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Ganesh chaturthi: इतिहास, अवतार और महिमा

गणेश चतुर्थी का पर्व गणेश जी की महिमा और उनकी शक्ति को समर्पित है। यह पर्व विशेष रूप से महाराष्ट्र में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। गणेश जी को विघ्नहर्ता और सुखकर्ता माना जाता है और उनका आशीर्वाद सभी को मिलना सौभाग्यशाली माना जाता है।

गणेश चतुर्थी का ऐतिहासिक महत्व:

गणेशोत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र की राजधानी पुणे से हुई थी और इसका इतिहास मराठा साम्राज्य के सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ा हुआ है। जब भारत में मुगल शासन था, तब सनातन संस्कृति को बचाने के उद्देश्य से छत्रपति शिवाजी ने अपनी माता जीजाबाई के साथ मिलकर गणेश चतुर्थी का आयोजन शुरू किया। इस प्रकार गणेश महोत्सव की परंपरा की नींव रखी गई।

गणेश जी के जन्म और अवतार:

गणेश जी ने विभिन्न युगों में कई अवतार लिए हैं:

  1. सतयुग: कश्यप और अदिति के यहाँ महोत्कट विनायक नाम से जन्म लिया और देवांतक और नरांतक का वध किया।
  2. त्रेतायुग: उमा के गर्भ से जन्म लिया और सिंधु नामक दैत्य का विनाश करने के बाद मयुरेश्रर नाम से विख्यात हुए।
  3. द्वापरयुग: माता पार्वती के यहाँ पुनः जन्म लिया और गणेश कहलाए। उन्होंने ऋषि पराशर के संरक्षण में महाभारत लिखी।

गणेश जी के परिवार:

गणेश जी की दो पत्नियाँ हैं – रिद्धि और सिद्धि, जो भगवान विश्वकर्मा की पुत्रियाँ हैं। रिद्धि से शुभ और सिद्धि से लाभ का जन्म हुआ है। इसके अलावा, गणेश जी की एक पुत्री भी है जिनका नाम संतोषी है, जिन्हें हम संतोषी माता के नाम से जानते हैं।

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गणेश जी के विभिन्न अवतार और उनका महत्व:

गणेश जी के 12 प्रमुख नाम हैं – सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन। प्रत्येक नाम के पीछे एक कथा है और प्रत्येक अवतार का रंग अलग-अलग है। शिवपुराण के अनुसार, गणेश जी के शरीर का मुख्य रंग लाल और हरा है, जिसमें लाल रंग शक्ति और हरा रंग समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

गणेश जी के वाहन और उनका महत्व By Astrologer K.M. Sinha

Ganesh chaturthi इतिहास, अवतार और महिमा
Ganesh chaturthi इतिहास, अवतार और महिमा

हर युग में गणेश जी ने अलग-अलग वाहन का उपयोग किया। सतयुग में उनका वाहन सिंह था, जो उनकी शक्ति और वीरता का प्रतीक था। त्रेतायुग में उन्होंने मयूर का वाहन के रूप में उपयोग किया, जिससे उनकी सुंदरता और सौम्यता का परिचय मिलता है। द्वापरयुग में उनका वाहन मूषक था, जिसका नाम डिंक था और वह पूर्व जन्म में एक गंधर्व था। मूषक के रूप में गणेश जी ने अपनी सूक्ष्मता और तीव्र बुद्धि का परिचय दिया। कलियुग में गणेश जी का वाहन घोड़ा है, जो गति और उन्नति का प्रतीक है। इन विभिन्न वाहनों के माध्यम से गणेश जी ने प्रत्येक युग में अपनी विशेषताओं और योग्यताओं को प्रकट किया।

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पूजा और अर्पण के नियम:

गणेश जी को तुलसी, टूटे हुए अक्षत, केतकी का फूल, सफेद फूल, सफेद जनेऊ, सफेद वस्त्र और सफेद चंदन अर्पित नहीं किए जाते हैं। यह विशेष नियम हैं जिनका पालन किया जाना चाहिए।

गणेश चतुर्थी का महत्त्व:

गणेश चतुर्थी का पर्व हमारे सनातन संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हमें हमारी परंपराओं और देवी-देवताओं के प्रति श्रद्धा बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है। इस पावन अवसर पर हम गणेश जी की पूजा-अर्चना करते हैं और उनसे जीवन में सुख, समृद्धि और विघ्नों का नाश करने की प्रार्थना करते हैं।

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