भूमि परीक्षण

वास्तु ऐसी भूमि को श्रेष्ठ मानता है जिसमें मिट्टी का घनत्व ज्यादा हो या भूमि  पथरीली व कठोर होनी चाहिए। मोली, भूमि, निवास के अयोग्य मानी जाती है। आधुनिक सिविल इंजीनियरिंग भी ऐसी भूमि को ज्यादा उपयुक्त मानता है जिसका घनत्व अधिक होता है। ऐसी भूमि अपने ऊपर बनाये जाने वाले भवन का पूर्ण भार सहन करने की व वायु एवं भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं को सहन करने की क्षमता रखती है। भूमि का चयन उसके रंग, गंध, स्वाद और ढलान आदि को देखकर करना चाहिए।

अनूषर, स्निग्धवर्णा, प्रशस्ता च बहूद का
ऋणोपलान्विता या सा मान्या वास्तुविधौ धरा।।

अर्थातः- उपजाऊ, चिकनी मिट्टी वाली घास तथा पत्थरों वाली भूमि निवास योग्य होती है। बंजर दीमक युक्त, कटीले वृक्षों से युक्त भूमि रहने के अयोग्य मानी गई है।

सफेद वर्ण की मिट्टी वाली भूमि, ब्राह्मणों, लाल वर्ण की क्षत्रिय, हरित की वैश्यों व काले वर्ण वाली भूमि, शूद्रों के लिए उपयुक्त माना गया है।

ब्राह्मण आदि चार वर्णों के लिये क्रम से धृत, रक्त, अन्न व मद्य, गंध वाली भूमि सुखद होती है। स्वाद के अनुसार मीठे स्वाद वाली भूमि ब्राह्मण के लिये स्वाद वाली भूमि क्षत्रिय के लिये, हल्की गंध और खटास वाली भूमि वैश्य के लिए तथा कड़वे स्वाद वाली भूमि शूद्र वर्ण के लिये उपयुक्त मानी गयी है।

उपजाऊ भूमि श्रेष्ठ तथा बंजर व ऊपर भूमि रहने के अयोग्य मानी जाती है। इसके परीक्षण हेतु भूमि को हल द्वारा जोतकर उसमें सर्वधान्यादि जैसे गेहूँ, सरसों, दाल, तिल, जौ इत्यादि बों दें यदि 3 दिन में अंकुरण हो तो श्रेष्ठ 5 दिन में हो तो मध्यम व 7 दिन में हो या न हो तो ऐसी भूमि निवास के अयोग्य मानी जाती है।

‘‘ खन्ययाने यदा भूमौ पाषाणं प्राप्यते तदा।
धनायुश्चिरता बै स्यादिष्टकासु धनागमः
क्पालोगारके शादौ व्याधिना पीड़ितो भवेत्। ’’

भूमि खोदने पर यदि पत्थर मिल जाये तो सुवर्ण लाभ जैसे धन व आयु की वृद्धि होती है। ईंट मिले तो धन व समृद्धि में वृद्धि होती है एवं ताम्रादि धातु मिलने से सब प्रकार की वृद्धि होती है। यदि कपाल, हड्डी, कोयला या केश आदि मिलें तो रोग व पीड़ा होती है।

भूमि खोदन पर दीमक, सर्प निकले तो उस भूमि पर निवास नही करना चाहिए। भूसा, हड्डी, राख व वस्त्र निकले तो गृह स्वामी के मृत्यु का सूचक हो सकता है। कौड़ी निकले तो दुःख और झगड़ा होता है। भूमि से रूई निकलने पर विशेष दुःख मिलती है। जली हुई लकड़ी निकले तो यह रोग का कारक होता है। खप्पर मिलने से कलह व लोहे से निकलने से गृह स्वामी के मृत्यु का सूचक हो सकता है। अतः ग्रह निर्माण से पूर्व इन सबका भली-भाँति अध्ययन करना अति आवश्यक है।

ब्राह्मण आदि चारों वर्णों के लिये निम्न भूमि निवास योग्य मानी जाती है।

ब्राह्मण

वर्गाकार, सफेद रंग, बिना किसी दोष के ढ़लान उत्तर दिशा की तरफ हो, मीठी, सुगन्धित गंध वाली भूमि उत्तम भविष्य की प्रदाता होती है।

क्षत्रिय

भूखण्ड़ की लम्बाई, चौड़ाई से 1/8 गुना अधिक होनी चाहिए अर्थात लम्बाई = चौड़ाई + 1/8 चौड़ाई/लाल रंग, कड़वी गंध एवं पूर्वी ढ़लान वाली भूमि क्षत्रिय के लिये उपयुक्त होती है। ऐसी भूमि सफलता एवं विजय श्री की सूचक होती है।

वैश्य

भूमि की लम्बाई से 1/6 गुना अधिक होनी चाहिए अर्थात लम्बाई = चौड़ाई 1 + 6 चौड़ाई पीली मिट्टी, खट्टी गंध व पूर्व दिशा में ढ़लान वाली भूमि वैश्य के लिए उपयुक्त मानी गई है।

शूद्र

भूमि की लम्बाई चौड़ाई से 1/4 गुना ज्यादा होनी चाहिए।
लम्बाई = चौड़ाई + 1/4 चौड़ाई काली मिट्टी, तीखी गंध व पूर्व दिशा में ढ़लान वाली भूमि शूद्र के लिये उपयुक्त मानी गई है ऐसी भूमि में अन्न की पूर्णता रहती है।

वास्तु शास्त्रानुसार जीवित भूमि, भवन निर्माण के लिए शुभ एवं मृत भूमि अशुभ होती है। जीवित एवं मृत भूमि के लक्षणों के संदर्भ में कहा गया है।

यत्र वृक्षाः प्ररोहन्ति शस्यं हर्षात्प्रवर्धते।
सा भूमिर्जीविता ज्ञेया मृता वाच्याऽन्था बुधैः।।

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