सामान्यतः एकादशी का पर्व माह में दो बार आता है, चैत्र माह में पड़ने वाले कृष्ण पक्ष के एकादशी तिथि को पापमोचिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। हिन्दू धर्म में पापमोचिनी एकादशी के अर्थ को बताते हुए यह कहा गया है कि यह एकादशी पापों का नष्ट करने वाली एकादशी हैं इसके अलावा हिन्दू धर्म में यह भी बात कहीं गई है कि इस सृष्टि पर ऐसा कोई भी व्यक्ति नही हैं जिसने जाने या अनजाने में कोई पाप न किया हो, ऐसे में पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखकर अनजाने में हुए पापों से भी बचा जा सकता है। इस एकादशी वाले दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
पापमोचिनी एकादशी का महत्व
हिन्दू धर्म में किये जाने वाले पापमोचिनी एकादशी की पूजा का वर्णन प्राचीन काल के भविष्योत्तर पुराण और हरिवासर पुराण में किया गया है। मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्री विष्णु जी के इस पापमोचिनी एकादशी के व्रत को करने से व्यक्ति के पिछले जन्म में किये गये पाप भी दूर हो जाते हैं इसके अलावा इस दिन गौ दान करने से भी आपको पुण्य की प्राप्ति होती है। पापमोचिनी एकादशी के व्रत का पालन जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक करता है उसे इस जन्म में सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है साथ ही मृत्यु के बाद भगवान विष्णु जी के स्वर्गिक साम्राज्य में बैकुंठ की प्राप्ति होती है।
पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा
प्राचीन समय में एक चैत्ररथ नामक वन था वहाँ पर बहुत सारी अप्सराएँ किन्नरों के साथ क्रीडा करती थीं। वहाँ पर सदैव वसंत का मौसम रहता था और अनेक प्रकार के पुष्प भी खिलते रहते थें। उसी वन में एक मेधावी नामक ऋषि तपस्या में लीन रहते थें वे एक शिव भक्त थे। एक दिन मंजूघोषा नामक एक अप्सरा ने उनको मोहित करके उनकी निकटता का लाभ उठाने का प्रयास किया और मेधावी मुनि का ध्यान भंग करने में वह सफल हो गयी तथा मेधावी मुनि भी उस पर मोहित हो गयें।
एक दिन जब मंजूघोषा स्वर्ग जाने के लिए ऋषि मेधावी से अनुमति माँगी तो मेधावी ऋषि को अपनी भूल और वर्षों से कर रहे तपस्या के भंग हो जाने का आत्मज्ञान हुआ। यह सब सोचते हुए मेधावी ऋषि ने क्रोधित होकर मंजूघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया। श्राप मिलते ही अप्सरा ऋषि के पैरों में जा गिरी और ऋषि के दिये हुए श्राप से मुक्ति पाने का उपाय पूछा। मेधावी ऋषि ने मंजूघोषा को पापमोचिनी एकादशी व्रत करने का उपाय बताया, उन्होंने कहा कि इस एकादशी के व्रत को करने से तुम्हारे किये हुए सभी पाप नष्ट हो जायेंगे और तुम पुनः अपने स्वरूप को प्राप्त कर लोगी।
अप्सरा को दिये हुए श्राप से मुक्ति का मार्ग बताकर मेधावी ऋषि अपने पिता के पास पहुँचे, उनके पिता ने जब मेधावी ऋषि की पूरी बात सुनी तो उन्होंने कहा कि पुत्र तुमने यह अच्छा नही किया है ऐसा करके तुमने भी बहुत से पाप कमाये हैं इसलिए तुम भी पापमोचिनी एकादशी का व्रत करो, इस तरह से पापमोचिनी एकादशी का व्रत करके अप्सरा मंजूघोषा ने श्राप से और ऋषि मेधावी ने पाप से मुक्ति पाई।
पापमोचिनी एकादशी पूजा विधि
☸ पापमोचिनी एकादशी के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त होने के बाद इस व्रत को करने का संकल्प लें।
☸ इसके बाद ब्रह्म मुहूर्त में षोडशोपचार विधि से भगवान श्री विष्णु जी की पूजा-अर्चना करें।
☸ भगवान विष्णु जी को धूप, दीप, चंदन और अन्य प्रकार के फल-फूल इत्यादि अर्पित करें एवं उनकी विधिपूर्वक पूजा एवं आरती करें।
☸ पापमोचिनी एकादशी के दिन यदि संभव हों पाये तो जरूरतमंद व्यक्तियों और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें और भोजन अवश्य करायें।
☸ भगवान श्री विष्णु जी के लगाये जाने वाले भोग में तुलसी का पत्ता अवश्य अर्पित करें और संभव हो तो रात्रि जागरण भी अवश्य करें।
☸ इस व्रत में अन्न का सेवन करने के बजाए फलाहार का सेवन करें।
☸ अगले दिन द्वादशी तिथि पर व्रत का पारण भगवान श्री विष्णु जी की पूजा के बाद करें।
पापमोचिनी एकादशी शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारम्भः- 04 अप्रैल 2024, शाम 04ः14 मिनट से,
एकादशी तिथि समाप्तः- 05 अप्रैल 2024, दोपहर 01ः28 मिनट पर।