इस वर्ष 2024 में कब है तुलसी विवाह? जानें इसकी पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, पौराणिक कथा तथा इसका महत्वः
हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी माता और शालिग्राम जी का विवाह आयोजित किया जाता है। हालांकि, कुछ लोग द्वादशी तिथि पर भी तुलसी विवाह करते हैं। इस दिन तुलसी की पूजा विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है। हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे का विशेष महत्व होता है, इसे धन की देवी मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। तुलसी का पौधा आमतौर पर प्रत्येक घरों में सुबह-शाम पूजा जाता है, लेकिन खास तौर पर तुलसी विवाह के दिन इसकी पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और खुशियाँ आती हैं।
तुलसी विवाह किये जाने का महत्वः
हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को अत्यधिक पूजनीय माना जाता है। इस पौधे को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है तुलसी के पौधे को घर में सुख-समृद्धि और आर्थिक लाभ के लिए बहुत शुभ माना जाता है। अगर नियमित रूप से तुलसी के पौधे की पूजा की जाए, तो यह व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में सहायक हो सकता है।
तुलसी विवाह की पौराणिक कथाः
तुलसी विवाह की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव नंे अपने तेज को समुद्र में फेंक दिया था, जिससे एक महातेजस्वी बालक का जन्म हुआ। वह बालक बाद में जालंधर नामक दैत्यराज बना। जालंधर की राजधानी जालंधर नगरी थी। दैत्यराज कालनेमी की बेटी वृंदा से जालंधर का विवाह हुआ। जालंधर, जो बहुत शक्तिशाली था, अपनी शक्ति के मद में माता लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिए युद्ध करने निकला। परंतु, क्योंकि वह समुद्र से उत्पन्न हुआ था, माता लक्ष्मी नंे उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया जिसके कारण उसे हार का सामना करना पड़ा।
उसके बाद जालंधर देवी पार्वती को प्राप्त करने के लिए कैलाश पर्वत गया। वहां उसने भगवान शिव का रूप धारण करके माता पार्वती के पास जाने का प्रयास किया, लेकिन देवी नंे उसे तुरंत पहचान लिया और वहां से गायब हो गईं। क्रोधित होकर देवी पार्वती नें पूरी घटना भगवान विष्णु को बताई। जालंधर की पत्नी वृंदा एक पतिव्रता स्त्री थी और उसकी पतिव्रता धर्म की शक्ति से जालंधर न कभी मारा जाता था, न ही पराजित। इसलिए जालंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना आवश्यक था।
इसलिए भगवान विष्णु नंे ऋषि का रूप धारण किया और वन में वृंदा से मिले। ऋषि नें वृंदा के सामने अपनी माया से दो राक्षसों को भस्म कर दिया, जिससे वृंदा बहुत प्रभावित हुई। फिर उसने जालंधर के बारे में पूछा, जो कैलाश पर्वत पर युद्ध कर रहा था। भगवान विष्णु नें अपनी माया से दो वानरों को प्रकट किया, जिनके हाथों में जालंधर का सिर और धड़ था। यह देखकर वृंदा मूर्छित हो गई। होश में आने पर उसने भगवान से विनती की कि वह उसके पति को जीवित करें। भगवान विष्णु नंे माया से जालंधर का शरीर जोड़ दिया, लेकिन भगवान स्वयं उसमें प्रवेश कर गए, जिससे वृंदा का पतिव्रत धर्म टूट गया। इसके बाद जालंधर युद्ध में हार गया।
जब वृंदा को इस धोखे का पता चला, तो उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वह ह्रदयहीन शिला बन जाएं। भगवान विष्णु नंे इस श्राप को स्वीकार किया और शालिग्राम पत्थर बन गए। इस कारण ब्रह्मांड में असंतुलन आ गया। सभी देवी-देवताओं नें वृंदा से प्रार्थना की कि वह भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर दे। वृंदा नें भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर दिया और फिर आत्मदाह कर लिया। जहाँ वह भस्म हुईं, वहां तुलसी का पौधा उग आया।
भगवान विष्णु नंे वृंदा से कहा कि वह अपने सतीत्व के कारण लक्ष्मी से भी प्रिय हो गई हैं और अब वह हमेशा तुलसी के रूप में मेरे साथ ही रहेंगी। तभी से हर साल कार्तिक माह की देव-उठावनी एकादशी को तुलसी विवाह मनाया जाता है। जो भी व्यक्ति तुलसी विवाह के दिन मां तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ करता है, उसे लोक और परलोक में यश की प्राप्ति होती है।
- विशेषः जो व्यक्ति अपने घर में तुलसी का पौधा लगाता है, उस घर में यमराज के दूत भी असमय नहीं आते। मृत्यु के समय यदि तुलसी और गंगा जल का प्रयोग किया जाए, तो व्यक्ति पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को प्राप्त होता है। तुलसी और आंवला के नीचे पितरों का श्राद्ध करने से पितर मोक्ष को प्राप्त होते हैं।
तुलसी का पौधा घर में रखने के वास्तु लाभः
वास्तु शास्त्र के अनुसार, तुलसी के पौधे को घर के उत्तर, उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा में रखना चाहिए। इन दिशाओं में तुलसी के पौधे को रखने से घर में तरक्की, धन लाभ और समृद्धि के योग बनते हैं। घर में तुलसी के पौधे का होना न केवल वातावरण को शुद्ध करता है, बल्कि यह चारो तरफ सकारात्मक ऊर्जा भी उत्पन्न करता है।
कब है तुलसी विवाहः
- इस वर्ष 13 नवंबर 2024 को बुधवार के दिन तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाएगा। यह दिन देवउठनी एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है, जो विशेष रूप से पूजा और व्रत रखने का दिन होता है।
इस दिन होगा हर्षण योग का निर्माणः
इस दिन ज्योतिषीय गणना के अनुसार हर्षण योग का निर्माण हो रहा है, जो शाम 07 बजकर 09 मिनट तक रहेगा। हर्षण योग एक शुभ योग है जो विशेष रूप से धार्मिक कार्यों और पूजा-पाठ के लिए अत्यधिक फलदायी माना जाता है।
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तुलसी विवाह करने के क्या लाभ होते हैंः
- वैवाहिक जीवन में सुख और शांति का आगमन होता है।
- धन-धान्य की वृद्धि होती है और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
- घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो परिवार के सदस्यों के बीच सौहार्द और प्रेम बढ़ाता है।
- यह दिन विशेष रूप से संपत्ति और व्यवसाय में सफलता के लिए भी लाभकारी माना जाता है।
ऐसे करें विधिपूर्वक तुलसी विवाहः
- सबसे पहले, सुबह स्नान करें और फिर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें।
- पूजा के लिए सभी आवश्यक सामग्री जैसे तुलसी का पौधा, शालिग्राम जी की मूर्ति, गेरू, लाल कपड़ा, कलश,
- आम के पत्ते, दीपक, चूड़ी, बिंदी, रोली, कुमकुम आदि एक जगह पर इकट्ठा कर लें।
- एक लकड़ी की चैकी लें और उसपर लाल रंग का साफ कपड़ा बिछाएं।
- अब तुलसी के पौधे को गेरू से रंगकर उसे चैकी पर रखें।
- उसके बाद एक और चैकी लें और उसपर भी साफ या नया वस्त्र बिछाकर शालिग्राम जी की मूर्ति स्थापित करें।
- अब दोनों चैकियों को एक दूसरे के पास रखें।
- तुलसी विवाह करने के लिए गन्ने से मंडप बनाएं और उसे अच्छे से सजाएं।
- एक साफ कलश में जल भरकर उसमें पाँच या सात आम के पत्ते डालें और इसे चैकी पर रखें।
- पूजा के दौरान दीपक जलाएं और तुलसी के पौधे को लाल रंग की चुनरी से ओढ़ाएं।
- तुलसी माता को चूड़ी, बिंदी आदि से श्रृंगार करें और फिर रोली या कुमकुम से तिलक करें।
- अब चैकी समेत शालिग्राम जी को हाथों में लेकर तुलसी के पौधे की सात परिक्रमा कराएं और इस दौरान तुलसी विवाह मंत्र का जाप करते रहें।
- पूजा के बाद आरती करें और फिर परिवार के सभी सदस्यों को प्रसाद बांटें।
दिए गए मंत्र का जाप करके मां तुलसी का विवाह संपन्न करेंः
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धम्र्या धर्मानना देवी देवीदेवमनः प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत््।
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
तुलसी विवाह शुभ मुहूर्तः
तुलसी विवाह 13 नवम्बर 2024 को बुधवार के दिन मनाया जाएगा।
द्वादशी तिथि प्रारम्भ – 12 नवम्बर 2024 को शाम 04ः04 मिनट से,
द्वादशी तिथि समाप्त – 13 नवम्बर 2024 को दोपहर 01ः01 मिनट तक।
तुलसी विवाह से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नः
तुलसी विवाह कब मनाया जाता है?
तुलसी विवाह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है।
तुलसी विवाह का धार्मिक महत्व क्या है?
तुलसी विवाह भगवान विष्णु और मां तुलसी के बीच विवाह का प्रतीक है, जो पुण्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
तुलसी विवाह में कौन से देवी-देवता की पूजा होती है?
तुलसी विवाह में भगवान विष्णु और मां तुलसी देवी की पूजा होती है।
तुलसी विवाह के दिन किस विशेष चीज की पूजा की जाती है?
तुलसी विवाह के दिन तुलसी के पौधे की विधिपूर्वक पूजा की जाती है।
तुलसी विवाह क्यों मनाया जाता है?
तुलसी विवाह का उद्देश्य भगवान विष्णु की कृृपा प्राप्त करना और घर में सुख-शांति लाना होता है।
तुलसी विवाह का पौराणिक आधार क्या है?
तुलसी विवाह भगवान विष्णु और तुलसी के बीच विवाह की कथा पर आधारित है, जिसमें तुलसी नंे भगवान विष्णु से विवाह के लिए तपस्या की थी।
तुलसी विवाह में कौन से विशेष आयोजन होते हैं?
तुलसी विवाह में तुलसी के पौधे की पूजा, भजन-कीर्तन और भोजन का आयोजन होता है।
तुलसी विवाह करने से क्या लाभ होते हैं?
तुलसी विवाह करने से पुण्य की प्राप्ति होती है तथा घर में सुख-समृद्धि और मानसिक शांति मिलती है।