Hal Sashti Vrat Katha | हल षष्ठी की व्रत कथा व विशेषताएँ और धार्मिक महत्व

हलषष्ठी व्रत कथा 2024:

हलषष्ठी या ऊब छठ पर्व भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। 2024 में यह पर्व 24 अगस्त को आएगा। यह दिन विशेष रूप से भगवान बलराम के जन्मदिन के रूप में प्रसिद्ध है। बलराम, जो भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई हैं, उनके जन्मदिन के रूप में इस दिन की पूजा की जाती है। इस दिन को विभिन्न क्षेत्रों में चंद्र षष्ठी, चंदन षष्ठी और चानन छठ के नाम से भी जाना जाता है।

बलराम और हलषष्ठी का संबंध

बलराम, जिन्हें बलदाऊ या बलभद्र भी कहा जाता है, भगवान कृष्ण के बड़े भाई हैं। बलराम के पास ‘हल’ नामक शस्त्र था, जो कृषि का प्रतीक है। उनका जन्म दिवस इस दिन के साथ जुड़ा हुआ है, इसलिए इस पर्व को ‘हलषष्ठी’ कहा जाता है। बलराम को कृषि, खेती और कृषक कार्यों का देवता माना जाता है। इस दिन बलराम की पूजा करके कृषकों की समृद्धि और खुशहाली की कामना की जाती है।

पर्व की विशेषताएँ और धार्मिक महत्व

पूजा और व्रत की विधि:

पूजा सामग्री में कुमकुम, चावल, चंदन, सुपारी, पान, कपूर, फल, सिक्का, सफेद फूल, अगरबत्ती और दीपक शामिल होते हैं। इन वस्तुओं का उपयोग पूजा के दौरान भगवान को अर्पित करने और विशेष पूजा अनुष्ठानों को पूरा करने के लिए किया जाता है।

पूजा विधि में पहले महिलाएं शाम को स्नान करके नए और स्वच्छ कपड़े पहनती हैं। इसके बाद, वे मंदिर या घर में भगवान बलराम, लक्ष्मी जी, गणेश जी, या अपने इष्ट देवता की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान चंदन से तिलक किया जाता है और अक्षत अर्पित किए जाते हैं। सिक्का, फूल, फल, और सुपारी चढ़ाए जाते हैं, और दीपक व अगरबत्ती जलाए जाते हैं। चांद के उगने पर उसे अर्ध्य दिया जाता है, और अर्ध्य देने के बाद व्रत समाप्त होता है।

हलषष्ठी व्रत कथा 2024:

किसी समय एक गांव में एक साहूकार और उसकी पत्नी रहते थे। साहूकार की पत्नी रजस्वला होने के बावजूद सभी प्रकार के काम कर लेती थी—रसोई में जाकर खाना बनाना, पानी भरना, और अन्य घरेलू कार्यों में हाथ बटाना उसकी दिनचर्या का हिस्सा था। साहूकार और उसकी पत्नी का एक पुत्र था। उनके पुत्र की शादी के बाद साहूकार और उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई।

उनकी मृत्यु के बाद, साहूकार और उसकी पत्नी को पुनर्जन्म मिला। साहूकार एक बैल के रूप में और उसकी पत्नी कुतिया के रूप में जन्मे। ये दोनों अपने पुत्र के घर पर ही थे। बैल खेतों में हल चलाने का काम करता था और कुतिया घर की रखवाली करती थी। एक दिन, श्राद्ध के मौके पर, उनके पुत्र ने विभिन्न पकवान बनाए और खीर भी तैयार की।

इस बीच, एक चील अपने मुंह में एक मरा हुआ सांप लेकर उड़ती हुई वहां आई। अचानक, वह सांप चील के मुंह से गिरकर खीर में मिल गया। कुतिया ने यह देखा और सोचा कि यदि लोग इस खीर को खा लेंगे, तो इससे कई लोग बीमार हो सकते हैं या उनकी मृत्यु हो सकती है। कुतिया ने तुरंत खीर में मुंह डाल दिया ताकि कोई उसे न खा सके।

पुत्र की पत्नी ने कुतिया को खीर में मुंह डालते हुए देखा और गुस्से में आकर उसे एक मोटे डंडे से पीट दिया। चोट इतनी तीव्र थी कि कुतिया की पीठ की हड्डी टूट गई और उसे बहुत दर्द हुआ। रात को, कुतिया ने बैल से कहा, “आज तुम्हारे लिए श्राद्ध हुआ है और तुम्हें भरपेट भोजन मिला होगा, लेकिन मुझे न तो खाना मिला और न ही कोई अन्य सुविधा, बल्कि मैं पीटी भी गई।”

बैल ने जवाब दिया, “मुझे भी भोजन नहीं मिला, क्योंकि मैं दिनभर खेत में काम करता रहा।” ये बातें बहू ने सुन ली और उसने अपने पति को इस बारे में बताया। इसके बाद, उन्होंने एक पंडित को बुलाया और घटना की पूरी जानकारी दी।

पंडित ने अपनी ज्योतिष विद्या के माध्यम से पता लगाया कि कुतिया साहूकार की पत्नी और बैल साहूकार स्वयं हैं। पंडित ने यह भी बताया कि इस स्थिति का कारण यह था कि कुतिया ने रजस्वला होते हुए भी सभी कार्यों में हस्तक्षेप किया। पंडित ने कहा कि उन्हें इस योनि से मुक्त करने का एक उपाय है।

पंडित ने सलाह दी कि एक कुंवारी कन्या भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि (ऊब छठ) का व्रत करे। व्रत के दौरान शाम को स्नान करके पूजा करे और चांद के उगने पर उसे अर्ध्य दे। अर्ध्य का पानी यदि बैल और कुतिया पर गिरे, तो वे मोक्ष प्राप्त कर सकेंगे।

जैसा कि पंडित ने बताया था, एक कुंवारी कन्या ने ऊब छठ का व्रत किया। उसने पूजा की और चांद को अर्ध्य दिया। अर्ध्य का पानी जमीन पर गिरकर बहते हुए बैल और कुतिया पर गिरने की व्यवस्था की। इस पानी के गिरने से बैल और कुतिया को मोक्ष प्राप्त हुआ और वे इस दुखद योनि से छुटकारा पा गए।

इस प्रकार, ऊब छठ माता के आशीर्वाद से कुतिया और बैल का उद्धार हुआ। यह कथा बताती है कि इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति अपने पूर्वजन्म के पाप और कष्टों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है और एक नई शुरुआत कर सकता है। यह कथा लेखक और पाठकों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है।

पर्व का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

हलषष्ठी, बलराम की पूजा के साथ-साथ एक विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। यह पर्व कृषि से जुड़े कार्यों और कृषक समुदाय की समृद्धि के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। व्रति और भक्त इस दिन उपवास रखकर, पूजा-अर्चना करके और चंद्रमा को अर्ध्य देकर अपने परिवार की खुशहाली और समृद्धि की कामना करते हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था को प्रकट करता है, बल्कि यह कृषि और समाज के उत्थान के लिए भी महत्वपूर्ण है।

हलषष्ठी, बलराम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व धार्मिक आस्था, परिवार की समृद्धि और कृषि के महत्व को दर्शाता है। इस दिन के विशेष व्रत और पूजा विधि का पालन करके भक्त अपने जीवन में सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति की कामना करते हैं।

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