप मूषक भक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।

कैलाश पर्वत

तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर शिव विराजमान हैं। उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमशः स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।

शिव मंत्र

शिव के दो प्रमुख मंत्र हैं:

  1. नमः शिवाय।
  2. महामृत्युंजय मंत्र:

  महामृत्युंजय मंत्र जिसे मृत संजीवनी मंत्र भी कहते हैं ।

ॐ हौं जूं सः । ॐ भूर्भुवः स्वः।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

ॐ स्वः भुवः भूः । ॐ सः जूं हौं ॐ।।

शास्त्रों के अनुसार, इस मंत्र का जाप करने से मरते हुए व्यक्ति को भी जीवन दान मिल सकता है।

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