सुकर्मा और शिववास योग में पड़ रहा सफला एकादशी का व्रत जानें इसका महत्व, पूजा विधि, पौराणिक कथा, पूजा मंत्र तथा शुभ मुहूर्तः

सुकर्मा और शिववास योग में पड़ रहा सफला एकादशी का व्रत जानें इसका महत्व, पूजा विधि, पौराणिक कथा, पूजा मंत्र तथा शुभ मुहूर्तः

सफला एकादशी का व्रत पौष माह के कृृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस दिन व्रत रखने से सभी पापों का नाश होता है और जीवन में सुख, समृद्धि तथा सफलता मिलती है। यह व्रत विशेष रूप से कार्यों में सफलता और बाधाओं के निवारण के लिए लाभकारी होता है। सफला एकादशी के दिन उपवास, पूजा और भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करना फलदायी माना जाता है। साथ ही, इस दिन तुलसी के नीचे दीपदान करना भी बहुत पुण्यकारी होता है। सफला एकादशी व्रत करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और भाग्य का द्वार खुलता है। यह व्रत न केवल धार्मिक दृृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जीवन को सकारात्मक दिशा देने में भी सहायक सिद्ध होता है।
इस दिन सुकर्मा योग और दुर्लभ शिववास योग बनेगा, जो विशेष रूप से शुभ कार्यों के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इस समय भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्त की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और धन-समृद्धि में वृद्धि होती है। वहीं, इस योग में भगवान शिव कैलाश पर्वत पर निवास करेंगे, और माता पार्वती उनके साथ रहेंगी। इस पवित्र अवसर पर भगवान शिव की पूजा करने से सुख-समृद्धि और आशीर्वाद में वृद्धि होती है।

सफला एकादशी का महत्त्वः

सफला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की पूजा और उपासना के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन व्रत रखने से पापों का नाश होता है, मानसिक शांति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। सफला एकादशी का व्रत रखने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और मोक्ष की प्राप्ति के अवसर भी मिलते हैं। यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की कृृपा प्राप्त करने के लिए उपयुक्त है।

सफला एकादशी की पौराणिक कथाः

सुकर्मा और शिववास योग में पड़ रहा सफला एकादशी का व्रत जानें इसका महत्व, पूजा विधि, पौराणिक कथा, पूजा मंत्र तथा शुभ मुहूर्तः
सुकर्मा और शिववास योग में पड़ रहा सफला एकादशी का व्रत जानें इसका महत्व, पूजा विधि, पौराणिक कथा, पूजा मंत्र तथा शुभ मुहूर्तः

एक बार महाराज युधिष्ठिर नें श्री कृृष्ण से पूछा, हे भगवान! कृृपया आप मुझे बताएं कि पौष माह के कृृष्ण पक्ष में कौन सी एकादशी आती है और उसका क्या महत्व है?
श्री कृृष्ण नंे उत्तर दिया, हे राजन! आपने बहुत अच्छा प्रश्न पूछा है। मैं तुम्हें इसके बारे में विस्तार से बताता हूं। पौष माह के कृृष्ण पक्ष में जो एकादशी आती है, उसे सफला एकादशीकहा जाता है। यह एकादशी यज्ञ और दान से प्राप्त पुण्य के समान फल देने वाली होती है। अब मैं तुम्हें इसके बारे में एक कथा सुनाता हूं, तुम ध्यान से सुनो।

चंपावती नामक एक नगर में महिष्मान नामक एक शक्तिशाली राजा राज्य करते थे। उनके चार पुत्र थे, जिनमें से ज्येष्ठ पुत्र लुंपक था। लुंपक अधर्मी और पापी था, जो अपने पापों में संलिप्त रहता था। उसके पापों के कारण पूरा राज्य प्रभावित हो रहा था, जिसे देख राजा नंे उसे राज्य से बाहर निकाल दिया।
लुंपक राज्य से बाहर जंगल में रहने चला गया, लेकिन उसने वहां भी अपनी आदतें नहीं बदलीं। वह निर्दाेष जानवरों का शिकार करता और रात के समय नगर में लूटपाट करता था। वह श्री विष्णु के प्रिय बरगद के पेड़ के नीचे रहता था। एक दिन ठंड के मौसम में वह पूरी रात जागता रहा, क्योंकि उसके पास शीत से बचने के लिए कोई संसाधन नहीं थे।
उस रात लुंपक नंे अपनी गलतियों को महसूस किया और भगवान श्री विष्णु से प्रार्थना की। उसने कहा, हे भगवान! मेरे पापों के कारण मेरी यह हालत हो गई है, कृृपया आप मुझ पर कृृपा करें और इन फलों को स्वीकार करें। उस रात वह बिना भोजन के जागता रहा और भगवान विष्णु का ध्यान करता रहा।
अचानक सफला एकादशी की रात उसकी तपस्या और ध्यान से भगवान श्री विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए। अगले दिन एक तेजस्वी सफेद घोड़ा लुंपक के पास आया। आकाशवाणी हुई, हे लुंपक! तुमने अनजाने में सफला एकादशी का व्रत पूरा किया है, जिससे भगवान विष्णु तुमसे प्रसन्न हैं। तुम्हारे पापों का नाश हो गया है और अब तुम्हें अपना राज्य वापस मिलेगा।
लुंपक नंे घोड़े पर सवार होकर अपने पिता के पास लौटने का निश्चय किया। जब वह राज्य लौट आया, तो उसने अपने पिताजी से क्षमा मांगी और यह पूरा वृतांत सुनाया। राजा महिष्मान नें अपने पुत्र को पुनः धर्म के मार्ग पर देखा और अत्यंत प्रसन्न हुए।
लुंपक नें धर्म का पालन किया और राजा महिष्मान का आशीर्वाद प्राप्त किया। वह विवाह कर गृहस्थ जीवन में व्यस्त हुआ और कुछ समय बाद अपने पिताजी के पदचिन्हों पर चलते हुए राज्य का शासन संभाल लिया। मृत्यु के बाद लुंपक को वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति हुई।
श्री कृृष्ण नें आगे कहा, हे युधिष्ठिर! जो भी व्यक्ति सफला एकादशी की कथा का पाठ या श्रवण पूरी श्रद्धा से करता है, उसे राजसूय यज्ञ का फल मिलता है और उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जीवन के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यह कथा सुनकर युधिष्ठिर अत्यंत प्रसन्न हुए और सफला एकादशी के व्रत को विशेष श्रद्धा से करने का संकल्प लिया।

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सफला एकादशी पूजा विधिः

  • सूर्याेदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण।
  • अब भगवान विष्णु का स्मरण करें और व्रत का संकल्प लें।
  •  पूजा स्थल को स्वच्छ करके वहां भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र रखें।
  •  उन्हें नीले पुष्प, तुलसी के पत्ते और शुद्ध जल अर्पित करें।
  •  तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाएं और भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करें।
  •  भगवान विष्णु की पूजा करते समय ¬ नमो भगवते वासुदेवाय नमःमंत्र का जाप करें।
  • इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान विष्णु को पुष्प, फल, शहद, गंगाजल और शुद्ध घी अर्पित करें।
  •  उसके बाद सफला एकादशी व्रत की कथा का श्रवण करें या उसका पाठ करें।
  • भगवान विष्णु के सामने किसी गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति को दान-दक्षिणा अवश्य दें ।
  •  यदि आप निर्जला व्रत रख रहे हैं, तो पूरे दिन जल का सेवन न करें।
  • यदि फलाहार कर रहे हैं, तो दूध, दही, फल और खीर का सेवन करें।
  •  सफला एकादशी के व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है।
  •  पारण से पहले भगवान विष्णु को भोग अर्पित करें और फिर अन्न ग्रहण करें।

सफला एकादशी शुभ मुहूर्तः

सफला एकादशी 26 दिसम्बर 2024 को बृहस्पतिवार के दिन मनाया जाएगा।
एकादशी तिथि प्रारम्भ – 25 दिसम्बर 2024 रात्रि 10ः 29 मिनट से,
एकादशी तिथि समाप्त -27 दिसम्बर 2024 सुबह 12ः 43 मिनट पर।
पारण करने का समय – 27 दिसम्बर 2024 सुबह 07ः 12 मिनट से सुबह 09ः 16 मिनट तक।

सफला एकादशी पूजा मंत्रः

सफला एकादशी के दिन पूजा के दौरान भगवान विष्णु के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है। निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करने से भगवान विष्णु की कृृपा प्राप्त होती है और भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

भगवान विष्णु के प्रमुख मंत्रः
¬नमो भगवते वासुदेवाय।।
इस मंत्र का जाप करने से भगवान विष्णु की विशेष कृृपा प्राप्त होती है।
सफला एकादशी व्रत का विशेष मंत्रः
¬श्रीपते श्रीविष्णवे नमः।।
यह मंत्र भगवान विष्णु के परम रूप का स्मरण करता है और व्रति को विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
एकादशी व्रत का मंगलकारी मंत्रः
¬नमो नारायणाय।।
यह मंत्र भगवान नारायण के प्रति समर्पण और भक्ति को व्यक्त करता है।
संपूर्ण सफलता के लिए मंत्रः
¬विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः स्वाहा।।
इस मंत्र का जाप करने से विशेष रूप से सफलता, समृद्धि और शुभ फल की प्राप्ति होती है।

सफला एकादशी व्रत के दौरान कुछ महत्वपूर्ण बातेंः

सफला एकादशी का व्रत रखते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि व्रत का पूर्ण लाभ प्राप्त किया जा सके-

अन्न का त्यागःइस व्रत में अन्न का सेवन वर्जित होता है, लेकिन फलाहार किया जा सकता है। फलाहार में दूध, दही, फल, और खीर आदि का सेवन किया जा सकता है।
सत्यमेव जयतेःव्रत के दौरान किसी भी प्रकार का झूठ न बोलें और क्रोध से बचें। सत्यनिष्ठा और शुद्ध आचार का पालन करें।
भगवान का स्मरणःदिनभर भगवान विष्णु का नाम जाप करते रहें और “¬ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का उच्चारण करें।
निर्जला व्रतःयदि आप निर्जला व्रत रख रहे हैं तो जल का सेवन न करें।
स्नान और स्वच्छताःसूर्याेदय से पूर्व उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
स्वास्थ्य का ध्यानःगर्भवती महिलाओं, बच्चों और बीमार व्यक्तियों को इस व्रत को रखने में परेशानी हो सकती है, इसलिए शारीरिक क्षमता के अनुसार व्रत रखें।

सफला एकादशी से जुड़ी मान्यताएं और परंपराएंः

  • सफला एकादशी से जुड़ी कई मान्यताएं और परंपराएं हैं, जो व्रति को विशेष लाभ देती हैंः

तुलसी पूजाःसफला एकादशी के दिन तुलसी पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करना शुभ माना जाता है।
दान का पुण्यःइस दिन दान देने का अत्यधिक महत्व है। गरीबों और जरूरतमंदों को दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
व्रत कथाःसफला एकादशी की व्रत कथा का पाठ करने से व्रत का फल और भी अधिक बढ़ जाता है। इसे पूजा के बाद या शाम के समय सुनना लाभकारी है।
पूजा सामग्रीःसफला एकादशी की पूजा में विशेष पूजा सामग्री का उपयोग किया जाता है, जैसे तुलसी दल, शंख, चक्र, गदा और कमल का फूल।
पारणःसफला एकादशी के व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है। पारण से पहले भगवान विष्णु को भोग अर्पित करें और ग्रहों का पूजन करें, फिर अन्न ग्रहण करें।

सफला एकादशी का वैज्ञानिक और पर्यावरणीय महत्वः

  • सफला एकादशी का धार्मिक महत्व तो है ही, इसके साथ-साथ इसका वैज्ञानिक और पर्यावरणीय महत्व भी हैः

वैज्ञानिक महत्वःएकादशी के दिन चंद्रमा की स्थिति कमजोर होती है, जिससे शरीर का पाचन तंत्र भी प्रभावित होता है। इस दिन अन्न का त्याग करके फलाहार करना पाचन तंत्र को आराम देता है और शरीर को शुद्ध करता है।
पर्यावरणीय महत्वःसफला एकादशी के दिन अन्न का त्याग किया जाता है, जिससे अनाज की बचत होती है। फलाहार में मांसाहारी भोजन की तुलना में कम संसाधनों की आवश्यकता होती है, जिससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

 

 

 

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