चित्रगुप्त पूजा 

चित्रगुप्त पूजा 

कायस्थ समाज के कुल देवता माने जाते हैं भगवान चित्रगुप्त जानिये इसका महत्व, पौराणिक कथा, पूजा विधि और शुभ मुहूर्तः
चित्रगुप्त पूजा भाई दूज के दिन, यानी दीपावली के दो दिन बाद कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को मनाई जाती है। धार्मिक ग्रंथों में इसका विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन यमराज के सहायक और कायस्थ समाज के आराध्य देव भगवान चित्रगुप्त की पूजा से सुख-समृद्धि, ज्ञान और सफलता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। भगवान चित्रगुप्त को लेखन, बुद्धि और शिक्षा का प्रतीक माना जाता है, इसलिए लेखन से जुड़े सभी साधनों की पूजा भी की जाती है।

भगवान चित्रगुप्त का जन्म और उनका महत्वः

प्राचीन कथाओं के अनुसार, भगवान चित्रगुप्त का जन्म कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हुआ था। भगवान चित्रगुप्त को कायस्थ समाज के प्रवर्तक और प्रथम आराध्य देवता के रूप में माना जाता है। उनकी उत्पत्ति के बारे में एक प्राचीन मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा जी नंे अपने शरीर से चित्रगुप्त जी को उत्पन्न किया। चूंकि उनका जन्म ब्रह्मा जी के शरीर या काया से हुआ था, इसलिए उन्हें कायस्थ कहा गया और पृथ्वी पर वे ‘चित्रगुप्त’ के नाम से प्रसिद्ध हुए।इसी दिन को चित्रगुप्त पूजा के रूप में मनाया जाता है। चित्रगुप्त का अर्थ है गुप्त रूप से चित्र रखने वाले, क्योंकि वे प्रत्येक जीव के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। उनके पास कलम और दवात की छवि है, जो लेखन, बुद्धि और सत्यनिष्ठा का प्रतीक है।

भगवान चित्रगुप्त हैं कर्मों के लेखा-जोखा के देवताः

भगवान चित्रगुप्त को यमराज के सहायक के रूप में माना जाता है, जो मृत्युपरांत जीवों के कर्मों का हिसाब रखते हैं। उनका कार्य हर व्यक्ति के अच्छे-बुरे कर्मों का लेखा रखना है और इसी आधार पर यमराज को निर्णय लेने में सहायता करना है। वे न्यायप्रिय देवता माने जाते हैं और यही कारण है कि कायस्थ समाज उन्हें अपना कुल देवता मानता है।

कायस्थ समाज के आस्था और चित्रांश की पहचानः

कायस्थ समुदाय का विश्वास है कि वे भगवान चित्रगुप्त के वंशज हैं, जिन्हें चित्रांश कहा जाता है। कायस्थ समाज का इतिहास भी भगवान चित्रगुप्त के साथ जुड़ा हुआ है। यह समुदाय ज्ञान, लेखन और न्याय के मूल्यों को प्राथमिकता देता है और उसे अपने जीवन का मार्गदर्शक मानता है। यही कारण है कि चित्रगुप्त पूजा के दिन कायस्थ समाज विशेष रूप से अपने कुल देवता को याद करते हुए उनकी पूजा करते हंै।

व्यापारी समुदाय के लिए कलम-दवात पूजा का महत्वः

चित्रगुप्त पूजा के दिन विशेष रूप से कायस्थ समाज और व्यापारी समुदाय में कलम-दवात पूजा का विषेश आयोजन होता है। इस दिन कलम, दवात, खाता-बही, नोटबुक और कागजों की पूजा की जाती है, जो ज्ञान, लेखन और व्यवसाय का प्रतीक है।
कलम-दवात पूजा का व्यवसायियों के लिए विशेष महत्व है। इस दिन नई खाता-बही पर शुभ प्रतीक श्री लिखकर अपने व्यवसाय के नए चक्र की शुरुआत की जाती है। पूरे वर्ष के आय-व्यय का लेखा-जोखा भी इस दिन भगवान को समर्पित किया जाता है, जिससे आगामी वर्ष में व्यापार में वृद्धि और सफलता प्राप्त हो। मान्यता है कि कलम-दवात की पूजा से व्यापार में तरक्की होती है और नई ऊंचाइयों को प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त होता है। भगवान चित्रगुप्त का स्मरण कर उनकी कृृपा से व्यक्ति को कार्य में उन्नति, मधुर वाणी और बुद्धिमत्ता का वरदान मिलता है, जिससे व्यक्ति का सामाजिक और आर्थिक विकास होता है।

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चित्रगुप्त की सौदास एक अन्यायी राजा की पापमुक्ति की कथाः

प्राचीन काल में एक नगर में सौदास नाम का एक राजा रहता था, जो अपनी क्रूरता और अत्याचारी प्रवृत्ति के लिए कुख्यात था। वह कभी किसी का भला नहीं करता और अपने राज्य में अत्याचार फैलाए रखता था।
राजा की जिज्ञासा और ब्राह्मण से भेंट
एक दिन, राजा सौदास राज्य में घूमते हुए एक ब्राह्मण के पास पहुँचा, जो पूजा में मग्न था। राजा नंे उत्सुकता से उससे पूछा कि वह किस देवता की पूजा कर रहे हैं। ब्राह्मण नें बताया कि आज कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि है और वह मृत्यु और धर्म के देवता यमराज तथा चित्रगुप्त की पूजा कर रहे हैं। ब्राह्मण ने यह भी कहा कि इस पूजा से पाप कम होते हैं और नरक से मुक्ति मिलती है।
पूजा का प्रभाव और सौदास का निर्णय
ब्राह्मण की बातों का सौदास पर गहरा प्रभाव पड़ा। उसने निर्णय किया कि वह भी पूरी श्रद्धा के साथ यमराज और चित्रगुप्त की पूजा करेगा। राजा नें अनुष्ठान का पालन करते हुए यम और चित्रगुप्त का पूजन किया।
मृत्यु के पश्चात चित्रगुप्त द्वारा कर्मों का लेखा-जोखा
राजा की मृत्यु के बाद उसे यमराज के पास लाया गया, जहाँ चित्रगुप्त नंे उसके कर्मों का हिसाब लिया। उन्होंने यमराज को बताया कि यद्यपि सौदास नंे अपने जीवन में अनेक पाप किए हैं, लेकिन उसने सच्चे मन से यमराज की पूजा की थी। इस कारण, उसके पापों को माफ कर दिया गया और उसे नरक नहीं भेजा जा सकता।
पूजा के प्रभाव से स्वर्ग की प्राप्ति
इस प्रकार, केवल एक दिन की श्रद्धा-पूर्ण पूजा के प्रभाव से सौदास अपने सभी पापों से मुक्त हो गया और उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

चित्रगुप्त पूजा का महत्वः

भगवान चित्रगुप्त को कर्मों  का लेखा-जोखा रखने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि वे जन्म से मृत्यु तक हर व्यक्ति के कर्मों का हिसाब रखते हैं और यमराज को इसके आधार पर निर्णय लेने में सहायता करते हैं। कायस्थ समाज के लोग इन्हें अपना कुल देवता मानते हैं, लेकिन शिक्षा, लेखन, और बुद्धि के क्षेत्र से जुड़े अन्य लोग भी इस दिन इनकी पूजा करते हैं। इस पूजा से व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और उसे अपने ज्ञान, विद्या और कार्यक्षमता में वृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।

चित्रगुप्त पूजा की पूजा विधिः

  • सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • उसके बाद शुभ मुहूर्त में पूर्व दिशा में एक चैक बना लें और वहां पर एक चैकी रखें।
  • उस पर चित्रगुप्त महाराज की मूर्ति या तस्वीर, नई कलम, दवात और खाताबही रखें ।
  • सबसे पहले चित्रगुप्त महाराज का पंचामृत से स्नान कराएं फिर चंदन, अक्षत, फूल, फल, वस्त्र, धूप,दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करते हुए पूजन करें।
  • पूजा के समय पूजा मंत्र का उच्चारण करते रहें फिर नई कलम, खाताबही और दवात का पूजन करें।
  • खाताबही के प्रथम पृष्ठ पर स्वास्तिक बनाएं और वहां पर श्री गणेशाय नमः लिखें ।
  • इसके बाद एक साफ कागज पर 11 बार ओम चित्रगुप्ताय नमः मंत्र लिखें और उसे महाराज चित्रगुप्त के चरणों में अर्पित कर दें ।
  • पूजा का समापन घी के दीपक से चित्रगुप्त महाराज की आरती से करें. पूजा के अंत में क्षमा प्रार्थना करें और बिजनेस में तरक्की का आशीर्वाद मांगें।

चित्रगुप्त पूजा शुभ मुहूर्तः

चित्रगुप्त पूजा 3 नवम्बर 2024 को रविवार के दिन मनाया जाएगा।
द्वितीया तिथि प्रारम्भ – 02 नवम्बर 2024 को रात्रि 08ः21 मिनट से,
द्वितीया तिथि समाप्त – 03 नवम्बर 2024 को रात्रि 10ः05 मिनट पर।
चित्रगुप्त पूजा अपराह्न मुहूर्त – दोपहर 01ः10 मिनट से, दोपहर 03ः 22 मिनट तक।

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