दूर्वा अष्टमी 2023

दूर्वा अष्टमी, शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन मनाया जाता है, और इसीलिए इसे दूर्वा अष्टमी भी कहा जाता है। यह शुभ दिन अगस्त और सितंबर के बीच होता है। दूर्वा अष्टमी को एक विशेष त्योहार के रूप में माना जाता है जो सुख और समृद्धि लाता है। इस विशेष दिन को सच्ची भावना और सौहार्दपूर्वक मनाया जाता है।

दूर्वा अष्टमी का व्रत एवं पूजा विधि

☸ दूर्वा अष्टमी महिलाओं के बीच एक प्रसिद्ध त्योहार है।
☸ इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता है और नए वस्त्र पहने जाते हैं।
☸ दूर्वा अष्टमी के दिन विशेष प्रकार की पूजा और रिवाज किए जाते हैं।
☸ पूजा में फल, फूल, चावल, धूपबत्ती, दही और अन्य पूजा सामग्री के साथ भोग चढ़ाया जाता है।
☸ दूर्वा अष्टमी को व्रत रखा जाता है और ईश्वर इस दिन भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं।
☸ इस शुभ दिन पर महिलाएं पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करती हैं और ईश्वर को भोग लगाती हैं।
☸ माना जाता है कि यह व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि और रौनक आती है।
☸ दूर्वा अष्टमी के दिन पर्यावरण को संरक्षण करने का संकल्प भी लिया जाता है।

क्या है दूर्वा घास का महत्व

दूर्वा घास एक खास महत्व रखता है और इसे पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। हिंदू धर्म में इसकी पूजा श्रद्धा से की जाती है। इसके बिना कई पूजाएं अधूरी मानी जाती हैं। दूर्वा घास के पूजा से प्रकृति का संरक्षण भी होता है।

हिंदू धर्म में विभिन्न कर्मकांड और अनुष्ठानों में दूर्वा का प्रयोग होता है। मां आदिशक्ति और गजानन गणपति की पूजा में दूर्वा को अनिवार्य रूप से अर्पित किया जाता है। गणेश जी इसे बहुत पसंद करते हैं और उनकी पूजा बिना दूर्वा की अधूरी मानी जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय अमृत से भरे कलश से कुछ बूंदे दूर्वा पर भी गिर गई थीं, जिससे इसे पवित्र माना जाता है। इसलिए, जो भी इस दिन व्रत रखकर दूर्वा की पूजा करते हैं, उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और उन पर दैवीय आशीर्वाद बना रहता है।

एक और कथा के अनुसार, भगवान गणेश राक्षसों के साथ युद्ध कर रहे थें लेकिन उनसे युद्ध में राक्षसों की मृत्यु नहीं हो पा रही थी इसलिए उन्होंने उन्हें निगल लिया और तब उनके शरीर में भीषण गर्मी उत्पन्न हो गई। उनके पेट और शरीर का ताप बढ़ गया। इससे छुटकारा पाने के लिए देवताओं ने उन्हें हरी दूर्वा अर्पित की। दूर्वा ने उनके शरीर के ताप को कम किया और उन्हें शीतलता प्रदान की। इसलिए गणेश जी दूर्वा को बहुत पसंद करते हैं और उसके बिना उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है।
माना जाता है कि दूर्वा घास की पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसका महत्व कृष्ण जी ने युधिष्ठिर को भी बताया था।दूर्वा घास को घर में आसानी से उगाया जा सकता है। इसे उगाने के लिए विशेष मेहनत की आवश्यकता नहीं होती है। इसे घर में लगाने से पवित्रता और शुद्धता का आभास होता है।

गणेश गायत्राी मंत्र

ओम एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुद्धि प्रचोदयात।

दूर्वा अष्टमी शुभ मुहूर्त 2023

इस बार दूर्वा अष्टमी का पर्व 22 सितंबर, 2023 दिन शनिवार को मनाया जाएगा।
अष्टमी तिथि प्रारम्भः- 22 सितंबर 2023 को दोपहर 01ः35 बजे
अष्टमी तिथि समाप्तः- 23 सितंबर 2023 को दोपहर 12ः17 बजे

दूर्वा अष्टमी के पर्व पर आपको गणेश जी की पूजा जरूर करनी चाहिए। सबसे पहले उनकी विधिवत पूजा करें और उन्हें दूर्वा अर्पित करें। इसके बाद, गणेश गायत्री मंत्र को कम से कम 108 बार जप करके उनसे प्रार्थना करें। इस अनुष्ठान से आपके जीवन में आने वाली सभी समस्याएं तुरंत ही दूर हो जाएंगी।

 

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