कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाई जाती है। इस दिन स्नान दान का बहुत महत्व है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में नदी में स्नान करना बेहद ही फलदायी होता है। यह व्रत कार्तिक माह के सबसे श्रेष्ठ व्रतों मे से एक माना जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन व्रत रखने से कुण्डली में लगा हुआ दोष समाप्त हो जाता है। यदि आपकी कुण्डली में चन्द्रमा की महादशा चल रही हो तो पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए। इस दिन भगवान शिव तथा माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। पूर्णिमा के दिन इसकी कथा जरुर पढ़ना या सुनना चाहिए। इससे लाभ प्राप्त होता है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन देवो के देव महादेव ने त्रिपुरा सुरों का वध किया था। इस दिन दीप दान का विशेष महत्व है।
कार्तिक पूर्णिमा कथाः-
पौराणिक कथाओं के अनुसार तारकासूर नाम का एक राक्षस था जिसके तीन पुत्र थे तारकक्ष, कमलाक्ष और बिन्दू युन्माली, भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासूर का वध किया। अपने पिता की हत्या की खबर सुनकर तीनो पुत्रो को बहुत दुख हुआ तीनो ने खूब तपस्या की तथा ब्रह्म जी से वरदान मांगा की वह तीनो अमर हो जायें ब्रह्म जी ने इसके शिवा दूसरा वरदान मांगने को कहा तब तीनों ने ब्रह्म जी से तीन अलग-अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके। एक हजारा साल बाद जब हम मिले और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाए और जो देव अपने एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो वही हमारी मृत्यु का कारण हो ब्रह्म जी ने उन्हें यह वरदान दे दिया। तीनों असुर वरदान पाकर बहुत प्रसन्न हुए। ब्रह्म जी ने उन्हें वरदान दे दिया। तीनों ने नगर निर्माण किया, तारकक्ष के लिए सोने का कमलाक्ष के लिए चांदी का और बिड्यून्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया तीनों ने मिलकर तीनों लोको पर अपना अधिकार जमा लिया। इन्द्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हो गये और भगवान शंकर के पास पहुंचे। इन्द्र की बात सुनकर भगवान शिव ने तीन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया। इस दिव्य रथ की हर एक चीज देवताओं से बनी, चन्द्रमा से पहिए बनें। इन्द्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चार घोड़े बने, हिमालय धनुष बने और शेष नाग प्रत्यंचा बने भगवान शिव खुद बाण बने और बाण की नोक बने अग्नि देव, इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव के रथ और तीनो भाइयों मे भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनो रथ एक सीधा में आये। भगवान शिव ने बाण तीनों का नाश कर दिया इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ इसलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्वः-
कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान श्री विष्णु ने दसवां मयस्यावतार लिया था। भगवान विष्णु ने यह अवतार दुनिया को विनाश से बचाने के लिए लिया था और इसी दिन भगवान शिव ने एक ही बाण से त्रिपुरासूर दैत्य राक्षस का वध किया था तथा श्री कृष्ण जी ने भगवान विष्णु की आराधना की थी। शैव और वैष्णव धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का बहुत महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु माता लक्ष्मी तथा भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा की जाती है तथा इस दिन गंगा नदी में स्नान कर दीपदान करने से सारे पाप नष्ट हो जाते है और पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी, गोमती जैसी पवित्र नदियों मे भी स्नान करते है। कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधिः-
☸ कार्तिक पूर्णिमा के दिन सत्य नारायण भगवान की पूजा करनी चाहिए।
☸ कार्तिक पूर्णिमा के दिन अधिकतम भगवान शिव तथा भगवान विष्णु तथा भगवान कार्तिक की पूजा करते है।
☸ पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर नये वस्त्र पहनकर पूजा स्थल की साफ-सफाई करें और लकड़ी की चौकी पर लाल या पीले कपड़े के टुकड़े से ढक कर भगवान गणेश, भगवान विष्णु या शिव या भगवान कार्तिकेय की फोटो रखें।
☸ पूजा की शुरुआत हमेशा भगवान गणेश की पूजा अर्चना करें।
☸ इसके बाद फोटो पर थोड़ा गंगाजल छिड़के तथा तेल या घी से दीपक जलाएं, भगवान गणेश की फोटो पर जल अर्पित कर हल्दी चंदन और कुमकुम लगाएं।
☸ मौली, जनेऊ, इत्र, पुष्प और दुर्वा, घास, दीपक, धूप और फल चढ़ाएं। इसके बाद दो पान के पत्तों सुपारी दक्षिणा और फलों से युक्त तबूबलम भी चढ़ाएं।
☸ भगवान शंकर को कुमकुम न चढ़ाएं विधि-विधान से भगवान विष्णु तथा भगवान कार्तिकेय की पूजा अर्चना करें और कार्तिक पूर्णिमा व्रत का संकल्प लें।
☸ अंत में व्रत कथा पढ़े या सुने और आरती करें। हाथ जोड़कर भगवान के सामने झूकें शष्टांग प्रणाम करें।
कार्तिक पूर्णिमा 2023 शुभ मुहूर्तः-
कार्तिक पूर्णिमा 2023 दिन सोमवार 26 नवम्बर को है।
कार्तिक पूर्णिमा प्रारम्भः- 04ः18 मिनट
कार्तिक पूर्णिमा समाप्तः- 04ः34 मिनट 27 नवम्बर तक
तथा देव दीपावली का शुभ मुहूर्तः- शाम 05ः14 मिनट से 07ः49 मिनट तक रहेगा।