उत्तराखण्ड के चमोली में प्रसिद्ध कल्पेश्वर महादेव मन्दिर की सम्पूर्ण जानकारी

उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले में स्थित पंच केदार में से कल्पेश्वर मंदिर शिव जी का अंतिम केदार है। आपको बता दें कि सर्दियों के महीने में भीषण बर्फबारी के कारण बाकी के 4 केदार बंद कर दिये जाते हैं परन्तु कल्पेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर अपने भक्तों के लिए हर समय खुला रहता है। वास्तव में कल्पेश्वर मंदिर का संबंध केवल भगवान शिव जी से ही नही है बल्कि इतिहास की अन्य घटनाओं के महत्वों से भी है जिसके कारण इस मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है तो आइए कल्पेश्वर महादेव मंदिर के बारे में विस्तार से जानते हैं।

अंतिम केदार कल्पेश्वर का इतिहास

कल्पेश्वर मंदिर के इतिहास के बारे में बात करें तो इस प्राचीन मंदिर का निर्माण महाभारत काल के समय पांडवो द्वारा किया गया था। कल्पेश्वर मंदिर के निर्माण की कथा के अनुसार जब सभी पांडव महाभारत जैसा भीषण युद्ध जीत गये थे तब वे सभी गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव जी के पास गये परन्तु शिव जी उन सभी पांडवो से अत्यधिक क्रोधित हुए थे और बैल का अवतार लेकर धरती में समाने लगे तभी भीम ने यह देख उस बैल को पीछे से पकड़ने के लिए भागे पीछे से बैल को पकड़ने के कारण उस बैल का पीछे वाला भाग वहीं पर रह गया और उसके चार अंग कई स्थानों पर निकल गये। शिव जी के इन पाँचों स्थानों पर ही पांडवों के द्वारा शिवलिंग की स्थापना करके शिव जी के पाँच मंदिरों का निर्माण करते हैं जिसे पंच केदार के नाम से जानते हैं।

कल्पेश्वर नाम का अर्थ क्या है

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार कल्पेश्वर का अर्थ होता है कल्प वृक्ष अर्थात कल्प वृक्ष को सबसे महत्वपूर्ण वृक्षों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि प्रभु श्री कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के कहने पर कल्पवृक्ष को स्वर्ग लोक से पृथ्वी लोक लेकर आये थें। वास्तव में यह वृक्ष सभी पृथ्वी वासियों के लिए वरदान देने वाला होता है। प्राचीन समय में कल्पेश्वर केदार की भूमि पर ही कल्पवृक्ष हुआ करते थे। मान्यता के अनुसार सबसे महान ऋषियों में से एक है ऋषि दुर्वासा ने भी इसी कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी। तभी से इस स्थल को कल्पेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाने लगा।

कल्पेश्वर महादेव मंदिर की संरचना कैसी है

कल्पेश्वर महादेव मंदिर के संरचना की बात करें तो यह मंदिर अत्यधिक छोटा है परन्तु इसके अन्दर की संरचना बहुत ही ज्यादा अद्भुत है। आपको बता दें कि कल्पेश्वर मंदिर में भगवान शिव जी का शिवलिंग एक गुफा में स्थित है। जहाँ शिव जी के सभी भक्तों के द्वारा शिव जी के जटाओं की पूजा की जाती है। कल्पेश्वर स्थित गुफा में प्रवेश करने के लिए आपको लगभग एक किलोमीटर पैदल चलकर शिव जी का दर्शन करना पड़ेगा।

कल्पेश्वर में स्थित शिवलिंग

जैसा कि आपको पता हैं भगवान शिव जी के अलग-अलग रुपों को हम कई तरह के नामों से जानते हैं इसके अलावा यदि हम कल्पेश्वर में स्थित मंदिर की बात करें तो यहाँ स्थित शिव जी के शिवलिंग को जटाधारी या जटेश्वर भी कहा जाता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार यहाँ स्थित शिवलिंग भगवान शिव जी की जटाओं या उलझें बालों का प्रतीक होता है। यहाँ स्थित शिवलिंग प्राकृतिक है जो कि यहाँ की भूमि में से प्रकट हुआ है। यहाँ स्थित शिव जी के शिवलिंग को अनादिनाथ कल्पेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।

कल्पेश्वर मंदिर में स्थित कलेवर कुंड

शिव जी के अंतिम केदार में स्थित कल्पेश्वर मंदिर के पास ही एक पानी का बड़ा सा कुण्ड स्थित है जिसे कलेवर कुण्ड के नाम से जाना जाता है। वहाँ पर रहने वाले लोगों की मान्यता के अनुसार यहाँ स्थित कुण्ड का सारा पानी एकदम स्वच्छ और शुद्ध होता है। ऐसा कहा जाता है कि उस कुण्ड का पानी मात्र पी लेने से जातक की सारी बीमारियाँ दूर हो जाती हैं तथा लम्बे समय से हुए बीमारियों से उन्हें छुटकारा भी मिल जाता है इसलिए यहाँ पर आने वाले लाखों श्रद्धालु इस कुण्ड से पानी-पीना विशेष रुप से नही भूलते हैं।

कल्पेश्वर में स्थित कल्पगंगा और दुर्वासा भूमि

☸ कल्पेश्वर मंदिर के पास एक नदी स्थित है जिसे कल्पगंगा के नाम से जानते हैं। आपको बता दें कि यहां पर स्थित इस कल्पगंगा नदी को पहले हिरण्यवती नदी के नाम से भी जाना जाता है।

☸ इसके अलावा कल्पेश्वर मंदिर में कल्पगंगा के दायीं ओर स्थित तट को ऋषि दुर्वासा भूमि के नाम से भी जाना जाता है। ऋषि दुर्वासा के बारे में यदि बतायें तो इन्हें सतयुग के बहुत ही महान ऋषियों में से एक माना जाता था जिसका उल्लेख रामायण में भी सुनने को मिलता था।

कल्पेश्वर मंदिर से जुड़ी कुछ अन्य कहानियाँ और मंदिर के कुछ अन्य नाम

☸ उत्तराखण्ड के चामोली में स्थित पंच केदार के अंतिम केदार अर्थात कल्पेश्वर मंदिर को कुछ अन्य नामों से भी जाना जाता है। इस मंदिर को (कल्पनाथ मंदिर), (अनादिनाथ मंदिर), (जटेश्वर मंदिर), (जटाधारी शिव मंदिर), (अंतिम) या (पंचम केदार) ये सभी मंदिर कल्पेश्वर मंदिर के नाम से भी जाने जाते हैं।

☸ इस मंदिर से जुड़ी अन्य कहानियों के अनुसार ऋषि दुर्वासा के अलावा देवराज इन्द्र ने भी यहाँ बैठकर तपस्या की थी।

☸ ऋषि दुर्वासा के साथ यहाँ आए हुए अन्य ऋषि मुनियों ने भी कल्पेश्वर मंदिर आकर तपस्या की थी यह मंदिर ऋषि मुनियों की भी तप की भूमि थी। इस मंदिर पर ऋषि दुर्वासा के द्वारा ही स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी को बनाया गया था।

☸ असुरों के अत्याचार से तंग आकर सभी देवी-देवताओं ने इसी मंदिर में भगवान शिव शंकर जी की स्तुति की थी।

☸ कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव जी नें यहीं से समुंद्र मंथन की योजना बनाई थी।

कल्पेश्वर मंदिर के खुलने और बंद होने का समय

☸ पंच केदार में से अंतिम केदार के बारे में बात करें तो यह एक ऐसा केदार हैं जो अपने सभी भक्तों के लिए खुला रहता है। अतः यहाँ पर आकर दर्शन करने वाले लाखों श्रद्धालु किसी भी मौसम या माह में आकर भगवान शिव जी के इन जटाओं की पूजा-अर्चना कर सकते हैं।

☸ यह मंदिर अपने सभी भक्तों के लिए सुबह 6 बजे तक खुल जाता है और शाम होते ही संध्या की आरती यहाँ 7 बजे की जाती है। संध्या की आरती हो जाने के बाद ही लगभग 8 बजे तक मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं।

☸ कल्पेश्वर मंदिर में सुबह की आरती 06ः30 बजे के आस-पास तथा संध्या की आरती लगभग 7 बजे से की जाती है उसके बाद आठ बजे तक मंदिर के कपाट बंद हो जाते है।

 

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