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4 माह के लिए योगनिद्रा में चल गयें भगवान विष्णु, अब कौन संभालेगा धरती का भार?

 देवशयनी एकादशी और धरती का भार

देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं, जिससे धरती का भार विभिन्न देवताओं के कंधों पर आ जाता है। आइए जानते हैं कि इस समयावधि में किस-किस देवता ने धरती का भार संभाला:

  1. गुरु पूर्णिमा (4 दिन):

देवशयनी एकादशी से 4 दिन बाद गुरु पूर्णिमा आती है, तब तक गुरुदेव धरती का भार संभालते हैं।

  1. श्रावण मास (1 माह):

गुरु पूर्णिमा के अगले दिन से श्रावण मास प्रारम्भ हो जाता है और इस पूरे महीने भगवान शिव पृथ्वी का भार संभालते हैं।

  1. भाद्रपद के 19 दिन:

श्रावण मास के बाद भाद्रपद के 19 दिनों तक भगवान कृष्ण धरती का भार संभालते हैं।

  1. गणेश चतुर्थी (10 दिन):

भगवान कृष्ण के बाद 10 दिनों तक अर्थात गणेश चतुर्थी तक भगवान गणेश धरती का भार संभालते हैं।

  1. पितृपक्ष (16 दिन):

गणेश चतुर्थी के बाद 16 दिनों तक पितृदेव धरती का भार संभालते हैं।

  1. नवरात्रि (10 दिन):

पितृपक्ष के बाद, नवरात्रि में 10 दिनों तक माता रानी धरती का भार संभालती हैं।

  1. दिवाली तक (10 दिन):

नवरात्रि के बाद दिवाली तक माता लक्ष्मी धरती का भार संभालेंगी।


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  1. आखिरी के 10 दिन:

 दिवाली के आखिरी 10 दिनों तक कुबेर जी धरती का भार संभालते हैं और फिर देवउठनी एकादशी आ जाती है।

 देवउठनी एकादशी

देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु पुनः योगनिद्रा से जागते हैं और पृथ्वी का भार संभाल लेते हैं।

महत्व

देवउठनी एकादशी, जिसे देव प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा (चातुर्मास) के बाद जागते हैं। इस एकादशी को भगवान विष्णु के जागरण का पर्व माना जाता है और इसके साथ ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है।

 निष्कर्ष

इस प्रकार, देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक, विभिन्न देवता बारी-बारी से धरती का भार संभालते हैं। यह प्रथा भारतीय धर्म और संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।

इस लेख में हमने जाना कि कैसे प्रत्येक देवता ने अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाई और धरती का संतुलन बनाए रखा। यह जानकारी न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि हमें हमारे धार्मिक त्योहारों और उनके महत्व को समझने में भी मदद करती है।

 


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