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कुण्डली में गोल योग

कुण्डली में गोल योग 1

जब जन्म कण्डली में बृहस्पति शुक्र और पूर्ण चन्द्रमा के लग्न के नौवें भाव में होने और नवांश कुण्डली में बुध के लग्न में होने पर बनने वाला योग गोल योग कहलाता हैं। गोल योग के निर्माण के लिए तीन स्थितियों की आवश्यकता है।

☸व्यक्ति का जन्म पूर्णमासी को होना चाहिए।

☸लग्न से गणना किये जाने पर चन्द्रमा, बृहस्पति और शुक्र के साथ नौवें भाव में स्थित होना चाहिए।

☸नवांश कुण्डली में लग्न में बुध होना चाहिए।

जब कुण्डली में सभी ग्रह किसी एक ही राशि में हो तो इसे गोल योग कहते हैं जिस व्यक्ति की कण्डली में ये गोल योग हो तो उस व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है यह योग व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को भी प्रभावित करता है तथा इस योग के व्यक्ति को स्वयं में उच्च विचार का विकास करना चाहिए सात्विक कार्यों में रुचि लेने में इस योग के अशुभ फलों की कमी होती है।

गोल योग का फल

गोल योग अशुभ फलकारी होता है। इस योग की अशुभता में कमी करने के लिए व्यक्ति का सदाचार का जीवन व्यतीत करना भी अनुकूल रहता है साथ ही व्यक्ति को पुरुषार्थी बनना उसे जीवन में आगे बढ़ने में सहयोग करता है। गोल योग से युक्त व्यक्ति की आर्थिक स्थिति प्रभावित हो सकती है तथा व्यक्ति की कार्यों में रुचि बढ़ती है इस योग की अशुभता को कम करता है। कुछ और ज्योतिष और शास्त्रों के अनुसार यह योग व्यक्ति को साहस और जोखिम के क्षेत्रों से जोड़ता है तथा उन क्षेत्रों में कार्य करने से व्यक्ति को इस योग के शुभ फल प्राप्त होते हैं। यह भी देखने में आया है कि इस योग के व्यक्ति के स्वभाव में चतुरता का भाव भी पाया जाता है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि गोल योग में व्यक्ति अगर आलस्य भाव का त्याग करता है तो उसे पुलिस या सेना के क्षेत्रों से आय प्राप्त होती है तथा वह व्यक्ति अपने से इस योग की अशुभता को भंग करने में सफल रहता है।

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कुण्डली में कैसे बनता हैं चक्र योग

यह योग भी 32 नक्षत्र योगों में से एक है इस योग की यह विशेषता है कि जब लग्न भाव में सभी ग्रह विषम भावों में हो तो यह चक्र याग बनता है, कुण्डली के विषम भाव 1, 3, 5, 7, 9, 11 भावों को कहा जाता है, चक्र योग वाला व्यक्ति अपने अजीविका क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त करता है। ऐसे व्यक्ति को नौकरी से अधिक व्यापार करने की चाह होती है तथा उसे उत्तम स्वर की सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।

चक्र योग निर्माण

जब योग उस समय बनता है जब लग्न से 12 भावों में से जिसमें लग्न भाव, पराक्रम भाव, शिक्षा भाव, विवाह भाव, भाग्य भाव व आय भाव इन छः भावों में कुण्डली के सभी ग्रह हो तो तब चक्र याग बनता है। चक्र योग में कोई भी ग्रह अगर इस चक्र से बाहर अर्थात सम भाव में स्थित हो तो यह योग भंग हो जाता है।

समुन्द्र योग

समुन्द्र योग अपने नाम के अनुसार व्यक्ति को शुभ और दीर्घकाल फल देता है, इस योग का निर्माण उस समय होता है जब कण्डली में सभी द्वितीय भाव से लेकर सम भावों में स्थित होते है। यह योग चक्र योग का विपरीत योग हैं, इस योग में ग्रह विषम भाव में होते हैं और इस योग में ग्रह सम भाव संख्या 2, 4, 6, 8, 10, 12 इन भावों का सम भाव संज्ञा दी गई है।

समुन्द्र योग फल

समुन्द्र योग जिन व्यक्तियों की कुण्डली में होता है उन व्यक्तियों को जीवन में धन-धान्य की प्राप्ति होती है। वे राजनीति के क्षेत्र में सफल होते हैं तथा उन्हें अपने द्वारा किये गये शुभ कार्यों के द्वारा लोकप्रियता भी मिलती है। समुन्द्र योग कण्डली में होने पर व्यक्ति के संतान सुख में वृद्धि होती है, व्यक्ति को स्वयं में उच्च विचार का विकास करना चाहिए। सात्विक कार्यों में रुचि लेने से इस योग के अशुभ फलों में कमी होती है।

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