बात करें यदि हम सूर्य के शुभ योगों में से उभयचरी योग कि तो यह योग सूर्य के सभी महत्वपूर्ण योगों में से एक माना जाता है। सूर्य से बनने वाले योगो में एक विशेषता यह भी होती है कि इन योगो में राहु केतु और चन्द्रमा को कभी शामिल नहीं किया जाता है। इस योग के बनने की एक खास बात यह भी होती है कि यदि कुण्डली में उभयचरी योग बनते समय चन्द्रमा भी किसी योग बनाने वाले ग्रहों के साथ युति कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में यह योग पूरी तरह से भंग हो जाता है। वास्तव में उभयचरी योग सूर्य को एक अलग प्रकार का बल देने में सहायक होते हैं। इस शुभ योग के प्रभाव से व्यक्ति को मार्गदर्शन प्राप्त करने की योग्यता मिलती है साथ ही जातक के अन्दर किसी काम को करने का साहस आता है और वह व्यक्ति अपना सारा काम बिना किसी भय के करने में पूरी तरह सक्षम होता है।
किसी जातक की कुण्डली में सूर्य से बनने वाला उभयचरी योग कैसे बनता है
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार उभयचरी योग को सूर्य के सबसे महत्वपूर्ण योगों में से एक माना जाता है यह योग जातक की कुण्डली में सूर्यदेव की शुभ स्थिति के अनुरूप ही बनता है। सूर्य को हमारे ज्योतिषशास्त्रों में एक शुद्ध आत्मिक रूप में देखा जाता है। यदि जातक की जन्मकुण्डली में सूर्य मजबूत स्थिति में हो तो इसके मजबूत होने के मिलने वाले प्रभाव से जातक अपने जीवन में बहुत प्रबल और प्रभावशाली होता है।
यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में चन्द्रमा को छोड़कर सूर्य से कुण्डली के द्वितीय भाव और सूर्य के बारहवें स्थान में सूर्य जहाँ स्थित है उसके दोनों ओर कोई ग्रह हो तो ऐसी स्थिति के बनने से कुण्डली में उभयचरी जैसा शुभ योग बनता है।
कुण्डली में उभयचरी योग के बनने से जातक पर प्रभाव
यदि किसी जातक की जन्मकुण्डली में उभयचरी जैसे शुभ योग बने हों तो ऐसा जातक बहुत ही ज्यादा सुन्दर और आकर्षण से युक्त होता है। इसके अलावा इस योग के बनने से जातक आर्थिक रुप से पूरी तरह सम्पन्न रहता है। ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में किए गये अत्यधिक मेहनत और प्रयासों से अपने कार्य-व्यवसाय और आर्थिक क्षेत्र में सम्पन्न होते हैं।
किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि ऐसा योग बना है तो ऐसे जातक को कई बार अपने परिवार के ओर से भी जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। ये जातक बोलने में बहुत ज्यादा कुशल और मधुर बोलने वाले होते हैं। इसके अलावा इस योग के बनने से जातक अत्यधिक योग्य तथा विद्वान होते हैं। यह जातक अपनी तर्क देने की कला में एकदम प्रवीण होते हैं। यह व्यक्ति अपने जीवन में एक अच्छे वक्ता के रूप में होते हैं। यह दूसरों से हुई गलती तथा दूसरों के किसी गम्भीर अपराधों को क्षमा कर देने वालों में से होते हैं। इनकी बुद्धि बहुत स्थिर होती है तथा यह जातक स्वयं बहुत ही ज्यादा प्रसन्न रहने का प्रयास करते हैं। साथ ही इस योग के बनने से जातक अपने साथ-साथ दूसरों को भी खुश रखने की कला बहुत अच्छे से जानते हैं। इस योग के कुण्डली में बनने पर जातक को राजनीति और प्रशासन के क्षेत्रों में उच्च लाभ की प्राप्ति होता है। इसके लाभ से जातक अपने जीवन में नेता बनने जैसे सुखों की प्राप्ति भी कर सकता है।
किसी जातक को उभयचारी योग जैसे शुभ योगों का प्रभाव जीवन मे कब मिलता है
☸ किसी जातक की जन्म कुण्डली में जब उभयचरी योग का निर्माण होता है तो कुण्डली बनने वाले इस शुभ योगों का प्रभाव सबसे अधिक ग्रहों की शुभता से ज्यादा बढ़ जाता है। अतः कुण्डली में उपस्थित कुछ पाप ग्रह और कुछ शुभ ग्रह होते हैं ये सभी ग्रह अपने- अपने गुणों के फलस्वरूप ही जातक पर अपना असर डालते हैं। कुण्डली में उपस्थित इन ग्रहों के शुभ प्रभाव से इस योग की शुभता बढ़ तो जाती है परन्तु इसके विपरीत यदि पाप ग्रह अपने गुणों की अशुभ स्थिति में इस योग की शुभता को कम कर देते हैं।
☸ जैसे यदि सूर्य कुण्डली के तीसरे भाव में बैठा है और उसके दूसरे या बारहवें भाव में यदि कोई शुभ ग्रह बैठा हुआ है तो ऐसी स्थिति में सूर्य से मिलने वाले शुभ फलों में और भी ज्यादा वृद्धि होती है। ग्रहों की इन स्थिति में आप थोड़े से मेहनत से भी सकारात्मक प्रभाव पा सकते हैं। इसके अलावा आप अपनी अभिरुची को और ज्यादा उस क्षेत्र में विकसित करनेे में सफल हो सकते हैं।
☸ इसके अलावा सूर्य यदि कुण्डली में किसी भी तरह से शुभ ना हो तो ऐसी स्थिति में जातक को बहुत सी परेशानियाँ उत्पन्न हो सकती है। यदि कुण्डली में इस योग का निर्माण हो रहा है और सूर्य के आस-पास के ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो जातक को इससे मिलने वाले फल एकदम विपरीत मिलते हैं। ऐसी स्थिति में जातक को अत्यधिक मेहनत करने के बाद भी सफलता बहुत देर से मिलती है। साथ ही जातक अपनी सीखने की रुचि में आगे नही बढ़ पाता है।
☸ यदि जन्मकुण्डली में सूर्य से एक भाव आगे कोई ग्रह स्थित हो तथा सूर्य के एक भाव पीछे ग्रहों के स्थित होने पर उसकी शुभ या अशुभ स्थिति में होने पर इन ग्रहों का प्रभाव जातक को बहुत ही लम्बे समय तक प्रभावित करता है। इसी के अनुसार यदि कुण्डली में सूर्य पाप प्रभाव में होकर किसी ग्रहणयोग में फंसा हुआ हो तो ऐसी स्थिति में जातक को सूर्य की शुभता प्राप्त नहीं हो पाती है और शुभता ना मिल पाने के कारण कुण्डली में यह योग समाप्त हो जाता है।
सूर्य से बनने वालें कुछ अन्य शुभ योग वेशि योग
☸ यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली के चौथे घर में सूर्य स्थित है तथा कुण्डली के पाँचवें घर में चन्द्रमा, राहु तथा केतु के अलावा कोई अन्य शुभ ग्रह भी स्थित है तो ऐसी स्थिति में कुण्डली में वेशि योग का निर्माण होता है।
☸ इसके अलावा जातक की कुण्डली मेंयदि सूर्य पर किसी अशुभ ग्रह का प्रभाव या किसी अशुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो सूर्य पर एक से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रभाव भी कुण्डली में बनने वाले शुभ योगों यानि वेशि योग के शुभ फलों को बहुत कम कर देता है।
☸ इसके साथ ही कुण्डली में सूर्य पाप ग्रहों से मुक्त और मजबूत स्थिति में भी होना इस योग की स्थिति में आवश्यक होता है।
☸ किसी जातक की जन्म कुण्डली में इस योग के बनने से व्यक्ति के लम्बे समय से बिगड़े हुए काम जल्द ही बन जाते हैं। इस योग के कारण व्यक्ति अपने भविष्य में धन संपति तथा यश और कीर्ति की प्राप्ति करता है। इसके अलावा जातक को अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने में बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है तथा धन लाभ के अवसर भी जातक को प्राप्त होते हैं।
वाशि योग के फल
☸ जन्म कुण्डली में सूर्य से बारहवें भाव में चन्द्रमा के अतिरिक्त किसी भी अन्य ग्रह के स्थित होने पर वासी योग का निर्माण होता है। यह योग बारहवें भाव में विराजमान ग्रह के आधार पर ही शुभ या अशुभ फलों की प्राप्ति कराता है।इस भाव में शुभ ग्रह की स्थिति जातक को ज्ञानी और गुणवान बनाती है।
☸ इसके अलावा यदि किसी जातक की कुण्डली के चौथे घर में सूर्य की उपस्थिति है तथा कुण्डली के तीसरे घर में चन्द्रमा, राहु तथा केतु के अलावा कोई अन्य ग्रह स्थित है तो भी जातक की कुण्डली में वाशि योग का निर्माण होता है।
☸ यदि किसी जातक की कुण्डली में सूर्य पर किसी अशुभ ग्रहों का प्रभाव या अशुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसी स्थिति में सूर्य के अशुभ प्रभावों में जातक की कुण्डली में बना वाशि योग बहुत कम फलदायी होता है। यूँ कहें तो वाशि योग के शुभ फलों में सूर्य के बल तथा स्थिति के आधार पर बहुत अंतर आ जाता है।
☸ जातक की कुण्डली में इस योग के बनने से जातक का जीवन हर तरह की सुख-सुविधाओं से भरा रहता है। यह योग किसी व्यक्ति को बुद्धि ज्ञान और धन की प्राप्ति कराता है।
☸ इस योग से मिलने वाले शुभ प्रभावों से जातक के जीवन में विदेश यात्रा के योग बनते हैं तथा जातक का जीवन हर तरह से सुखमय रहता है। कुछ परिस्थितियों में यह योग जातक को अपने जन्म स्थान से कहीं दूर उसको सफलता प्राप्त कराता है।
☸ कुण्डली में वाशि योग का निर्माण हो तो जातक अपने शिक्षा क्षेत्र से अत्यधिक सफलता प्राप्त कर अपने जीवन में खूब आगे बढ़ता है।
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