कामदा एकादशी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि को पड़ती है,
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी का विधि-विधान के साथ व्रत एवं पूजन करने से भक्तों की सभी मनोरथें पूर्ण होती है तथा उनके पापों का नाश हो जाता है, कहां यह भी जाता है कि कामदा-एकादशी ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का नाश करने वाली है, कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के व्रत और पूजा का विधान है।
कामदा एकादशी व्रत-कथा
प्राचीन काल में एक राजा था जिसका नाम पुण्डरीक था, वह नागलोक पर राज्य करता था, वह कला का प्रेमी था परन्तु भोग-विलास वाला था, राजा की सभा में बहुत से गंधर्व, अप्सरा, किन्नर आदि नर्तन और गायन प्रस्तुत करते थें। उनमें ललित और ललिता नाम का एक गंधर्व जोड़ा था, गंधर्व ललित नर्तन व गायन में प्रवीण था। एक बार राजा पुण्डरीक की सभा में विशाल नृत्य और गायन का आयोजन हुआ,
उस सभा में दूर-दूर से राजा-महाराजा उपस्थित हुए थें, राजा पुण्डरीक ने गंधर्व ललित को अपना नृत्य प्रस्तुत करने का आज्ञा दिया ललित ने अपना गीत और नृत्य प्रस्तुत किया लेकिन सभा में उपस्थित अपनी पत्नी की तरफ ध्यान भटक जाने के कारण उसका नृत्य और गीत दोनो ही बेताल हो गया, भरी सभा में अपनी बेज्जती देखकर राजा पुण्डरीक को क्रोध आ गया इसलिए उन्होने गंधर्व ललित को राक्षस हो जाने का श्राप दे दिया, राजा के श्राप के कारण ललित राक्षस योनि में वर्षों तक विभिन्न लोकों मे भटकता रहा, उसके साथ उसकी पत्नी ललिता भी अपने धर्म का पालन करते हुए उसके (ललित) साथ-साथ भटकती रही। अलग-अलग स्थान पर भटकते हुए वों दोनो विन्ध्याचल पर्वत के शिखर पर ऋषि श्रृंगी के आश्रम में जा पहुंचे, उन्होंने ऋषि श्रृंगी को आपबीती बताई तब उनको दया आ गई, उन्होंने उन दोनों को चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी (कामदा एकादशी) का व्रत करने का सलाह दिया और व्रत का सम्पूर्ण विधान भी समझाया, ऋषि ने ललित को बताया कि इस व्रत को करने से तुम इस नीच योनि से मुक्त हो जाओगे और पुनः अपने पुराने स्वरुप को प्राप्त कर लोगे, ललित और ललिता दोनो ने पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ विधि-विधान से कामदा एकादशी का व्रत एवं पूजन किया, कामदा एकादशी व्रत एवं पूजन किया, कामदा एकादशी व्रत के प्रभाव से उनके सभी पाप नष्ट हो गये तथा गंधर्व ललित को राक्षस योनि से मुक्ति मिल गई , वो दोनो (ललित और ललिता) दिव्य स्वरुप पाकर स्वर्गलोक के लिए अन्तर ध्यान हो गए।
कामदा एकादशी व्रत के नियम
☸ इस व्रत के दिन जुआ खेलना, मदिरा पीना आदि निषेध है।
☸ कामदा एकादशी में रात्रि जागरण अवश्य करें तथा रात भर भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करें।
☸ एकादशी व्रत करने वाले को झूठ नही बोलना चाहिए और ना ही चोरी करना चाहिए।
☸ कामदा एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
☸ इस दिन किसी को कटु नही बोलना चाहिए और ना ही क्रोध करना चाहिए।
☸ कामदा एकादशी का व्रत करने वाली स्त्री को सिर से स्नान नही करना चाहिए।
कामदा एकादशी व्रत का महत्व
हिन्दू धर्म में कामदा एकादशी व्रत का विशेष महत्व है, शास्त्रों में भी कामदा एकादशी व्रत को बहुत प्रभावशाली और श्रेष्ठ बताया गया है, पुरानी मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को एकादशी व्रत के बारे में बताया था, भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि जो भी कामदा एकादशी का व्रत करता है उसको सहस्त्रों यज्ञो के अनुष्ठान करने और हजारों गायों के दान करने के समान पुण्य मिलता है।
☸ जो मनुष्य कामदा एकादशी का व्रत करता है, उसके पापों का नाश हो जाता है, मरणोपरांत उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और वो स्वर्ग लोक को जाता है।
☸ सौभाग्यशाली स्त्रियों का सौभाग्य अखण्ड रहता है।
☸ परिवार में सुख और समृद्धि आती है।
☸ कामदा एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के पापों का नष्ट हो जाता है और वो दुखों से मुक्त हो जाता है।
☸ इस व्रत को करने से जातक को प्रेम व राक्षस जैसी दुष्ट योनियों से भी मुक्ति मिलती है।
कामदा एकादशी व्रत एवं पूजा-विधि
☸ कामदा एकादशी व्रत करने वालें साधको को दशमी तिथि की रात से ही ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा संयमित आचरण करना चाहिए।
☸ कामदा एकादशी के दिन प्रातः काल नित्य क्रिया से निवृत्त होकर, स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
☸ पूजा स्थान पर भगवान विष्णु का ध्यान करें और एकादशी व्रत का संकल्प लें।
☸ कामदा एकादशी व्रत में सप्त धान की वेदी या सप्त धान से घट की स्थापना की जाती है इसलिए पूजा स्थान पर एक वेदी का निर्माण करें और उस पर उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा रखें।
☸ तत्पश्चात एक कलश में जल भरे उस पर आम या अशोक के वृक्ष के 5 पत्ते को लगाकर वेदी पर रख दें।
☸ उसके बाद बेदी पर भगवान विष्णु एवं भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित करें।
☸ सर्वप्रथम गणेश की पूजा करें, उन्हें सिंदूर, रोली और चावल से तिलक करें, फल-फूल व दूर्वा चढ़ाये तथा भगवान गणेश को जनेऊ चढ़ाने के साथ-साथ भोग लगाएं।
☸ उसके बाद भगवान हरि की पूजा करें, उनको पंचामृत से स्नान कराएं, रोली-चावल और चंदन के द्वारा भगवान विष्णु का तिलक करें, भगवान के समक्ष पीले फूल अर्पित करें तथा उनको भोग भी लगाएं।
☸ उसके बाद कामदा एकादशी का व्रत करें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी करें।
☸ अन्त में भगवान विष्णु जी की आरती करें।
☸ व्रत के अगले दिन अर्थात द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन करवायें और अपने सामर्थ्य के अनुसार दान भी दें।
कामदा एकादशी 2023 शुभ तिथि एवं मुहूर्त
साल 2023 में कामदा एकादशी 01 अप्रैल 2023 को पड़ रहा है। एकादशी तिथि का प्रारम्भ 01 अप्रैल 2023 को दोपहर 01ः58 से हो रहा है तथा एकादशी तिथि का समापन 02 अप्रैल को प्रातः 04 बजकर 19 मिनट पर होगा।