शिव प्रतिमा के आठ प्रमुख स्वरूप: एक विस्तृत परिचय

हिन्दू धर्म में भगवान शिव को आठ प्रमुख रूपों में पूजा जाता है, जो प्रत्येक में विशिष्ट गुण और शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये रूप हैं शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव। इन आठ मूर्तियों के माध्यम से शिव जी की विविधताओं और उनके प्रभावों को समझा जा सकता है। चलिए, इन आठ प्रकार की शिव प्रतिमाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।

  1. शर्व (Sharva)

शर्व शिव की पृथ्वीमयी प्रतिमा है, जिसे शार्वी प्रतिमा भी कहा जाता है। यह मूर्ति पूरे जगत को धारण करने वाली होती है और भक्तों के हर कष्ट को हरने वाली मानी जाती है।

विशेषता: शर्व का नाम ‘शर्व’ होने का अर्थ है कि वह संसार की हर अवस्था को संभालते हैं। यह मूर्ति भक्तों की सभी समस्याओं को दूर करती है और उन्हें शांति प्रदान करती है।

उदाहरण: शर्व की पूजा से भक्तों को आध्यात्मिक और भौतिक कष्टों से राहत मिलती है।

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  1. भीम (Bhim)

भीम शिव की आकाशरूपी प्रतिमा है, जो बुरे और तामसी गुणों का नाश करती है। इसे भैमी भी कहते हैं। यह भयंकर रूप वाले और शक्तिशाली रूप में प्रकट होती है।

विशेषता: भीम की मूर्ति बुरे प्रभावों और दुष्ट प्रवृत्तियों को समाप्त करने वाली होती है। यह भस्म से लिपटी देह, जटाजूटधारी, और नागों के हार पहने हुए दिखाई देती है।

उदाहरण: भीम की उपासना से भक्तों को कठिनाई और बाधाओं से छुटकारा मिलता है।

  1. उग्र (Ugra)

उग्र वायु रूप में शिव की मूर्ति है, जो जगत को गति और पालन-पोषण प्रदान करती है। इसे औग्री भी कहा जाता है और यह शिव के तांडव नृत्य में शक्ति स्वरूप के रूप में प्रकट होती है।

विशेषता: उग्र रूप की मूर्ति बहुत ज्यादा उग्र और शक्तिशाली होती है। यह शिव के तांडव नृत्य में अपनी शक्ति और क्रोध को प्रकट करती है।

उदाहरण: उग्र की पूजा से भक्तों को शक्ति और सामर्थ्य प्राप्त होता है।

  1. भव (Bhava)

भव जल से युक्त शिव की मूर्ति है, जो जीवन और प्राणशक्ति प्रदान करती है। इसे भावी भी कहते हैं और यह संसार की सभी प्राणवायु का स्रोत मानी जाती है।

विशेषता: भव की मूर्ति संसार के जीवन को ऊर्जा और प्राण देती है। यह नाम ‘भावी’ का अर्थ है जो भविष्य को भी संजोए हुए है।

उदाहरण: भव की उपासना से जीवन में ऊर्जा और प्राणशक्ति मिलती है।

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  1. पशुपति (Pashupati)

पशुपति सभी जीवों का नियंत्रक और रक्षक है। यह मूर्ति दुर्जन वृत्तियों का नाश करती है और सभी प्राणियों की रक्षा करती है।

विशेषता: पशुपति का नाम ‘पशुओं के स्वामी’ के रूप में प्रसिद्ध है। यह सभी जीवों की देखभाल और संरक्षण करती है।

उदाहरण: पशुपति की पूजा से भक्तों को सभी जीवों के प्रति दया और करुणा की भावना प्राप्त होती है।

  1. रुद्र (Rudra)

रुद्र शिव की अत्यंत ओजस्वी और भयानक मूर्ति है। यह समस्त ऊर्जा और गतिविधियों में प्रकट होती है और तामसी प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखती है।

विशेषता: रुद्र की मूर्ति समस्त ऊर्जा और क्रोध का प्रतीक है। यह भयानक रूप वाली और रौद्री के नाम से जानी जाती है।

उदाहरण: रुद्र की पूजा से बुरे प्रभावों और तामसी गुणों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

  1. ईशान (Ishana)

ईशान सूर्य रूप में आकाश में चलते हुए जगत को प्रकाशित करता है। यह मूर्ति ज्ञान और विवेक देने वाली मानी जाती है।

विशेषता: ईशान की मूर्ति सूर्य के रूप में चमकती है और ज्ञान का स्रोत है। यह दिव्य ज्ञान और सच्चाई का प्रतीक है।

उदाहरण: ईशान की उपासना से भक्तों को ज्ञान, विवेक और जीवन में उजाला मिलता है।

  1. महादेव (Mahadev)

महादेव चंद्र रूप में शिव की मूर्ति है। चंद्र किरणों को अमृत के समान माना जाता है। महादेव की मूर्ति अन्य मूर्तियों से व्यापक और विलक्षण होती है।

विशेषता: महादेव का नाम ‘देवों के देव’ के रूप में प्रसिद्ध है। यह सारे देवताओं में सबसे श्रेष्ठ और शक्तिशाली माने जाते हैं।

उदाहरण: महादेव की पूजा से भक्तों को दिव्य शक्ति और समस्त सुख प्राप्त होते हैं।

स्रोत:

धर्मग्रंथों में भगवान शिव की इन आठ मूर्तियों का वर्णन मिलता है जो विभिन्न प्रकार की शक्तियों और गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं।

ये आठ स्वरूप भगवान शिव के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करते हैं और भक्तों को उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं में मदद प्रदान करते हैं। शिव की इन प्रतिमाओं की पूजा से व्यक्ति अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकता है।

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