बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है देव दीपावली का पर्व, जाने इसका महत्व, पौराणिक कथा, पूजा विधि, मंत्र तथा शुभ मुहूर्त:

बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है देव दीपावली का पर्व, जाने इसका महत्व, पौराणिक कथा, पूजा विधि, मंत्र तथा शुभ मुहूर्त:

सनातन धर्म में देव दीवाली का अत्यधिक महत्व होता है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व दीपावली के 15वें दिन पड़ता है जिसे देवताओं की दीवाली भी कहा जाता है। देव दीवाली विशेष रूप से भगवान शिव के त्रिपुरासुर के वध की याद में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव नें इस दिन त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध कर संसार को उसके अत्याचारों से मुक्त किया था, जिससे यह दिन शुभ और मंगलकारी माना जाता है। इसके अलावा, देव दीवाली को भगवान कार्तिकेय की जयंती का प्रतीक भी माना जाता है। भगवान कार्तिकेय की पूजा इस दिन विशेष रूप से की जाती है जिससे जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का वरदान प्राप्त होता है। मान्यता है कि इस दिन देवता स्वर्ग से पृथ्वी पर आते हैं और अपने भक्तों के दुखों और कष्टों को दूर करते हैं। इसी कारण इस दिन पूजा और व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है।
देव दीवाली के दिन विशेष रूप से पूजा, मंत्र जाप और दीप जलाने की परंपरा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन किया गया व्रत, पूजा और वैदिक मंत्रों का जाप दोगुना पुण्य और फल देता है। इस दिन घरों और मंदिरों में दीप जलाए जाते हैं, जिससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

देव दीपावली का महत्वः

देव दिवाली का सनातन धर्म में अत्यधिक महत्व है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है और इसे विशेष रूप से भगवान शिव की त्रिपुरासुर पर विजय के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव नंे राक्षस त्रिपुरासुर को हराकर देवताओं की सहायता की थी और उनके इस महान कार्य का जश्न मनाने के लिए सभी देवी-देवता वाराणसी के तीर्थ स्थल पर एकत्रित हुए थे। यहां पर उन्होंने लाखों मिट्टी के दीपक जलाए, जिससे यह दिन रोशनी के त्योहार के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
देव दिवाली का पर्व विशेष रूप से वाराणसी में मनाया जाता है, जो भगवान शिव की पवित्र भूमि मानी जाती है। इस दिन गंगा घाटों पर एक विशाल उत्सव का आयोजन किया जाता है। यहाँ पर हर वर्ष हजारों तीर्थयात्री और श्रद्धालु देव दिवाली मनाने के लिए पहुंचते हैं और गंगा नदी में दीपक प्रवाहित करते हैं। यह दृृश्य अत्यंत भव्य और दिव्य होता है, जब लाखों दीपकों की रोशनी गंगा की लहरों पर झिलमिलाती है। इस दिन विशेष पूजा-अर्चना और काशी विश्वनाथ के दर्शन भी किए जाते हैं, जिससे आत्मिक शांति और पुण्य की प्राप्ति होती है। यह पर्व हमें सत्य और धर्म की राह पर चलने की प्रेरणा देता है।

देव दीपावली की पौराणिक कथाः

बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है देव दीपावली का पर्व, जाने इसका महत्व, पौराणिक कथा, पूजा विधि, मंत्र तथा शुभ मुहूर्त:
बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है देव दीपावली का पर्व, जाने इसका महत्व, पौराणिक कथा, पूजा विधि, मंत्र तथा शुभ मुहूर्त:

देव दीपावली का पर्व भगवान शिव के त्रिपुरासुर के साथ युद्ध की घटना से जुड़ा हुआ है, जो हिंदू धर्म की एक प्रमुख और रोमांचक कहानी है। त्रिपुरासुर असल में तीन राक्षसों का सामूहिक नाम था जो तारकाक्ष, विद्युन्मली और कमलाक्ष था। इन तीन राक्षसों नंे भगवान ब्रह्मा से विशेष वरदान प्राप्त किया था, जिसके परिणामस्वरूप उनके पास असाधारण शक्तियां आ गईं। इस शक्ति का उपयोग करते हुए, त्रिपुरासुर नंे स्वर्ग, पृथ्वी और आकाश में तीन शानदार और अभेद्य किलों का निर्माण किया। इन तीनों किलों को सुरक्षा देने के लिए उन्होंने कठोर उपाय किए, ताकि वह देवताओं से छुपकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर सके।
समय के साथ, त्रिपुरासुर का आत्मविश्वास बढ़ता गया और उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए देवताओं पर हमले शुरू कर दिए। उसकी आक्रामकता और अत्याचारों नें स्वर्ग से लेकर पृथ्वी तक को संकट में डाल दिया। हर स्थान पर त्रिपुरासुर की उत्पात से हाहाकार मच गया। देवता डरकर भगवान शिव के पास गए और उनसे इस संकट से मुक्ति की प्रार्थना की।
भगवान शिव नें देवताओं की मदद करने का निश्चय किया और इस राक्षस को नष्ट करने का संकल्प लिया। तब यह रहस्य सामने आया कि त्रिपुरासुर को तभी मारा जा सकता था जब एक ही बाण से तीनों शहरों को एक साथ नष्ट किया जाए। इसके लिए भगवान शिव नंे त्रिपुरारी के रूप में रूपांतरण किया और एक दिव्य रथ पर सवार होकर युद्ध के मैदान में पहुंचे। उन्होंने अपने धनुष से एक तीर चलाया, और तीनों किलों को एक साथ नष्ट कर दिया और त्रिपुरासुर का वध कर दिया।
भगवान शिव की इस विजय नंे देवताओं को त्रिपुरासुर के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। इसके बाद भगवान शिव और सभी देवता पृथ्वी पर आए, जहां उन्होंने पवित्र गंगा में स्नान किया और अपनी विजय का उत्सव मनाया। इस दिन के बाद से देव दीपावली की परंपरा शुरू हुई, जब देवता पृथ्वी पर आते हैं और अपनी उपस्थिति से वातावरण को रोशन करते हैं, जिससे जीवन में सकारात्मकता और शुभता का संचार होता है।
देव दीपावली का महत्व इस विजय के प्रतीक के रूप में है, जो न केवल भगवान शिव की शक्ति और महिमा का प्रतीक है, बल्कि यह इस तथ्य को भी दर्शाता है कि अच्छाई की हमेशा बुराई पर विजय होती है। इस दिन की पूजा और अनुष्ठान से व्यक्ति को मानसिक शांति, समृद्धि और कष्टों से मुक्ति मिलती है।

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देव दीपावली के दिन कितने दीये जलाना होता है उत्तम?

देव दीपावली का पर्व विशेष रूप से दीपों की रौशनी से जुड़ा हुआ है और इस दिन घर, मंदिर, आंगन और घर के मुख्य द्वार पर दीये जलाने की परंपरा होती है। यह दिन देवी-देवताओं और इष्ट देवों की पूजा का होता है, इसलिए इस दिन दीपों से वातावरण को रोशन करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।
ज्योतिष शास्त्र और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देव दीपावली पर 11, 21, 51 या 108 दीपक जलाने का विशेष महत्व होता है। हालांकि, आप इन संख्याओं से ज्यादा दीये भी जला सकते हैं, जितना संभव हो सके। विशेष रूप से, दीपकों की यह संख्या घर के प्रत्येक कोने में शांति और समृद्धि का प्रतीक होती है।

पूजा स्थल पर जलाएं अखंड दीपकः

इस दिन भगवान शिव, विष्णु जी और माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष विधान है। मंदिर में पूजा करते समय या जहां लक्ष्मी माता का पूजन हो रहा हो, वहां एक अखंड दीपक अवश्य जलाना चाहिए। कोशिश करें कि यह दीपक पूरी रात जलता रहे और रातभर न बुझने पाए, ऐसा करने से घर में समृद्धि और शांति का वास होता है।

इस दिन तुलसी के पौधे के पास भी दीपक अवश्य जलाएंः

देव दीपावली के दिन तुलसी के पौधे के पास भी दीपक जलाने की परंपरा होती है, क्योंकि तुलसी को विशेष रूप से पवित्र माना जाता है और इसके पास दीपक जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह दिन न केवल दीपों से वातावरण को रोशन करने का है, बल्कि अपने घर और परिवार के लिए सुख-समृद्धि, शांति और भलाई की कामना करने का भी होता है।

देव दीपावली पूजा विधिः

देव दीपावली के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्रता से स्नान करें।
इस दिन गंगा नदी या किसी पवित्र नदी में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
सुबह के समय मिट्टी के दीपक में घी या तिल का तेल डालकर दीपक जलाएं और दीपदान करें।
भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें।
पूजा के दौरान भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें, जैसे ¬ नमो भगवते वासुदेवाय नमः और ¬ विष्णवे नमः।
घर के प्रत्येक कोने में दीपक रखें ताकि घर में अंधकार से मुक्त होकर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो।
शाम को किसी नजदीकी मंदिर में जाकर दीपदान करें।
विष्णु सहस्रनाम और विष्णु चालीसा का पाठ करें।
पूजा के बाद भगवान विष्णु की आरती करें और समर्पण के साथ पूजा को समाप्त करें।
पूजा में हुई किसी भी भूल या गलती के लिए भगवान से क्षमा मांगें और शुद्ध चित्त से अगले कदम उठाएं।

  • देव दीपावली की पूजा के दौरान बोले जाने वाले मंत्रः

ऊं नमो नारायण नमः
ऊँ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा।।
ऊँ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहाः।।
¬ यम्बेकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धूनान् मृत्योवर्मुक्षीय मामृतात््।।

देव दीपावली शुभ मुहूर्तः

देव दीपावली 15 नवम्बर 2024 को शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा।
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – 15 नवम्बर 2024 को सुबह 06ः 19 मिनट से,
पूर्णिमा तिथि समाप्त – 16 नवम्बर 2024 को सुबह 02ः 58 मिनट पर।
प्रदोषकाल देव दीपावली मुहूर्त – शाम 05ः 10 मिनट से, शाम 07ः 47 मिनट तक।
अवधि – 02 घण्टे 37 मिनट्स।

 

 

 

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