अनुभव और शास्त्रों की बात

वर्तमान सप्तम ब्रह्मा के पचास वर्ष के पश्चात सप्तम श्वेतवाराहकल्प के प्रथम स्वायम्भुव मन्वन्तर के प्रथम सत्ययुग के चतुर्थ चरण के पश्चात प्रथम त्रेतायुग के आरम्भ से सप्रवैवस्वत मन्वन्तर के अट्ठारहवें कलयुग के प्रथम चरण के सवा पाँच सहस्त्र वर्ष पर्यन्त प्रायः दो अरब वर्ष से भारतीय ऋषि महर्षियों द्वारा उपदिष्ट धर्म संस्कृत एवं सभ्यताओं का परिचायक अनुष्ठान, स्त्रोत पाठ की परम्परा निरन्तर चली आ रही है।

 

(स्तोत्रं कस्यं न तुष्टये)

के अनुसार ऋषि मुनी तथा इन्द्रादी देवों ने अपने किसी न किसी अपने उपास्य देवी-देवताओं का अपने अभीष्ट सिद्धि के निमित्त स्त्रोत द्वारा अपनी प्रार्थना कि हूँ।

अनुभवः- हम अपने चारों तरफ जो कुछ भी देखते हैं। वस्तुतः समस्त विश्व उसी एक शक्ति का एक विकास है। जिन्होंने उसे जाना है, वह उसे ब्रह्म कहते हैं परन्तु ब्रह्मा के लिए परिणमी होना कैसे संभव है ? ब्रह्मा के परिणती किसने की। स्वयं अपनी परिभाषा के अनुसार ब्रह्मा अपरिणामी है। यह सृष्टि कैसे हुई। कार्य दूसरे रूप में कारण ही है। बिज से विशाल वृक्ष उगता है। वृक्ष बीज है जिसमें वायु तथा जल ग्रहीत है।

किन्तु हम लोग एक कठिनाई से तो बच गये पर दूसरी में पड़ गये। प्रत्येक सिद्धान्त में अपरिवर्तनशील की धारणा के माध्यम से ईश्वर की धारण आ जाती है। हमने इतिहास में पाया है की ईश्वर विषयक जिज्ञासा की सबसे अपरिपक्व अवस्था में भी जो एक भाव बना रहता है। वह है मुक्ति का भाव भगवान को पाने का भाव। मुख्यतः हमारा तंत्र-मंत्र किसी धर्म देश तथा अविश्वास के बन्धनों से परे है। उसके मूल में प्रत्येक मानव जाति, धर्म, देश और समाज के कल्याण की प्रेरणा होती है। हमारा गीता भी यही कहता है।

मानव जन्म सो दुर्लभ पाकर भंजा नही तुने भगवान!
रँचा पँचा में रहा हमेशा मिथ्या भोगों को सुख ज्ञान!

मैं यह इसलिए कह रहा हूँ कि मानव जन्म जो है 84 लाख योनियों के बाद मिला है। इसे यूँ ही व्यर्थ ना करें। इस जीवन को सार्थक बनाये। यह तब ही संभव है जब आप का भाव ईश्वर के प्रति होगा।

संसार में सभी वस्तुओं का आनन्द लेना चाहिए लेकिन उसकी आदत न पड़ जायें क्योंकि वह आदत अशक्ति बन जाती है जिसके कारण आन्तरिक विकास ठहर जाता है।

मंत्र और तंत्र की शक्ति आपको बताता हूँ। एक बार की बात है विश्वामित्र ने कहा मै तुम्हारी चिन्ता नही करता। मै एक नवीन ब्राह्मण की रचना कर दूंगा। एक हुकाँर भरते और लक्ष्मी जी को अपने आंगन में खड़े कर देते। इन्द्र को ललकार कर मेनका से विवाह करके पुत्री उत्पन्न कर देते है। वह घबराते नही है।

क्योंकि उनके पास मंत्र है। एक ज्वाला है। उसके भीतर एक आग है। मंत्रों का यम को पैरों तले रौदने की क्रिया है। ब्रह्मत्व प्राप्त वशिष्ठ जी के सामने तनकर खड़ा हो गये उन्होंने कहा आपको ब्रह्मत्व प्राप्त है परन्तु मेरे पास जो है। वह साहस आपके पास नही है। विश्वामित्र जी ने कहा की मृत्यु जैसी वस्तु है ही नही मृत्यु तो दरवाजे पर आकर ठक, ठक करती कभी आपके सिर के बाल सफेद करके आती है। तो कभी आपकी आँखे निस्तेज करती आती है। कभी रक्त की कमी करते हुए आती है। कभी रोग बनते हुए आती है। अने बार दरवाजे खटखटाकर मृत्यु आपके समीप आती है। इसलिए मंत्रों पर विश्वास ईश्वर के प्रति भाव समर्पण अभी से बनाना शुरू कर दीजिये क्यूकि अब समय आ गया है। पाण्डवों की तरह हिमालय की तरफ प्रस्थान करने की हनुमान बनकर जीवन के लिए मंत्र-तंत्र सिद्धि रूपी संजीवनी लाने का।

आशा है कि आप लोग हमारी बातों से सहमत होंगे त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।

 

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