अगले 16 दिन भूलकर भी न करें ये कार्य
पितृ पक्ष के दौरान मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, दुकान का उद्घाटन या किसी भी प्रकार का शुभ कार्य करने से बचना चाहिए। इस अवधि में नया सामान खरीदने की भी मनाही होती है। पितृ पक्ष में असत्य भाषण, किसी के प्रति अपशब्दों का प्रयोग या छल-कपट से पितरों का अपमान होता है, इसलिए ऐसे कर्मों से भी बचना चाहिए। इसके अलावा, श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य रूप से करना चाहिए।
पितृ पक्ष में न करें ये कार्य
पितृ पक्ष में कुछ विशेष कार्यों और खाद्य पदार्थों का त्याग करना आवश्यक माना गया है, क्योंकि यह समय पितरों को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए होता है। इस दौरान शराब, मांसाहार, पान, बैंगन, प्याज, लहसुन, बासी भोजन, सफेद तिल, लौकी, मूली, काला नमक, सत्तू, जीरा, मसूर की दाल और सरसों का साग वर्जित माने गए हैं। यदि श्राद्ध कर्म के समय इन चीजों का सेवन या उपयोग किया जाए तो इससे पितर अप्रसन्न हो सकते हैं।
न करें ये कार्य पितर हो सकते हैं क्रोधित
पितृपक्ष के दौरान यदि आपके दरवाजे पर कोई जानवर, साधु या अन्य व्यक्ति आता है, तो उनका अपमान न करें। इससे पितर क्रोधित हो सकते हैं। विशेष रूप से गाय, कुत्ता या भिखारी का अपमान करने से बचना चाहिए। श्राद्ध के दौरान बाल, नाखून या दाढ़ी कटवाना भी निषिद्ध है।
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पितृ पक्ष की कुछ महत्वपूर्ण बातें
तर्पण के लिए काले तिल का उपयोग अनिवार्य होता है, जबकि लाल या सफेद तिल का प्रयोग वर्जित माना गया है। लोहे और स्टील के बर्तनों का प्रयोग भी श्राद्ध में वर्जित है। भोजन पीतल के बर्तन में और जल तांबे के बर्तन में ग्रहण करना चाहिए। श्राद्ध के लिए तैयार भोजन को पहले चखना या स्वयं खाना पितरों का अपमान माना जाता है, इसलिए इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
पितृपक्ष में बाल, दाढ़ी, मूंछ या नाखून काटने से परहेज
पितृपक्ष यानी श्राद्ध के दौरान श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्तियों को बाल, दाढ़ी, मूंछ या नाखून काटने से परहेज करना चाहिए, चाहे उनकी उम्र कितनी भी हो। शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति इस समय पितरों को तर्पण और श्राद्ध करते हैं, उन्हें इन वस्त्रों का कटवाना वर्जित है। अन्य लोग इस दौरान बाल, दाढ़ी, मूंछ या नाखून काट सकते हैं।
पितृ ऋण क्या है?
पितृ ऋण हमारे पूर्वजों से संबंधित एक महत्वपूर्ण ऋण होता है, जो कई प्रकार का होता है। स्वऋण या आत्म ऋण तब उत्पन्न होता है जब व्यक्ति पूर्वजन्म में नास्तिकता और धर्म-विरोधी कार्य करता है। इससे अगले जन्म में उसे आत्म ऋण का सामना करना पड़ता है। मातृ ऋण से परिवार में अशांति और समस्याएं बढ़ती हैं। बहन के ऋण के कारण व्यापार और नौकरी स्थिर नहीं रहतीं और जीवन में निरंतर संघर्ष बना रहता है। भाई के ऋण के कारण सफलता मिलने के बाद भी सब कुछ अचानक तबाह हो जाता है और 28 से 36 वर्ष की आयु के बीच तकलीफें बढ़ जाती हैं।
पितृ ऋण से पाये मुक्ति
पितृ ऋण को उतारने के लिए अपने धर्म और कुल परंपरा का पालन करना आवश्यक है। पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध करना, संतान उत्पन्न करके उन्हें धार्मिक संस्कार देना और प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ना भी प्रभावी उपाय हैं। भृकुटी पर शुद्ध जल का तिलक करना, तैरस् चौदस, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन गुड़-धी की धूप देना और घर के वास्तु को ठीक करना पितृ ऋण को समाप्त करने में मदद करता है।