हिन्दू धर्म की मान्यतायों के अनुसार भाद्रपद यानि भादो माह में सूर्य जब अपना राशि परिवर्तन करते हैं तो उस समय आने वाले संक्रान्ति को ही सिंह संक्रान्ति कहा जाता है। इसके अलावा दक्षिण भारत में आने वाली संक्रान्ति को सिंह संक्रमण के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि सिंह संक्रान्ति के दिन ही भगवान विष्णु, सूर्य देव और भगवान नरसिंह की भी पूजा अर्चना की जाती है। वास्तव में यह पर्व कृषि और पशुपालन से जुड़ा हुआ एक लोक पर्व है। इस समय बरसात के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में छोटी-छोटी बालियां भी आने लगती हैं जिसे देखकर किसान अच्छी फसलों की कामना करते हुए खुशी मनाते हैं। इस पर्व में निकलने वाली बालियों को घर के मुख्य दरवाजे के ऊपर दोनो ओर ही गोबर से चिपकाया जाता हैं। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार इस पर्व में पशुओं को हरी घास का चारा खूब मिलता है जिससे की दूध में बढ़ोत्तरी होने के कारण इस समय दूध, मक्खन, दही और घी भी प्रचूर मात्रा में पाया जाता है।
सिंह संक्रान्ति के दिन घी खाने का महत्व
सिंह संक्रान्ति के दिन के महत्वों की बात करें तो इस दिन विशेष रूप से गाय का शुद्ध देसी घी खाने का बहुत महत्व होता है। कहा जाता है कि इस दिन शुद्ध देसी घी खाने से जातक की स्मरण शक्ति, बुद्धि, ऊर्जा में वृद्धि होती हैं। देसी घी वास्तव में वात, पित्त बुखार और विशैले पदार्थों को नाश करने वाला माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से दूध से बने दही को मथ कर मक्खन तैयार किया जाता है और उसी मक्खन को धीमी आंच पर जलाकर घी तैयार किया जाता है। सिंह संक्रांति को घी संक्रांति या घीया संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। गढ़वाल में इस दिन के पर्व को घीया संक्रान्त ही कहा जाता है। इस पर्व के दिन उत्तराखंड में लगभग सभी लोगों को घी खाना आवश्यक माना जाता है।
सिंह संक्रांति के दिन सूर्य पूजा का महत्व
सिंह संक्रांति के दिन सूर्य पूजा का विशेष महत्व होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि सूर्य देव को पंच देवों में से एक माना जाता है। वास्तव में किसी भी शुभ कामों या मांगलिक कार्यक्रमों की शुरुआत करने से पहले गणेश जी, विष्णु जी, शिव जी, माँ दुर्गा तथा सूर्य देव की पूजा अवश्य की जाती है। सिंह संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा करने से पहले स्नानादि से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र पहनकर गाय का दूध, गंगाजल, लाल पुष्प, चावल या अक्षत और कुमकुम आदि से सूर्य भगवान की विधिवत पूजा अर्चना की जाती है। पूजा समाप्त होने के बाद ताँबे के लोटे से सूर्य देव को जल अर्पित करने के दौरान ‘ओम सूर्याय नमः’ या ओम आदित्याय नमः का 108 बार जाप कर सूर्य देव की कृपा प्राप्त करनी चाहिए
सिंह संक्रांति मनाने का तरीका
सिंह संक्रांति मनाने का तरीका वास्तव में हर जगह अलग-अलग होता है। अलग-अलग राज्यों के लोग इस पर्व को भी अपने संस्कृति के अनुसार ही मनाते हैं। सिंह संक्रांति के इस पर्व में कई तरह के पकवान बनाने की परम्परा होती है जिसमें से कुछ लोग दाल की भरवा रोटी, खीर बनाना शुभ मानते हैं। मान्यताओं के अनुसार दाल की रोटी के साथ ही लोग घी का भी सेवन करते हैं।
इसके अलावा एक बेटू की रोटी को घी के साथ खाने की परम्परा भी प्रचलित है इस रोटी को सभी लोगों के द्वारा उड़द की दाल पीसकर पीठा बनाया जाता है और उसे पकाकर देसी घी से खाया जाता है।
इस पर्व में इन सभी पकवानों के साथ अरवी की सब्जी के पत्तों की सब्जी बनाई जाती है इन्ही पत्तों को गाबा कहा जाता है। इसके अलावा समाज के अन्य वर्गों जैसे वस्तुकार, शिल्पकार, दस्तकार, बढ़ई तथा लोहार के द्वारा हाथ से बनाई जाने वाली कुछ महत्वपूर्ण चीजों को तोहफे के रूप में दान किया जाता है।
सिंह संक्रांति पर दान का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सिंह संक्रांति पर किया दान सामान्य दिनों की तुलना में बेहद पुण्यकारी होता है। इस दिन गरीबों या जरुरतमंदों को वस्त्र, कंबल, दाल-चावल, घी, गेंहू का विशेषतौर पर दान करना चाहिए। मान्यता है इससे भगवान विष्णु और सूर्य देव का विशेष वरदान प्राप्त होता है।
सिंह संक्रांति के दिन घी खाने का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो जातक सिंह संक्रांति के दिन घी का सेवन किसी कारणवश नही कर पाता है वह जातक अपने अगले जन्म में एक घोघें के रूप में जन्म लेता है। इसके अलावा घी का सेवन करने से जातक की जन्म कुण्डली में स्थित राहु और केतु के द्वारा उत्पन्न दोष या बुरे प्रभाव को नष्ट किया जा सकता है।
सिंह संक्रान्ति की पूजा विधि
✨सिंह संक्रान्ति के दिन भगवान विष्णु, सूर्य देव और नरसिंह भगवान की पूजा की जाती है।
✨इस दिन भक्त पवित्र नदी में स्नान करते हैं ।
✨स्नान के बाद देवताओं का नारियल पानी और दूध से अभिषेक किया जाता है।
✨पूजा के लिए ताजा नारियल पानी प्रयोग किया जाता है।
✨इस दिन भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है।
✨सिंह संक्रान्ति के दिन पूजा करने के बाद गरीबों में दान-पुण्य किया जाता है।
✨इसके बाद गाय के गोबर से मण्डप तैयार किया जाता है।
✨पूजा की सारी तैयारी करने के बाद भगवान शिव की पूजा की जाती है
✨अन्त में ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप किया जाता है।
सिंह संक्रान्ति पुण्य काल
सिंह संक्रान्ति पुण्य काल प्रारम्भ- प्रातः 06ः31 से दोपहर01ः44 तक
अवधि – 07 घण्टे 01 मिनट
सिंह संक्रान्ति महा पुण्य कालः- प्रातः 11ः31 से दोपहर 01ः44 तक
अवधि – 02 घण्टे 12 मिनट