हिन्दू धर्म में वरूथिनी एकादशी एक पवित्र दिन है जो वैशाख माह हिन्दू महीने के कृष्ण पक्ष में ग्यारहवें चन्द्र दिवस को पड़ता है। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार वरूथिनी एकादशी अप्रैल या मई के महीने में पड़ता है। वरूथिनी एकादशी के दिन सभी भक्तजन भगवान विष्णु जी के वामन अवतार, पाँचवें स्वरूप की पूजा-आराधना करते हैं। यह एकादशी व्यक्ति को सौभाग्य देने वाली, सभी पापों का नाश करने वाली तथा अंत में मोक्ष प्राप्त कराने वाली होती है।
वरूथिनी एकादशी का महत्व
वरूथिनी एकादशी के महत्व के अनुसार जो मनुष्य वरूथिनी एकादशी का व्रत रखता हैं उसे इस सृष्टि पर रहते हुए सम्पूर्ण सुख की प्राप्ति होती है। इस एकादशी के व्रत को करने से जातक को सौभाग्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है। यदि अविवाहित युवक या युवतियाँ अपने विवाह की कामना को लेकर यह व्रत करें तो इस व्रत को करने से विवाह होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। इस व्रत को करने से अनजाने में किये गये पूर्व जन्म के पापों से भी मुक्ति मिल जाती है।
कहा जाता है कि सूर्यग्रहण के दौरान दान-दक्षिणा करने से जिस फलों की प्राप्ति होती है वही फल इस व्रत को करने से भी प्राप्त हो जाता है। श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करने से मनुष्य लोक और परलोक दोनों में सुख की प्राप्ति करता हैै। वरूथिनी एकादशी का व्रत करने से अन्नदान और कन्या दान से मिलने वाले पूर्णों के बराबर ही फल की प्राप्ति होती है।
वरूथिनी एकादशी व्रत कथा
वरूथिनी एकादशी व्रत-कथा के अनुसार प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धता नामक राजा राज्य करता था। वह अत्यन्त दानशील तथा तपस्वी था। एक दिन जंगल में तपस्या करते समय उसके समक्ष एक भालू आया और उसके पैरों को चबाने लगा परन्तु राजा अपनी तपस्या में लीन था। कुछ समय बाद भालू राजा को घसीटकर जंगल में ले गया। राजा अत्यधिक घबराया हुआ था परन्तु तापस धर्म के अनुकूल उसने क्रोध और किसी प्रकार का हिंसा न करके भगवान विष्णु जी से प्रार्थना की और करूणा भाव से विष्णु जी को पुकारा उसकी पुकार सुनते ही श्रीहरि विष्णु जी प्रकट हो गयें। भगवान विष्णु जी ने अपने चक्र से भालू को मार डाला। अपने पैर को भालू द्वारा खा जाने के कारण राजा अत्यधिक शोकाकुल हुआ।
राजा को दुखी देखकर भगवान विष्णु जी बोले हे वत्स! तुम शोक मत करो, मथुरा जाकर वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरे ‘वराह अवतार’ की श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना करो, इस व्रत के प्रभाव से तुम पुनः सुदृढ़ अंगो वाले हो जाओगे। भालू नें जो तुम्हारे पैर को चबाया है ये तुम्हारे पूर्व जन्म में किये गये अपराध का फल था। विष्णु जी की आज्ञा का पालन करके राजा ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत किया इस किये गये व्रत के प्रभाव से राजा पहले जैसा ही सम्पूर्ण अंगों वाला हो गया इसलिए कहा जाता है जो व्यक्ति किसी भय से पीड़ित हैं, उसे वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान श्री विष्णु जी का स्मरण अवश्य करना चाहिए। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होता है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वरूथिनी एकादशी पूजा विधि
☸ वरूथिनी एकादशी के एक दिन पहले यानि दशमी तिथि की रात्रि को सात्विक भोजन करें।
☸ उसके बाद एकादशी तिथि के दिन सूर्योदय से पहले उठकर दैनिक कार्यों से निवृत होकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके एकादशी के व्रत का संकल्प लें।
☸ संकल्प लेने के बाद भगवान विष्णु जी को अक्षत, दीपक, नैवेद्य आदि सामग्री अर्पित करके विधिपूर्वक उनकी पूजा-अर्चना करें।
☸ पीपल के वृक्ष की जड़ में कच्चा दूध अर्पित करें उसकी पूजा करें तथा पीपल के वृक्ष के घी का दीपक जलायें।
☸ उसके बाद माँ तुलसी का भी विधिपूर्वक पूजन करें।
☸ माँ तुलसी का पूजन करने के दौरान ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करें।
☸ उसके बाद पूरे दिन उपवास रहें।
☸ रात्रि में पुनः भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना करें।
☸ संभव हो तो वरूथिनी एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु जी का ध्यान करते हुए रात्रि जागरण करें।
☸ व्रत के दौरान केवल फलाहार ही ग्रहण करें।
☸ एकादशी तिथि के अगले दिन यानि द्वादशी के दिन पारण करने से पूर्व भगवान विष्णु जी का पूजन करके किसी योग्य ब्राह्मण को भोजन करायें तथा दान-दक्षिणा अवश्य दें।
☸ उसके बाद व्रत का पारण शुभ मुहूर्त में ही करें।
वरूथिनी एकादशी शुभ मुहूर्त
वरूथिनी एकादशी का पर्व 04 मई 2024 को मनाया जायेगा।
एकादशी तिथि प्रारम्भः- 03 मई 2024 को रात्रि 11ः24 मिनट से,
एकादशी तिथि समाप्तः- 04 मई 2024 को रात्रि 08ः38 मिनट पर।
पारण का समयः- 05 मई 2024 को सुबह 05ः37 मिनट से, सुबह 08ः17 मिनट तक।