कब बनता है कुण्डली में व्यभिचारिणी योग या चरित्रहीन योग

कुण्डली में व्यभिचारिणी योग या चरित्रहीन योग मंगल ग्रह एवं शुक्र ग्रह के कारण बनता है। व्यभिचारिणी या चरित्रहीन योग के फलस्वरुप जातक या जातिका का दूसरों के प्रति आकर्षण का भाव जागृत होकर उनकी तरफ अपने मन को झुका देना होता है ये व्यभिचारी या चरित्रहीन योग के कारण होता है जिसके फलस्वरुप जातक को यह ज्ञात नही हो पाता की वह क्या करने जा रहा है तथा जब उनको पता चलता है तब बहुत देर हो जाती है। शुक्र ग्रह को कामवासना का ग्रह माना जाता है और मंगल ग्रह को रक्त एवं उत्तेजना का कारक माना जाता है। जब इन दोनो ग्रह का संबंध एक दूसरे के साथ बनता है तो यह योग विशेषकर फलीभूत होता है। किसी भी जातक या जातिका के चरित्र के बारे में उसकी कुण्डली देखकर पता लगाया जा सकता है कि वह व्यक्ति या महिला चरित्रवान है या नही जब भी लड़की या लड़के की जन्म कुण्डली मिलाते समय उन दोनों में ग्रहों की स्थिति के आधार पर उनके चरित्र का आंकलन करना चाहिए।

कैसे बनता है व्यभिचारिणी योग

जब कुण्डली के सातवें घर में राहु एवं सूर्य का सम्बन्ध बनता है तब व्यभिचारिणी का योग बनता है या सातवें घर में दशम घर का स्वामी होने पर या दसवें घर सातवें का स्वामी के बैठने पर यह जातक या जातिका को व्यभिचारी बना सकता है। जब सूर्य ग्रह जन्म कण्डली में चन्द्रमा ग्रह से सातवें स्थान पर होता है तथा शुक्र ग्रह जो की काम शक्ति का प्रतीक दशवे घर में बैठा होता है तब व्यभिचारिणी योग को बना देता है जिससे इस योग के कारण जातक का चरित्र हनन हो जाता है।

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☸ जब जन्म कुण्डली में वृषभ राशि या तुला राशि यदि दसवें घर में होती है उस दसवी राशि में बुध ग्रह, शुक्र ग्रह और शनि ग्रह का मेलजोल हो जाता है तब भी व्यभिचारिणी योग बनता है। जिससे चरित्र हनन हो जाता है।
☸ जब षष्ठम घर आठवें घर, बारहवें घर में जब छठे घर का स्वामी आकर बैठ जाता है तब भी व्यभिचारी योग का निर्माण होता है।
☸ जब राहु ग्रह या केतु ग्रह का मेलजोल सातवें घर के स्वामी ग्रह के साथ होता है और उन पर पाप ग्रह के द्वारा देखा जाता है तब वह चरित्र को बहुत बिगाड़ देता है जिससे सामाजिक जीवन में बदनामी को भी भोगना पड़ता है।
☸ जब जन्म कुण्डली के सातवें घर में सूर्य ग्रह, चन्द्रमा ग्रह, मंगल ग्रह एक साथ विराजमान होते हैं तब भी इस योग का निमाण हो जाता है।
☸ जब तीसरे घर या चौथे घर में दूसरे घर का स्वामी आकर बैठ जाता है तब भी यह योग बनता है।
☸ जब आठवें घर अर्थात आयु स्थान के स्वामी ग्रह का मेलजोल नवमें घर अर्थात भाग्य स्थान के साथ होता है साथ ही इन भावों में चन्द्रमा ,एवं शनि ग्रह का एक साथ बैठने पर यह योग बनता है।
☸ जब सातवें घर या पत्नी भाव में बुध ग्रह अकेला बैठा हो शुक्र ग्रह और गुरु बुरे ग्रह के साथ मेलजोल करते हुए दूसरे घर छठे या रोग के घर में या सातवें घर में बैठा होता है तब बुरे योग से मनुष्य व्यभिचारी बनता है।
☸ जब दूसरे घर या धन भाव का स्वामी तीसरे घर में बैठ जाता है एवं ग्यारहवें घर के स्वामी, नवम घर के स्वामी पर गुरु ग्रह के द्वारा देखा जाता है तब यह योग बनता है।
☸ लग्न के मालिक, सातवें घर के मालिक की युति हो या दोनों का परस्पर एक दूसरे को देखने का सम्बन्ध हो तो मनुष्य बहुत अधिक स्त्रियों के साथ सम्बन्ध बनाता है।
☸ जब नीच राशि या दुश्मन की राशि के सातवें घर के स्वामी बैठे होते है तब मनुष्य व्यभिचारिणी बनता है।
☸ जब जन्म कण्डली के पहले घर या शरीर भाव में सातवें घर के स्वामी बैठ जाते हैं।
☸ जब पहले घर, दूसरे घर एवं सातवें घर पर पापी ग्रहों का प्रभाव होता है तब भी व्यभिचारी का
☸ योग बनता है।
☸ जब कुण्डली के सातवें घर में और आठवें घर में बुरे ग्रह बैठे हो तो तब मंगल ग्रह बारहवें घर में बैठा हो और सातवें घर के स्वामी की अपने घर पर पूर्ण दृष्टि नही होती है तब आदमी की पहली पत्नी की मृत्यु या औरत के पहले पति की मृत्यु होने पर अपना सम्बन्ध दूसरों से बनाता है।

व्यभिचारी योग से बचने के उपाय

☸व्यभिचारी योग से बचने के लिए स्त्रियों को प्रतिदिन शिव पार्वती की पूजा करनी चाहिए।
☸आपको पूरे विधि-विधान से हरितालिका तीज का व्रत भी रखना चाहिए।
☸इसी के साथ स्त्रियां भगवान शिव को सोमवार को जल भी चढ़ा सकती हैं।
☸साथ ही महिलाएं सोमवार का व्रत भी रख सकती हैं। इससे महिलाओं को शुभ परिणाम प्राप्त होंगे।
☸साथ ही आप किसी अनुभवी ज्योतिषी की सलाह से ही रत्न की अंगूठी धारण करनी चाहिए।
☸वही इस योग से छुटकारा पाने के लिए महिलाओं को बुजुर्गों औरअपने माता-पिता का अपमान नही करना चाहिए।
☸अपने से बड़ों का आदर करना चाहिए और उनकी सेवा भी करनी चाहिए।
☸स्त्रियों को भोजन दान करना चाहिए शुभ परिणाम मिलेंगे।
☸प्रतिदिन हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का पाठ करने से व्यभिचारिणी योग से छुटकारा मिलता है।
☸पीपल के वृक्ष पर हल्दी डालकर चढ़ाना चाहिए।
☸साथ ही पीपल के वृक्ष की सात बार परिक्रमा करने से महिलाओं को अशुभ परिणाम प्राप्त नही होते

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