परिवर्तिनी एकादशी
हर साल, हिंदू माह भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इसे वामन एकादशी भी कहा जाता है। यह दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इसलिए, इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा विशेष भाव से की जाती है।
परिवर्तिनी एकादशी का महत्व
इस व्रत के बारे में विभिन्न धारणाएँ हैं। भक्तगण इस दिन उपवास करते हैं ताकि उन्हें सुख और शांति प्राप्त हो। यह व्रत पूर्विक पापों और बुरे कर्मों से मुक्ति दिलाता है। इसके अलावा, जो लोग उपवास और पूजना करते हैं, वे मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा कमल के फूल द्वारा करना त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पूजा के समान माना जाता है। इस दिन का उपवास नाम और यश लाता है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस व्रत को रखने से व्यक्ति मुक्ति प्राप्त करता है।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा
एक बार की बात है, भगवान श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर बोले हे! भगवान! मुझे बहुत संदेह हो रहा है कि आप किस तरह सोते हैं और किस प्रकार करवट बदलते हैं। इसके अलावां किस प्रकार राजा बलि को बांधा और आपने वामन रुप में क्या-क्या लीलाएं की हैं? तब भगवान श्रीकृष्ण कहते हंै, हे राजन!
त्रेतायुग में बलि नामक एक दानव था। वह मेरा परम भक्त था। वह भिन्न-भिन्न प्रकार के वेदों सूक्तों से मेरा पूजन किया करता था और प्रतिदिन ब्राह्मणों के लिए पूजन तथा यज्ञ का आयोजन करता था परन्तु इन्द्रदेव से द्वेष के कारण उसने इन्द्रलोक और सभी देवताओं को जीत लिया जिसके कारण सभी देवता एकत्रित होकर भगवान के पास गयें। बृहस्पति देव सहित इंद्र देवता प्रभु के पास जाकर नतमस्तक हो गएं व वेद मंत्रों द्वारा भगवान की आराधना करने लगें तब मैने वामन रुप धारण करके पाचवां अवतार लिया और तेजस्वी रुप से राजा बलि को जीत लिया।
इतनी बाते सुनकर राजा युधिष्ठिर बोले कि हे जनार्दन! आपने वामन रुप धारण करके महाबली दैत्य को किस प्रकार जीता ? तब श्रीकृष्ण ने बताया मैने बलि से तीन पग भूमि की याचना करते हुए कहा यह भूमि मुझको तीन लोक के समान है और हे! राजन तुमको अवश्य ही यह भूमि देनी होगी। राजा बलि ने तुच्छ याचना समझकर तीन पग भूमि का संकल्प मुझको दे दिया और मैने अपने त्रिविक्रम रुप को बढ़ाकर भू-लोक में पद, भुवर्लोक में जंघा, स्वर्गलोक मंे कमर, महालोक में पेट, जनलोक मंे हृदय, यमलोक में कंड की स्थापना कर सत्यलोक में सुख उसके ऊपर मस्तक स्थापित किया।
सूर्य, चन्द्रमा आदि सब ग्रह गण, योग, नक्षत्र, इंद्रादिक देवता और शेष आदि सब नागगणों ने विभिन्न से वेद सूक्तों से प्रार्थना की तब मैने राजा बलि का हाथ पकड़कर कहा कि हे राजन! एक पद से पृथ्वी, दूसरे से स्वर्गलोक पूर्ण हो गएं अब तीसरे पग कहां रखूं ? तब बलि ने सिर झुका लिया और मैने अपना पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे मेरा वह भक्त पाताल को चला गया। उसके बाद उसकी विनती और नम्रता को देखकर मैंने कहा कि हे बलि! मै सदैव तुम्हारे निकट ही रहुंगा।
विरोचन पुत्र बलि से कहने पर भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन बलि के आश्रम पर मेरी मूर्ति स्थापित हुई। इसी प्रकार दूसरी क्षीरसागर में शेषनाग के पृष्ठ पर हुई। हे राजन! इस एकादशी को भगवान शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसलिए तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु का उस दिन पूजन करना चाहिए। एकादशी के दिन तांबा, चांदी, चावल और दही का दान करना चाहिए।
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परिवर्तिनी एकादशी पूजा विधि
✨ सुबह जल्दी उठें और घर के मंदिर के आसपास क्षेत्र को साफ करें।
✨उसके बाद स्नान कर साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।
✨गंगाजल या पवित्र जल से भगवान विष्णु की मूर्ति का अभिषेक करें।
✨अब दीपक और धूप बत्ती जलाएं।
✨दीप पूजन के साथ एक-दिवसीय उपवास शुरू करें।
✨विष्णु मंत्रों का जाप करें।
✨अगले दिन द्वादशी तिथि पर उपवास को समाप्त करें।
✨जरूरतमंदों को भोजन दान करें और लोगों में प्रसाद बांटें।
परिवर्तिनी एकादशी पूजा मुहूर्त
एकादशी तिथि आरंभ – 13 सितम्बर 2024 को रात्रि 10ः 30से,
एकादशी तिथि समाप्ति -14 सितम्बर 2024 को रात्रि 8ः 41 तक।
इस मुहूर्त का पालन करते हुए पूजा-अर्चना और उपवास का आयोजन करना शुभ माना जाता है।