शेषनाग पर ही क्यों विश्राम करते हैं भगवान विष्णु?

शेषनाग पर ही क्यों विश्राम करते हैं भगवान विष्णु?

भगवान विष्णु के शेषनाग पर विश्राम करने की कथा एक महत्वपूर्ण पौराणिक संदर्भ से जुड़ी हुई है, जो माता कद्रू और उनके नाग पुत्रों के प्रति भगवान शिव और भगवान विष्णु की कृपा का वर्णन करती है।

शेषनाग पर ही क्यों विश्राम करते हैं भगवान विष्णु?

सनातन परंपरा में यह मान्यता है कि जैसे प्रत्येक देवी-देवता का अपना वाहन होता है, वैसे ही उनका अपना एक विशिष्ट आसन भी होता है। उदाहरण के लिए, भगवान शिव मृत शरीर की खाल पर बैठते हैं और उसे पहनते भी हैं। इसी तरह, भगवान विष्णु का आसन शेषनाग हैं और वे उन्हीं पर विश्राम करते हैं। आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा से कि भगवान विष्णु शेषनाग पर ही क्यों सोते हैं-

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माता कद्रू की तपस्या:

माता कद्रू, जो नागों की माता थीं, उनकी एक विशेष इच्छा थी कि उनके नाग पुत्रों को भगवान शिव और भगवान विष्णु का सानिध्य प्राप्त हो। यह सानिध्य उनके पुत्रों को सुरक्षा और शांति प्रदान कर सकता था। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए माता कद्रू ने एक लंबी और कठोर तपस्या शुरू की। उन्होंने जंगल में जाकर कई वर्षों तक ध्यान और तपस्या की, जिससे वे दोनों महादेव और श्री हरि नारायण को प्रसन्न कर सकें।

भगवान शिव और विष्णु का वरदान:

माता कद्रू की घोर तपस्या के फलस्वरूप भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों ने उन्हें दर्शन दिए। माता कद्रू की तपस्या और भक्ति से प्रभावित होकर दोनों देवताओं ने उनसे पूछा कि वे क्या वरदान चाहती हैं। इस पर माता कद्रू ने दोनों देवताओं से अपने नाग पुत्रों को उनके साथ रखने का वचन मांगा।

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नागों की परीक्षा:

भगवान शिव और भगवान विष्णु ने इस वचन को पूरा करने से पहले नागों की भक्ति की परीक्षा लेने का निर्णय लिया। नागों में यह देखा जाना था कि वे भगवान शिव और भगवान विष्णु के प्रति कितने समर्पित और विश्वासपूर्ण हैं। इसके लिए दोनों देवताओं ने एक कठिन परीक्षा का आयोजन किया।

उन्होंने नागों के आसपास अग्नि का वलय रच दिया, जिससे उन्हें डराने का प्रयास किया गया। नागों को अग्नि से बहुत डर लगता था इसलिए यह परीक्षा उनके धैर्य और भक्ति की सच्चाई को परखने के लिए बनाई गई थी।

शेषनाग और वासुकी की भक्ति:

इस कठिन परीक्षा में केवल दो नाग सफल हो पाए: वासुकी और शेषनाग। वासुकी ने भगवान शिव का ध्यान किया और उनके नाम का जाप करते रहे, जबकि शेषनाग भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए उनके नाम का जाप करते रहे। दोनों नाग भाइयों ने अग्नि की जलन और डर के बावजूद अपने इष्ट देवताओं का ध्यान नहीं छोड़ा। उनकी भक्ति और समर्पण को देखकर भगवान शिव और भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हुए।

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शेषनाग का आसन बनना:

भगवान शिव और विष्णु ने वासुकी और शेषनाग दोनों को अपने-अपने साथ रहने का वरदान दिया। भगवान शिव ने वासुकी को अपने गले का आभूषण बनाया, जबकि भगवान विष्णु ने शेषनाग को अपना आसन बना लिया। यही कारण है कि शेषनाग भगवान विष्णु के शैया बन गए और विष्णु जी अनंत शैय्या पर विश्राम करते हैं।

यह कथा हमें यह सिखाती है कि ईश्वर की कृपा और सानिध्य प्राप्त करने के लिए सच्ची भक्ति, समर्पण और धैर्य की आवश्यकता होती है। शेषनाग की भक्ति और तपस्या के कारण ही उन्हें भगवान विष्णु का साथ मिला, जो अनंत काल तक के लिए बना रहा। भगवान विष्णु का शेषनाग पर विश्राम करना इस बात का प्रतीक है कि जब कोई भक्त अपने इष्ट देवता के प्रति अडिग विश्वास और प्रेम रखता है, तो वह उनके सबसे करीब हो जाता है।

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