भाद्रपद शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को ऋषियों को समर्पित ऋषि पंचमी का त्योहार मनाया जाता है और इस दिन किए जाने वाले व्रत को ऋषि पंचमी व्रत कहा जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार इस दिन सभी स्त्रियों को यह व्रत करना चाहिए। यह व्रत शरीर के द्वारा अशुद्ध अवस्था में किए गये स्पर्श तथा अन्य पापों के प्रायश्चित के रुप में किया जाता है स्त्रियों से जाने-अनजाने में रजस्वला अवस्था में पूजा, घर के कार्य, पति को स्पर्श आदि हो जाता है तो इस व्रत से उनके पाप नष्ट हो जाते है यह दिन हमारे पौराणिक ऋषि-मुनि वशिष्ठ, कश्यप विश्वामित्र अति जगदग्नि गौतम और भारतद्वाज इन सात ऋषियों के पूजन के लिए खास माना गया है।
व्रत करने का विधि-विधान
इस व्रत को करने वाले प्रातः काल नदी या घर में ही गंगाजल पानीे में डालकर स्नान करते है। इसके बाद पूजा स्थान को साफ और स्वस्थ्य बनाते है। उस स्थान पर रंगोली के रंगो से मंडप बनाकर उस पर मिट्टी अथवा तांबे के बर्तन में जौ भरकर उस पर सप्त ऋषि की प्रतिमा स्थापित करें उन्हें पवित्र धागा पहनाएं चित्र के ऊपर शुद्ध जल और पंचामृत डाले चंदन से टीका लगाएं, सप्तऋषि को फूलों की माला और पुष्प अर्पित करें। उस स्थान पर धूप आदि रखें। कई इलाकों मे यह प्रक्रिया नदी के किनारे या किसी तालाब के पास की जाती है। इस पूजा के बाद महिलाएं अनाज का सेवन नही करती ऋषि पंचमी के दिन वे एक खास तरह के चावल का सेवन करती है।
ऋषि पंचमी की व्रत कथा
सतयुग में विर्दभ नगरी मे श्येनजित नामक राजा हुए थे। वह ऋषियों के समान थे। उन्हीें के राज में एक कृषक सुमित्रा था उसकी पत्नी जय श्री अत्यन्त पतिव्रता थी। एक समय वर्षा ऋतु में जब उसकी पत्नी खेती के कार्यों लगी हुई थी तो वह रजस्वला होने का पता लग गया फिर भी वह घर के कामों में लगी रही। कुछ समय बाद वह दोनो स्त्री पुरुष अपनी आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुए। जय श्री तो कुटिया बनी और सुमित्र को रजस्वला स्त्री के सम्पर्क मे आने के कारण बैल योनी मिली क्योंकि ऋतु दोष के अतिरिक्त इन दोनो को कोई अपराध नही था।
इसी कारण इन दोनो को अपने पूूर्व जन्म का समस्त विवरण याद रहा वे दोनो कुतिया और बैल के रुप में उसी नगर में अपने बेटे सुचित्र के यहां रहने लगे। धर्मात्मा सुचित्र अपने अतिथियों का पूर्ण सत्कार करता था अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर ब्राह्मणों को भोजन के लिए अनेक प्रकार के भोजन बनवाएं। जब उसकी स्त्री किसी काम के लिए रसोई से बाहर गई हुई थी तो एक सर्प ने रसोई की खीर के बर्तन में विष वमन कर दिया कुटिया के रुप में सुचित्र की मां कुछ दूर से सब देख रही थी पुत्र की बहु के आने पर उसने पुत्र को हत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल दिया। सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती से कुटिया का यह कृत्य देखा न गया और उसने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल कर कुतिया को मार दी। बेचारी कुटिया मार खाकर इधर-उधर भागने लगी। चैके में जो झूठन आदि बची रहती थी वह सुचित्र की बहु उस कुटिया को डाल देती थी लेकिन क्रोध के कारण उसने वह भी बाहर फिकवा दिया।
सब खाने का सामान फिकवा कर बर्तन साफ करके दोबारा खाना बना कर ब्राह्मणों को खिलाया। रात्रि के समय भूख से व्याकुल होकर वह कुटिया बैल के रुप में रह रहे अपने पूर्व पति के पास आकर बोली हे स्वामी! वैसे तो मेरा पुत्र मुझे रोज खाने को देता था लेकिन आज मुझे कुछ नही मिला सांप के विष वाले खीर के बर्तन को अनेक ब्राह्मणों के हत्या के भय से छुकर उनके न खाने योग्य कर दिया। इसी कारण उसकी बहु ने मुझे मारा और खाने को भी नही दिया तब वह बैल बोला हे भडे! तेरे पापों के कारण तो मैं भी इस योनि मे आ पड़ा हूं और आज बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी कमर टूट गई है आज मै भी खेत मे दिनभर हल में जुता रहा मेरे पुत्र ने आज मुझे भोजन नही दिया और मुझे मारा भी बहुत मुझे इस प्रकार कष्ट देकर उसने इस श्राद्ध को निष्फल कर दिया अपने माता-पिता की इन बातों को सुचित्र सुन रहा था।
उसने उसी समय दोनो को भप पेट भोजन कराया और फिर उनके दुख से दुखी होकर वन की ओर चला गया वन मे जाकर ऋषियों से अपने माता-पिता के कष्टों का कारण पूछा तथा उन्हें इस योनि से बाहर निकलने का उपाय पूछा तब सर्वतन्ना ऋषि बोले तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नी सहित ऋषि पंचमी का व्रत धारण करो तथा उसका फल अपने माता-पिता को दो। भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी को मुख शुद्ध करके मध्याह में नदी के पवित्र जल में स्नान करना और नए रेशमी कपड़े पहनकर अरुधन्ती सहित फल, फूल, चंदन, धूप, अक्षत, मिष्ठान, दीप आदि चढ़ाकर सभी सप्त ऋषियों की पूरे विधि-विधान से पूजा करें।
ऋषि पंचमी व्रत पूजा मंत्र
कश्यापोनिर्भरऽवाजो विश्व मित्रोथ गौतम ।
जमद्ग्रिर्सविष्ठश्रच सप्तैते ऋषयः स्मृता ।।
दहन्तु पापं सर्व गृहत्वध्र्य नमो नमः
ऋषि पंचमी व्रत की उद्यापन विधि
ऐसा माना जाता है कि ऋषि पंचमीका व्रत एक बार करना शुरु कर दे तो फिर यह व्रत प्रतिवर्ष करना जरुरी है और यह वृद्धावस्था तक किया जाता है। इसके बाद आप इस व्रत का उद्यापन कर सकते है। उद्यापन करने के लिए कम से कम 07 ब्राह्मणों को भोजन करायें, ब्राह्मणो को वस्त्र अथवा अन्न दान करें।
इस व्रत वाले दिन विधि पूर्वक पूजा करने के बाद ब्राह्मण देवताओं को भोजन करवाना चाहिए सात ब्राह्मण देवो को सप्त ऋषि मानकर उनको यथा शक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करें।
ऋषि पंचमी शुभ तिथि एवं मुहूर्त
ऋषि पंचमी पूजा मुहूर्तः- प्रातः 11ः01
अवधिः- 2 घण्टे 27 मिनट
पंचमी तिथि प्रारम्भः- 19 सितम्बर 2023 को दोपहर 01ः43 बजे
समाप्तः- 20 सितम्बर 2023 को दोपहर 02ः16 तक