कर्ण पिशाचिनी
कर्ण पिशाचिनी दो शब्दों से मिलकर बना है पहला कर्ण तथा दूसरा पिशचिनी, जिसमें कर्ण शब्द का अर्थ है कान तथा पिशाचिनी शब्द का अर्थ है दुष्ट आत्मा, राक्षसी या नकारात्मक शक्ति। इस प्रकार कर्ण पिशाचिनी एक प्रकार की दुष्ट आत्मा है जो लोक कथाओं एवं भारतीय पौराणिक कथाओं में प्रचलित है। इस कथा की मान्यता है कि कर्ण पिशाचिनी एक महिला है जो किसी व्यक्ति के कान से उसके अन्दर प्रवेश करती है तथा उसके मन और सभी क्रियाओं को नियंत्रित कर सकती है।
कर्ण पिशाचिनी की साधना
कर्ण पिशाचिनी के बारे में लगभग सभी तांत्रिक जानते है। कर्ण पिशाचिनी की साधना बहुत ही कठिन होती है तथा इसे एक गुप्त त्रिकाल दर्शी साधना भी माना जाता है। कर्ण पिशाचिनी की साधना का अनुष्ठान दो तरीके से किया जाता है पहला वैदिक और दूसरा तांत्रिक विधि द्वारा। यह साधना ग्यारह या इक्कीस दिनों में पूर्ण होती है। जो भी साधक इसकी साधना करते हैं वह इसके प्रति अत्यधिक आस्थावान, आत्मविश्वासी एवं असहजता को झेलने की अटूट एवं अटल शक्ति रखते हैं। यही कारण है कि सामान्य व्यक्ति को इस साधना से दूर रखा जाता है नही तो इसके बुरे परिणाम भी बहुत भयावह होते है।
कर्ण पिशाचिनी सिद्धि के परिणाम
ऐसा माना जाता है जो भी जातक कर्ण पिशाचिनी की सिद्धि को पूर्ण कर लेते है उनके कानों में पिशाचिनी की आवाज सुनाई देती है अर्थात पिशाचिनी कानों मे आकर अथवा विचारों एवं संकेतो के माध्यम से उनके प्रश्नों का उत्तर देती है जिससे वे किसी भी प्रकार की समस्या का हल निकाल सकते है। यह साधना बहुत ही भयानक होती है इसलिए सावधानी पूर्वक पहले अपने गुरु मंत्र को किसी योग्य गुरु द्वारा अपने मुख्य देवता की साधना विधिपूर्वक कर लेनी चाहिए। कर्ण पिशाचिनी की साधना से भूतकाल एवं वर्तमान की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते है।
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कर्ण पिशाचिनी की साधना करते समय रखें सावधानियां
कर्ण पिशाचिनी की साधना करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना होता है अन्यथा आपको कई नकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते है। सिद्धि का विपरीत परिणाम आपके ऊपर पड़ सकता है। साधना करते समय काले वस्त्र पहनें तथा कोई भी अनुचित बात न करें। इस दौरान किसी भी शर्त पर महिलाओं से दूर रहें तथा निराहार रहें। कर्ण पिशाचिनी के सिद्ध तांत्रिको एवं विद्वानों द्वारा कहा जाता है इस सिद्धि में गलती से भी कोई त्रुटि नही होनी चाहिए तथा यह साधना अकेले नही करना चाहिए आपके साथ किसी योग्य गुरु विशेषज्ञ तांत्रिक का होना अति आवश्यक है।
कर्ण पिशाचिनी साधना के कुछ विधि एवं मंत्र
प्रथम विधिः- ग्यारह दिनों तक चलने वाली कर्ण पिशाचिनी की साधना के लिए दिन अथवा रात्रि को चौघड़िया मुहूर्त में, पीतल या कांसे की थाली में उंगली के द्वारा सिंदूर से त्रिशूल बनाएं उसके बाद शुद्ध गाय का घी और तेल का दो दीपक जलाएं तथा सामान्य रुप से उसकी पूजा करें। पूजन के पश्चात 1100 बार निम्न मंत्र का जाप करें यह विधि आपको ग्यारह दिनों तक दोहरानी है इससे कर्ण पिशाचिनी की सिद्धि हो जाती है।
मंत्रः- ओम नमः कर्ण पिशाचिनी अमोघ सत्यवादिनी मम कर्णे अवतरावतर अतीता नागतवर्त
मानानि दर्शय दर्शय मम भविष्य कथय-कथय हृीं कर्ण पिशाचिनी स्वाहा।
दूसरी विधिः- यह विधि सामान्यतः दीपावली, होली या ग्रहण के दिन आरम्भ की जाती है। इसकी पूर्ण आहूति 21 वें दिन होती है। इस सिद्धि के लिए आम की लकड़ी के बने तख्त पर अनार की कलम से निम्न मंत्र को 108 बार लिखें साथ ही उच्चारण भी करें। एक बार लिखने के बाद उसे मिटाकर दूसरा लिखा जाता है। अंतिम बार इसकी पंचोपार विधि से पूजा करें तथा दोबारा 1100 बार मंत्र का स्पष्ट उच्चारण के साथ जाप करें।
मंत्रः- ओम नमः कर्ण पिशाचिनी मत्तकारिणी प्रवेशे अतीत नागतवर्तमानानि सत्यं कथय में स्वाहा।
तीसरी विधिः- इस विधि को भी 21 दिनों तक किया जाता है तब कर्ण पिशाचिनी की सिद्धि पूर्ण होती है। इसके लिए ग्वारपाठे को अभियंत्रित कर उसके गुदे को हाथ और पैरों पर लेप लगाया जाता है तथा प्रतिदिन पाँच हजार (5000) बार निम्न मंत्र का जाप किया जाता है।
मंत्रः- ओम हृीं नमों भगवती कर्ण पिशाचिनी चंडावेगिनी वद वद स्वाहा।
चौथी विधिः- यह विधि तीसरी विधि के तरह ही होती है परन्तु इसमें दिए गए मंत्र का प्रतिदिन 5000 हजार जाप काले ग्वार पाठे के सामने करें 21 दिनों के उपरान्त इसकी सिद्धि हो जाती है।
मंत्रः- ओम हृीं सनामशक्ति भगवती कर्ण पिशाचिनी चंडरुपिणि वद वद स्वाहा।
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पांचवी विधिः-पांचवी विधि में गाय के गोबर के साथ पीली मिट्टी मिलाकर प्रतिदिन पूरे कमरे की लिपाई की जाती है अथवा तुलसी के चारों ओर के कुछ स्थान को लेपना चाहिए तथा उस स्थान पर हल्दी, कुमकुम एवं अक्षत डालकर आसन बिछाएं और नीचे दिए गए मंत्र का प्रतिदिन 10,000 बार जाप करें। यह प्रयोग ग्यारह दिनों तक करना है।
मंत्रः- ओम हंसो हंसः नमो भगवती कर्ण पिशाचिनी चंडवेगिनी स्वाहा।
छठवी विधिः- इस विधि की मुख्य विशेषता है यह कि यह विधि रात को लाल वस्त्र पहन के किया जाता है। सबसे पहले घी का दीपक जलाएं उसके बाद निम्न मंत्र का 10,000 बार जाप करें यह साधना आपको 21 दिनों तक करनी है।
मंत्रः- ओम भगवती चंडकर्णे पिशाचिनी स्वाहा।
सातवीं विधिः- यह विधि सबसे महत्वपूर्ण एवं पवित्र मानी जाती है। इस विधि में रात को कर्ण पिशाचिनी के एक देवी के रुप ध्यान स्मरण किया जाता है। कई मान्यताओं के अनुसार इस मंत्र को वेद व्यास जी ने सिद्ध किया था। इस विधि के शुरुआत ओम अमृत कुरु कुरु स्वाहा! लिखकर करनी होती है। उसके पश्चात मछली को बलि दी जाती है। बलि देते समय निम्न मंत्र का जाप करें।
मंत्रः- ओम कर्ण पिशाचिनी दग्धमीन बलि, ग्रहण ग्रहण मम सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा।
इस विधान के पूरा हाने के पश्चात निम्न मंत्र का 5000 बार जाप करें इस बात का पूर्ण ध्यान रखें कि पूरी प्रक्रिया प्रातः सूर्योदय से पहले पूर्ण हो जाए।
मंत्रः- ओम हृीं नमों भगवती कर्ण पिशाचिनी चंडवेगिनी वद वद स्वाहा।
कुछ मान्यताओं के अनुसार कर्ण पिशाचिनी यक्षिणी देवलोक से निष्कासित होकर धरती पर भटक रहा है। जो अपने शक्ति एवं मंत्रों द्वारा इसको पकड़ लेता है वो भूत, वर्तमान काल की बाते जान सकता है।
इसकी पूर्णाहुति तर्पण के मंत्र ओम कर्ण पिशाचिनी तर्पयामि स्वाहा से की जाती है तथा यह प्रयोग 21 दिनों में पूर्ण होता है। इससे कई लाभ प्राप्त होते है परन्तु नकारात्मक परिणाम भी मिलते है।
विशेषः- इस लेख का मुख्य उद्देश्य कर्ण पिशाचिनी की सामान्य जानकारी देना है अर्थात हमारा उद्देश्य अंध विश्वास को बढ़ावा देना नही है। इस लेख द्वारा दी गई जानकारी के दुष्परिणाम के लिए हम जिम्मेदार नही होंगे अतः जो भी करें अपने जोखिम पर करें।
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