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ज्योतिष को वेदों का नेत्र क्यों कहा जाता है?

ज्योतिष को वेदों का नेत्र क्यों कहा जाता है?

ज्योतिष को वेदों का नेत्र क्यों कहा जाता है?

ज्योतिष न केवल हमें भूत, भविष्य और वर्तमान के बारे में बताता है, बल्कि हमें मार्गदर्शन भी प्रदान करता है। एक सच्चा और योग्य ज्योतिषी जीवन में प्रकाश से कम नहीं होता। वह हमारे जीवन को उच्च शिखर पर पहुंचा सकता है। ज्योतिष में किसी प्रकार का अंधविश्वास नहीं होता, बल्कि यह कई छिपे हुए गूढ़ रहस्यों को उजागर कर हमारे ज्ञान को बढ़ाने में मदद करता है। जिस प्रकार बिना ज्ञान के मनुष्य का जीवन अधूरा होता है, ठीक उसी प्रकार ज्योतिष के बिना वेद अधूरे माने जाते हैं इसलिए इसकी महत्ता को देखते हुए इसे वेदों का नेत्र कहा गया है। ज्योतिष इतना पवित्र है कि इसका उल्लेख वेदों में किया गया है।

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ज्योतिष शास्त्र को तीन स्कन्धों में विभाजित किया गया है: सिद्धांत, संहिता, और होरा। इस कारण इसे ‘त्रिस्कन्ध’ कहा जाता है। श्लोक में कहा गया है:

सिद्धान्तसंहिताहोरारुपं स्कन्धत्रयात्मकम्। 

वेदस्य निर्मलं चक्षुर्ज्योतिश्शास्त्रमनुत्तमम्

अर्थात, ज्योतिष शास्त्र तीन स्कन्धों- सिद्धांत, संहिता और होरा के रूप में विद्यमान है। यह वेदों का निर्मल नेत्र है और अनुपम ज्ञान प्रदान करता है।

ज्योतिष शास्त्र और नेत्रों की तुलना

जैसे नेत्र हमें सामने आने वाले गड्ढे, बिच्छू, सांप, जंगल या किसी भी संभावित खतरे को देखने की क्षमता देते हैं, वैसे ही ज्योतिष शास्त्र हमें भविष्य की संभावित घटनाओं की जानकारी देता है। नेत्र मार्गदर्शन करते हैं, परंतु आगे का कार्य हमारी समझ और प्रयासों पर निर्भर होता है। इसी प्रकार, ज्योतिष शास्त्र भी हमारा मार्गदर्शन करता है, लेकिन इसके बाद का कार्य हमारी बुद्धि, विवेक और प्रयासों पर निर्भर करता है।

वेदांग ज्योतिष: ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथ

वेदांग ज्योतिष, ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में से एक है। ज्योतिष, वेद के छः अंगों में से एक महत्वपूर्ण अंग है। वर्तमान समय में ‘वेदांग ज्योतिष’ के अंतर्गत तीन ग्रंथ प्रमुख माने जाते हैं:

  1. ऋग्वेदाङ्गज्योतिष
  2. यजुर्वेदाङ्गज्योतिष
  3. अथर्ववेदाङ्गज्योतिष

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वेदों में ज्योतिष शास्त्र का महत्व

खगोल गणित के महा ग्रंथ ‘सिद्धान्त शिरोमणि’ में वेद को अव्यक्त विश्वात्मा का शरीर मान कर वेद को समझने में सहायक छह ज्ञानक्षेत्रों, अर्थात छह वेदांगों को वेद रूपी शरीर का अंग बताया गया है। उनके अनुसार:

  1. व्याकरण (शब्दशास्त्र): वेद का मुख है।
  2. ज्योतिष: वेद का नेत्र या चक्षु है।
  3. निरुक्त: वेद का कान है।
  4. कल्प: वेद का हाथ है।
  5. शिक्षा: वेद की नासिका है।
  6. छन्द: वेद के पद हैं।

अर्थात, निश्चय ही ज्योतिष वेद का चक्षु रूपी अंग है। वेद का अंग होने के कारण यह ‘वेदांग’ है। यज्ञादि कर्मों के द्वारा भगवदोपासना वेद का परम लक्ष्य है।

 

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