हिन्दू धर्म के पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है। आपको बता दें हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है। यह व्रत भगवान विष्णु जी को पूरी तरह से समर्पित होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो भक्त एकादशी तिथि का व्रत रखता है उसे भगवान श्री विष्णु जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसके अलावा मृत्यु के पश्चात उस व्यक्ति को सीधा मोक्ष की प्राप्ति होता है। जया एकादशी का यह पर्व हर माह में दो बार एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। इस एकादशी तिथि को भूमि एकादशी भी कहा जाता है। यह एकादशी तिथि सभी भक्तों के लिए बहुत ही ज्यादा पुण्य फलदायी माना जाता है। मान्यता के अनुसार जया एकादशी का व्रत करने से जातक को नीच यानि से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है साथ ही जातक की मृत्यु के बाद उस कभी भूत-प्रेम नही बनना पड़ता है।
जया एकादशी का महत्व
सनातन धर्म की परम्परा के अनुसार हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत ही उत्तम महत्व माना जाता है। जया एकादशी का महत्व संसार के सारे पापों का नाश करने, धर्म की रक्षा करने तथा आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करने के लिए भी माना जाता है। इस एकादशी के व्रत को करने से जातक के पूर्व जन्म में किये गये सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा उन पर भगवान श्री विष्णु जी की कृपा दृष्टि बनी रहती है। एकादशी तिथि का व्रत श्रद्धापूर्वक करने से जातक को उसका अगला जन्म अच्छे कुल में होता है। पद्म पुराण के अनुसार इस व्रत को श्रद्धापूर्वक पूर्ण कर लेने से ही जातक को सभी प्रकार के दान तथा सभी महत्वपूर्ण यज्ञों से मुक्ति मिल जाती है। इसके अलावा इस व्रत को करने से व्रत करने वाले जातक को अग्निष्टोम यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है।
जया एकादशी व्रत कथा
एक बाद बहुत समय पहले अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण जी से प्रश्न करते हुए कहा- कि हे प्रभु आप मुझे माघ माह में पड़ने वाले जया एकादशी के व्रत के बारे में विस्तार से बताइयें।
तभी भगवान श्री कृष्ण ने जया एकादशी के बारे में बताते हुए कहा कि- हे अर्जुन! माघ माह में पड़ने वाली एकादशी को ही जया एकादशी के नाम से जानते है। इस दिन उपवास करने से जातक को भूत-प्रेत इत्यादि की योनि से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है। मैं तुम्हें कथा सुनाता हूँ ध्यानपूर्वक सुनो।
एक समय की बात हैं नंदन वन में उत्सव का आयोजन हो रहा था वहाँ देवता ऋषि मुनि सभी लोग मौजूद थे। वहाँ पर स्थित गंधर्वों में से एक मूल्यवान नामक का गंधर्व भी था जो बहुत सुरीला गाता था। वह वहाँ स्थित एक पुष्पवती पर आकर्षित होकर अपने गाने का सुर भूल गया जिसके कारण उसके संगीत की लय टूट गई यह देख वहाँ स्थित सभी देवी-देवता क्रोधित हो उठे। इन्द्रदेव ने मूल्यवान की यह हरकत देखते हुए नाराज होकर उसे श्राप दे दिया कि इस स्वर्ग लोक से वंचित होकर तुम मृत्यु लोक में भूत और पिशाचों जैसा जीवन जियोगे क्योंकि तुमनें संगीत की पवित्र साधना को भंग करके उसका घोर अपमान किया है।
इन्द्रदेव के इस श्राप से मूल्यवान पिशाची जीवन जीने लगा जो कि बहुत ही ज्यादा कष्टदायी था। एक बार माघ माह के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी के दिन उन दोनों ने ही कुछ भी खाया-पीया नही था और नाहि कोई पाप कर्म किया था। केवल फूल और फल खाकर अपना पूरा दिन जंगल में व्यतीत किया। अत्यधिक ठंड के कारण दोनों एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गये और बहुत मुश्किल से पूरी रात काटी। पूरी रात उन्हें अपनी गलती का पछतावा होता रहा और उन्होंने भविष्य में ऐसी गलती कभी न करने का फैसला लिया और अगला दिन दोनों की मृत्यु हो गई।
अंजाने में ही उन दोनों ने जया एकादशी के व्रत को पूर्ण किया जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई और दोनों ही पुनः अत्यधिक सुन्दर रूप में आकर स्वर्ग लोक चले गये।
जब इन्द्रदेव ने उन दोनों को पुनः देखा तो वे आश्चर्यचकित हो गये और उन्होंने उन दोनों से पूछा कि तुम दोनों को मेरे दिये हुए श्राप से मुक्ति कैसे मिल गई तब उन्होंने बताया कि उन पर भगवान विष्णु जी की कृपा है। हमने अंजाने में जया एकादशी के व्रत को पूर्ण किया था इसलिए भगवान श्री विष्णु जी ने हमें इस श्राप से मुक्त कर दिया। इस तरह से मूल्यवान तथा उस अप्सरा को पिशाची जीवन से मुक्ति मिली थी। वास्तव में जया एकादशी का व्रत श्रद्धापूर्वक करने से पूर्व जन्म में किये गये पापों से मुक्ति मिलती है साथ ही भगवान श्री विष्णु जी की कृपा दृष्टि हमेशा आप पर बनी रहती है।
जया एकादशी पूजन विधि
☸ हिन्दू धर्म में माघ माह में पड़ने वाली जया एकादशी तिथि को उपवास रखने के लिए एक सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।
☸ जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी की श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। यह त्योहार भगवान विष्णु जी को पूरी तरह से समर्पित होता है। इस दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में जगकर स्नान कर लेना चाहिए।
☸ उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूजा स्थल की साफ-सफाई करनी चाहिए।
☸ पूजा वाले स्थान पर गंगाजल छिड़क कर उसे अच्छी तरह से पवित्र कर लेना चाहिए।
☸ पूजा वाले स्थान पर भगवान श्री विष्णु जी की मूर्ति या तस्वीर रखकर भगवान विष्णु जी को चंदन का लेप, तिल, फल अर्पित कर धूप और दीपक जलाकर पूजा करनी चाहिए।
☸ पूजा के दौरान भगवान श्री कृष्ण का भजन और विष्णु सहस्त्रनाम तथा नारायण स्त्रोत का पाठ करना बहुत ही ज्यादा शुभ माना जाता है।
☸ पूजा समाप्त हो जाने के बाद भगवान विष्णु जी को मिठाई या कोई बनाया हुआ भोग नारियल, अगरबत्ती तथा पुष्प अर्पित करना चाहिए।
☸ साथ ही पूजा के दौरान भगवान विष्णु जी के मंत्रों का जाप करना चाहिए।
☸ उसके बाद द्वादशी तिथि के दिन ब्राह्मणों या फिर गरीब और जरूरतमंद लोगों को भोजन कराकर उन्हें एक जनेऊ और सुपारी देना चाहिए।
☸ व्रत के अगले दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा कर लेने के बाद ही व्रत का पारण करना चाहिए।
☸ श्रद्धापूर्वक व्रत रखने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद तथा कृपा हमेशा आप पर बनी रहती है।
जया एकादशी शुभ मुहूर्त
20 फरवरी 2024 को मंगलवार के दिन जया एकादशी का व्रत रखा जायेगा।
एकादशी तिथि प्रारम्भः- 19 फरवरी 2024 सुबह 08ः49 मिनट से।
एकादशी तिथि समाप्तः- 20 फरवरी 2024 सुबह 09ः55 मिनट तक।
व्रत पारण मुहूर्तः- 21 फरवरी 2024 को सुबह 06ः55 मिनट से सुबह 09ः11 मिनट तक।