Guru Gobind Singh Jayanti गुरु गोविन्द सिंह जयन्ती, 17 जनवरी 2024

गुरु गोविन्द सिंह जयन्ती भी एक विशेष पर्व है। इस जयंती के दौरान सभी सिख गुरु पूरे धूम-धाम से इस पर्व को मनाते हैं। गुरु गोविन्द सिंह जयन्ती को एक प्रकाश का पर्व भी कहते हैं। वे सिख धर्म के अंतिम गुरु थे। सिख धर्म में गुरु गोविन्द सिंह का बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। सिख धर्म के लिए उन्होंने कई सारे नियम बनाये जिसका पालन आज तक किया जाता रहा है। गुरु गोविन्द सिंह जी ने गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु के रूप में स्थापित किया साथ ही उन्होंने सामाजिक समानता का अत्यधिक समर्थन किया गुरु गोविन्द सिंह जी का जन्म पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को बिहार के पटना में हुआ था। गुरु गोविन्द सिंह जी बहुत से लोगों के लिए एक प्रेरणा के रूप में खड़े हुए क्योंकि वह हमेशा दमन और भेदभाव के खिलाफ खड़े हुए थे।

गुरु गोविन्द सिंह जी का इतिहास

सिख धर्म के दसवें गुरू कहे जाने वाले गुरु गोविन्द सिंह का जन्म 22 दिसंबर 1666 ईन को पटना, बिहार में हुआ था। वह एक बहुत ही बड़े महान योद्धा थे तथा चिन्तक, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे गुरु गोविन्द सिंह जी के कुछ अन्य नाम इस प्रकार से कलगीधर, दशमेश तथा बाजावाले भी थे। वर्ष 1670 में गुरु गोविन्द सिंह जी का पूरा परिवार पटना छोडकर पंजाब आ गया और उसके दो वर्ष पश्चात ही 1672 में चक्क जानकी नामक शिवालिक पहाड़ियों के बीच जाकर रहने लगे थे यहीं पर रहकर गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपनी फारसी और संस्कृत की शिक्षा ली और एक महान योद्धा बन गये।

गुरु गोविन्द सिंह सिखों के गुरू कैसे बने

जिस समय कश्मीरी पंडितों का जबरदस्ती धर्म परिवर्तन किया जा रहा था उसी समय यह सारी फरियाद लेकर वह सभी पंडित गुरु तेग बहादुर के पास आ पहुँचे और उन्होंने तेग बहादुर से कहा की औरंगजेब ने हम सभी पंडितों के सामने कुछ इस प्रकार की शर्त रखी है कि जो अपना धर्म परिवर्तन नही करा सकता वह यदि अपना बलिदान दे तो उसका धर्म परिवर्तन नही करवाया जायेगा उस समय गुरु तेग बहादुर के पुत्र यानि गुरु गोविंद सिंह जी मात्र 09 वर्ष के ही थे उन्होंने अपने पिताजी से कहा की आपसे बड़ा महान कौन है अपने पुत्र की यह बात सुनते ही गुरु तेग बहादुर उन पंडितों के साथ चल दिये और कश्मीरी पंडितों के धर्म परिवर्तन के खिलाफ आवाज उठाने के कारण 11 नवम्बर 1675 को औरंगजेब ने दिल्ली के चाँदनी चैक पर सबके सामने गुरु तेग बहु बहादुर का गला कटवा दिया। उसके बाद सिखों के गुरु के रूप में वैशाखी के दिन 29 मार्च 1676 को गुरु गोविन्द सिंह सिखों के दसवे गुरु बन गये।

गुरु गोविन्द सिंह के जीवन से जातक को मिलने वाली प्रेरणा

गुरु गोविन्द सिंह के जीवन से मिली प्रेरणाओं की बात करें तो उनका जीवन सभी लोगों के लिए बहुत ही ज्यादा प्रेरणा देने वाला होता है। उनके पिता की मृत्यु हो जाने के बाद मात्र 09 वर्ष की उम्र में ही गुरु गोविंन्द सिंह ने सिखों के गुरु होने की जिम्मेदारी ली थी । इसके अलावा बहुत छोटी सी उम्र में ही उन्होंने धनुष, बाण, तलवार तथा भाला चलाने की भी कला सीख ली और अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा मे गुजार दिया। इनके जीवनी से हमे यह प्रेरणा मिलती है कि चाहे कोई भी परिस्थिति हो हमें हिम्मत नहीं हारना चाहिए अपने व्यक्तित्व को निखारने के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।

गुरु गोविन्द सिंह के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें

☸ गुरू गोविन्द सिंह इतने महान व्यक्ति थे उन्होंने मुस्लिमों के अत्याचार, अन्याय तथा भूख से सभी गरीबों की रक्षा करने के लिए पूरे 14 युद्ध लड़े थें।

☸ गुरु गोविन्द सिंह जी ने धर्म की रक्षा करने के लिए अपने पूरे परिवार का बलिदान दे दिया जिसके कारण उन्हे सरबंसदानी भी कहा गया।

☸ गुरु गोविंद सिंह के तीन विवाह हुए थे जिससे उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति हुई थी।

☸ गुरू गोविन्द सिंह का जन्म पटना के जिस घर में हुआ था वर्तमान समय में तखत श्री हरिमंदर जी पटना साहिब स्थित है।

☸ गुरु गोविन्द सिंह एक बहुत ही विद्वान् संरक्षक थे उनके दरबार में पूरे 52 कवियों और लेखक उपस्थित होने के कारण गुरु गोविंद सिंह जी को संतो का सिपाही कहा जाता है।

☸ गुरु गोविन्द सिंह जी ने सभी सिखों को पांच ककार केश, कड़ा, कंघा, कच्छा और कृपाड़ धारण करने को कहा जिनका पालन आज होता रहा है।

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