कल्परंभ जिसे काल का प्रारम्भ भी कहा जाता है इसकी क्रिया प्रातः काल मेे ही किये जाने का विधान बताया जाता है। यह क्रिया प्रातः काल घट या कलश में जल भरकर माँ दुर्गा जी को समर्पित करते हुए इसकी स्थापना की जाती है। घट स्थापना करने के बाद ही महासप्तमी, महाअष्टमी और महानवमी की विधिवत पूजा आराधना की जाती है। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथी को दुर्गा पूजा का आरंभ कल्पारम्भ परंपरा से होता है ये बाकी राज्यों में बिल्व निमंत्रण पूजन और अधिवास परंपरा के समान होता है।
कल्परंभ और अकाल बोधन पूजन महत्वः-
आपको बता दे कल्परंभ, पश्चिम बंगाल में दूर्गा पूजा के अनुष्ठानों के शुभारम्भ का प्रतीक माना जाता है। इस परंपरा को अकाल बोधन भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार अकाल बोधन का अर्थ होता है माँ दुर्गा का असामायिक आह्वान करना यानि माँ दुर्गा को असमय निद्रा से जगाना, चतुर्मास के शुरु हो जाने पर सभी देवी देवता दाक्षिणायन काल में निद्रा अवस्था में होते है ऐसे मे मां दुर्गा को जगाकर उनकी पूजा करने का विधान होता है, दुर्गा पूजा के समय कल्परंभ अनुष्ठान और नवरात्रि के समय प्रतिपदा तिथि पर किये जानें वाला घटस्थापना प्रतीकात्मक रूप से समान होते हैं। मान्यताओं के अनुसार प्रभु श्री राम जी ने माँ सीता को रावण के चंगुल से छुड़ानें के लिए माँ दुर्गा का अकाल बोधन और अनुष्ठान किया था, कहा यह जाता है कि भगवान राम के माँ दुर्गा के असामायिक आह्वान करने के कारण ही शारदीय नवरात्रि और दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई थी।
कल्परंभ शुभ तिथि शुभ मुहूर्तः-
कल्परंभ शुक्रवार 20 अक्टूबर 2023
षष्ठी तिथि प्रारम्भः- 00ः33ः49 मिनट से,
षष्ठी तिथि समाप्तः- 11ः26ः52 मिनट तक
कोलाबोऊ पूजा शनिवार 21 अक्टूबर 2023