ये पाँच महायज्ञ जो दिलायेंगे आपको सबसे बड़ा सांसारिक सुख आज ही करें, यज्ञ का अर्थ होता है त्याग, शुभ काम एवं समर्पण इत्यादि। यज्ञ में महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थों एवं मूल्यवान सुगंधित पौष्टिक तरल पदार्थों को अग्नि मे डालतें है ऐसा माना जाता है वायु के माध्यम से यज्ञ सभी लोगों का कल्याण करता है।
वैदिक युग में पूजा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य अनुष्ठान या, जो साधू-संतो, ऋषि-मुनियों द्वारा अग्नि के चारों ओर मंत्रों का जाप करते हुए किया जाता था। भगवदगीता में यज्ञ एक ‘जीवनदर्शन’ है। यज्ञ के देवता अग्निदेव है तथा यज्ञ कई रुपों मे होता है। आज हम उन्हीं महायज्ञों मे से कुछ विशेष यज्ञों के बारे में ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी से जानेंगे जो आपके लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होंगे।
वेदों के अनुसार यज्ञ के पाँच प्रमुख प्रकार होते हैः- ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, वैश्वदेव यज्ञ, अतिथि यज्ञ।
देवयज्ञ
देवयज्ञ वह यज्ञ है जो सत्संग तथा अग्निहोत्र कर्म से उत्पन्न होता है। इस यज्ञ में, वेदी में अग्नि जलाकर हवन किया जाता है, इसी यज्ञ को अग्निहोत्र यज्ञ के नाम से भी जाना जाता है। यह यज्ञ संधिकाल में गायत्री छंद के साथ होता है तथा इस यज्ञ को करने देवऋण से मुक्ति मिलती है। जाने अनजाने में किये हुए पापों से भी मुक्ति मिलती है। हवन करने को ही देवयज्ञ कहा जाता है, हवन में आम, बड़, पीपल, ढाक, जांटी, जामुन एवं शमी की लकड़ियों को सबसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इससे संसार में सकारात्मकता एवं शुद्धता बढ़ती है। बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है। पारिवारिक जीवन में संतुलन बना रहता है।
अतिथि यज्ञ
अतिथि का अर्थ है मेहमान अर्थात मेहमानों की सेवा करना उन्हें अन्न जल देना तथा मुश्किलों में उनकी सहायता करना। किसी महिला, सन्यासी, विद्यार्थी, अपंग, चिकित्सक तथा धर्म के रक्षकों की सेवा-सहायता करना ही अतिथि यज्ञ कहलाता है। इस यज्ञ से सन्यास आश्रम पुष्ट होता है तथा यह सामाजिक कर्तव्य ही पुण्य है।
सकारात्मक भाव से ईश्वर प्रकृति तत्वों से किये गए आह्वान से जीवन की प्रत्येक इच्छा पूरी होती है।
ब्रह्मयज्ञ
ब्रह्मयज्ञ नित्य संध्या वादन, स्वाध्याय तथा वेदपाठ करने से सम्पन्न होता है। इस यज्ञ से ऋषि-मुनियों का ऋण मुक्त होता है तथा ब्रह्मचर्य आश्रम का जीवन भी पुष्ट होता है। कहा जाता है जड़ और प्राणी से बढ़कर मनुष्य है मनुष्य से बढ़कर पित्तर अर्थात माता-पिता एवं गुरुजन। पितरों से बढ़कर है देव एवं देव से बढ़कर है ईश्वर और हमारे ऋषिगण।
वैश्वदेव यज्ञ
वैश्वदेव यज्ञ को भूत यज्ञ के नाम से भी जाना जाता है तथा मानवशरीर, पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। सभी प्राणियों एवं वृक्षों के प्रति करुणा तथा उन्हें अन्न जल देना ही वैश्वदेव यज्ञ कहलाता है जो कुछ भी भोजन कक्ष में स्थित हो उसका कुछ अंश अग्नि में हवन करें अर्थात जिससे भोजन पकाया जाता हे। इसके अलावा कुछ अंश कुत्ते, कौवे एवं गाय को खिलाएं।
पितृयज्ञ
कई वेदों और पुराणों के अनुसार पितृयज्ञ हमारे पूर्वजों, माता-पिता और आचार्य के लिए किया जाता है। यह यज्ञ संतान उत्पत्ति से सम्पन्न होता है। इस यज्ञ से पितृ ऋण मुक्त होता है तथा पुराणों मे इसे श्राद्ध कर्म कहते है। सत्य एवं श्रद्धा से किये गये कर्म श्राद्ध और जिस कर्म से माता-पिता और आचार्य तृप्त हो वह तर्पण है।
|| ओम विश्वानि देव सवितुर्दुरितानि परासुव। यद्भद्रं तन्नासुव || [यजुवेद]
भावार्थः- हे ईश्वर आप हमारे सारे दुर्गणों को दूर कर दो और जो अच्छे गुण, कर्म एवं स्वभाव हमे प्रदान करों।
उपरोक्त सभी यज्ञ पुराणों के पाँच प्रमुख यज्ञ है और सभी यज्ञ उनके उप प्रकार है जिनको अलग-अलग नाम से जाना जाता है। इन की विधियाँ भी अलग-अलग है। उप प्रकार के यज्ञ जैसे अग्निहोत्र, सोमयज्ञ, राजसूय, अग्निचय, वाजपेय यज्ञ आदि।
हवन एवं यज्ञ में अन्तर
किसी भी प्रकार की पूजा इत्यादि के पश्चात अग्नि में दी जाने वाली आहुति की प्रक्रिया हवन के रुप जानी जाती है। हवन यज्ञ का ही छोटा रुप माना जाता है। हवन में वेद मंत्र, ऋत्विक, दक्षिणा, देवता, आहुति अनिवार्य रुप से सम्मिलित किये जाते है।
विशेषः- धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माना जाता है यज्ञ की रचना सर्वप्रथम परमपिता ब्रह्मा ने की।