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इस वर्ष रवि योग में पड़ रहा अक्षय नवमी का पर्व, जाने इसका महत्व, पूजा विधि,पौराणिक कथा तथा शुभ मुहूर्तः

इस वर्ष रवि योग में पड़ रहा अक्षय नवमी का पर्व, जाने इसका महत्व, पूजा विधि,पौराणिक कथा तथा शुभ मुहूर्तः

इस वर्ष रवि योग में पड़ रहा अक्षय नवमी का पर्व, जाने इसका महत्व, पूजा विधि,पौराणिक कथा तथा शुभ मुहूर्तः

इस वर्ष रवि योग में पड़ रहा अक्षय नवमी का पर्व, जाने इसका महत्व, पूजा विधि,पौराणिक कथा तथा शुभ मुहूर्तः

प्रत्येक वर्ष अक्षय नवमी का पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस शुभ दिन पर आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है तथा आंवले के पेड़ के नीचे ही भोजन भी बनाया जाता है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा होने के कारण इसे आंवला नवमी भी कहा जाता है. इस दिन बनाए जाने वाले भोजन को सबसे पहले भगवान विष्णु और महादेव को अर्पित किया जाता है। सनातन धर्मग्रंथों से पता चलता है कि लक्ष्मी जी नें इस दिन सबसे पहले आंवले के पेड़ की पूजा की थी और पेड़ के नीचे भोजन बनाकर उन्होंने भगवान विष्णु और महादेव को खिलाया था। तब से हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी मनाई जाती है। इस शुभ दिन पर आंवले के पेड़ की पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है तथा सुख-समृद्धि में निरन्तर वृद्धि होती है। अक्षय नवमी के शुभ अवसर पर दुर्लभ धु्रव योग, रवि योग तथा शिववास योग का भी निर्माण हो रहा है जिससे इस पर्व की खासियत और भी बढ़ गई है।

अक्षय नवमी की पौराणिक कथाः-

प्राचीन काल में काशी नगरी में एक धार्मिक वैश्य परिवार रहता था। इस परिवार के पास धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी, लेकिन एक गहरी समस्या थी – यह दंपत्ति संतान सुख से वंचित था। उनका जीवन बहुत दुखी और अव्यक्त था और वैश्य की पत्नी हर समय संतान प्राप्ति की इच्छा करती थी।
एक दिन, वैश्य की पत्नी की एक पड़ोसन नें उसे एक अजीब सलाह दी। उसने कहा, यदि तुम किसी पराए बच्चे की बलि भैरव देवता के नाम पर चढ़ा दोगी, तो तुम्हें पुत्र प्राप्ति हो सकती है। यह बात सुनकर वैश्य नें तीव्रता से विरोध किया, क्योंकि उसे यह असामान्य और पापपूर्ण लगा। हालांकि, उसकी पत्नी नें इस सलाह को अपने मन में गांठ बांध लिया और समय का इंतजार करती रही।
कुछ समय बाद, वह एक दिन एक निर्दाेष कन्या को कुएं में फेंककर उसकी बलि दे देती है। उसे विश्वास था कि इस पाप का फल उसे जल्दी ही संतान प्राप्ति के रूप में मिलेगा। लेकिन इसका परिणाम विपरीत हुआ। उसकी इस हत्यारों की कृृत्य के बाद, न केवल उसे पाप का एहसास हुआ, बल्कि उसके पूरे शरीर पर कोढ़ (चर्म रोग) भी फैलने लगा। साथ ही, उस निर्दाेष कन्या की प्रेतात्मा उसे लगातार तंग करने लगी।
रोग और दैविक शाप से परेशान होकर, वैश्य नें अपनी पत्नी से इस पाप की बात पूछी, तो पत्नी नें अपना अपराध स्वीकार किया और उसे पूरी घटना की सच्चाई बताई। यह सुनकर वैश्य का क्रोध फूट पड़ा और उसने कहा, जिसने गौवध, ब्राह्मण वध या बाल वध किया है, उसे इस धरती पर कोई स्थान नहीं मिल सकता। अब तुम्हें अपने पाप का प्रायश्चित करना होगा। तुम गंगा तट पर जाकर भगवान का ध्यान करो और गंगा में स्नान करो। तभी तुम्हारा कष्ट समाप्त होगा।
पत्नी अपने पाप से पश्चाताप करने लगी और गंगा की शरण में जाने का निश्चय किया। वह गंगा के किनारे पहुंची, जहां उसने भगवान से प्रार्थना की और गंगा से मार्गदर्शन प्राप्त किया। गंगा मां नें उसे आशीर्वाद देते हुए कहा, तुम कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को आंवले के पेड़ की पूजा करो और आंवला खाओ। इसी से तुम्हारा रोग नष्ट होगा और तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा।
गंगा की वाणी को शिरोधार्य करते हुए, वह महिला आंवला नवमी का व्रत करने लगी। आंवला की पूजा और सेवन से न केवल उसका शरीर रोगमुक्त हुआ, बल्कि कुछ समय बाद उसे संतान सुख भी प्राप्त हुआ। यह चमत्कारिक अनुभव लोगों के बीच फैल गया और तभी से आंवला नवमी का व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण परंपरा बन गया। आंवला नवमी का व्रत, विशेष रूप से संतान प्राप्ति के लिए एक आस्थावान पूजा बन गई और यह आज भी लाखों लोगों द्वारा श्रद्धा पूर्वक किया जाता है।

माता लक्ष्मी की कथाः

आंवला नवमी की परंपरा माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई है। एक कथा के अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण के लिए आईं। रास्ते में उन्हें भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लेकिन उन्होंने सोचा कि दोनों की पूजा एक साथ कैसे की जा सकती है। तभी उन्हें यह विचार आया कि आंवले के वृक्ष में तुलसी और बेल दोनों का गुण एक साथ समाहित होता है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल भगवान शिव को, इसलिए उन्होंने आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक मानते हुए उनकी पूजा की।
तब माता लक्ष्मी नें आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन तैयार किया और भगवान विष्णु और शिव को भोजन कराया। इसके बाद स्वयं भी उन्होंने भोजन किया। इसी दिन से यह परंपरा शुरू हुई, जिसके अनुसार आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करना शुभ और पवित्र माना गया।

अक्षय नवमी या आंवला नवमी का महत्वः

आंवला नवमी का पर्व विशेष रूप से आंवला वृक्ष की पूजा और इसके अद्भुत औषधीय गुणों का सम्मान करने का दिन है। हिंदू धर्म में ऐसी परंपरा है कि हर उस वृक्ष की पूजा की जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी हो और आंवला उन वृक्षों में सबसे महत्वपूर्ण है। आंवला को आयुर्वेद में अमृत फल कहा गया है, क्योंकि इसमें भरपूर विटामिन ब्, आयरन और अन्य पोषक तत्व होते हैं जो शरीर के लिए अत्यंत फायदेमंद हैं।
आंवला नवमी पर आंवला के वृक्ष की पूजा करने से न केवल पुण्य मिलता है, बल्कि यह विभिन्न रोगों से मुक्ति और जीवन में समृद्धि लाने का अवसर भी प्रदान करता है। इसके सेवन से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है, पाचन तंत्र सही रहता है, त्वचा में निखार आता है और बालों की सेहत में भी सुधार होता है। आंवला का जूस भी शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है और यह विभिन्न बीमारियों से लड़ने में मदद करता है। हमारे बुजुर्गों नें आंवला नवमी का त्योहार मनाकर हमें आंवला के महत्व को समझने और उसकी रक्षा करने की परंपरा दी है, ताकि हम इस अमूल्य आशीर्वाद का पूरा लाभ उठा सकें।

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आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने की परंपराः

आंवला नवमी का पर्व विशेष रूप से आंवले के वृक्ष के साथ जुड़ा हुआ है। इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने की परंपरा को लेकर एक विशेष धार्मिक कथा प्रचलित है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और व्यक्ति को समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।
आंवले के वृक्ष के नीचे खाना क्यों खाते हैं?
आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने की परंपरा बहुत पुरानी है। इस दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करने और उसके नीचे भोजन करने से व्यक्ति के जीवन में आ रही परेशानियां दूर हो जाती हैं। यह माना जाता है कि आंवले के वृक्ष की पूजा करने से भगवान विष्णु और भगवान शिव की कृृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही, आंवले के पत्ते का भोजन में प्रयोग विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इस दिन यदि आंवला के पत्ते भोजन की थाली में गिर जाएं, तो यह बहुत ही सौभाग्यशाली माना जाता है।

वर्तमान में परंपरा का पालनः

आज भी यह परंपरा समाज में प्रचलित है। आंवला नवमी पर लोग आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाने और ब्राह्मणों को भोजन कराने की परंपरा का पालन करते हैं। इसके बाद स्वयं भोजन करते हैं। यह माना जाता है कि इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने से जीवन में समृद्धि, सुख और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।

अक्षय नवमी की पूजा विधिः-

प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।
इसके बाद आंवले के वृक्ष पर गंगाजल चढ़ाएं और उसका रोली, चंदन, फूल आदि से श्रृंगार करें।
अब आंवले के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाएं। यह दीपक समृद्धि और सुख की प्राप्ति का प्रतीक होता है।
उसके बाद आंवले के वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें, इस दौरान ध्यान और श्रद्धा से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का स्मरण करें।
परिक्रमा के बाद, आंवले के वृक्ष के नीचे फल, मिठाई आदि का नैवेद्य अर्पित करें। यह भोग देवी-देवताओं को अर्पित करते हुए अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें।
अक्षय नवमी के दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। उनके समक्ष दीपक, फूल, फल और मिष्ठान अर्पित करें।
पूजा के दौरान “¬ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें। यह मंत्र भगवान विष्णु के कृृपा को आकर्षित करने के लिए अत्यंत प्रभावी है।
यदि संभव हो, तो अपनी क्षमता अनुसार किसी जरूरतमंद को भोजन, वस्त्र या धन का दान करें।

अक्षय नवमी शुभ मुहूर्तः-

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