कब बनता है कुण्डली में मृत्यु योग जानें इसके उपाय | Death yoga in horoscope |

क्या है कुण्डली में मृत्यु योग

मृत्यु को एक सार्वभौमिक सत्य माना गया है। संसार में जन्म लेने वाले सभी प्राणियों का एक दिन मृत्यु होता है। जन्म कुण्डली में मृत्यु का समय कारण और स्थान पूर्व ही तय रहता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वो कुछ मुख्य बिन्दुओं पर प्रकाश डालता है कि जातक की किस तरह से मुत्यु होगी। कुण्डली में उपस्थित कुछ योगों से पता चलता है कि जातक का मृत्यु किस प्रकार घटने वाली है। ज्योतिष शास्त्र में मृत्यु का समय देखने के लिए ज्योतिषाचार्य प्रायः मारक दशा के द्वारा देखते है।

कुण्डली में मारकेश

☸ कुण्डली के किसी भाव से द्वादश भाव मकान के हानि के लिए जाना जाता है। आठ से बारहवां भाव, सातवां और तीसरे से दूसरा भाव होता है। इसलिए सातवें तथा दूसरे घर को मारक घर की संज्ञा दी गई है और उनके स्वामी को मारक ग्रह कहा जाता है।
☸ लग्न से अष्टम भाव से आयु स्थान तथा मूल निवासी के दीर्घायु के बारे में जाना जाता है। कुण्डली में एक सिद्धान्त है जिसका नाम भावत भावम में है उसके अनुसार अष्टम से अष्टम भाव लग्न से तृतीय दीर्घायु का सूचक है।
☸ सामान्यतः मारक ग्रहों की प्रत्यंतर दशा अवधि की दशा, अन्तर्दशा जातक के मृत्यु का कारण बनती है। यह ग्रह प्राकृतिक के शुभ या अशुभ पर निर्भर नही करता है।

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कुण्डली में मारक के रुप में राहु और केतु

कब बनता है कुण्डली में मृत्यु योग जानें इसके उपाय | Death yoga in horoscope | 1

☸ कुण्डली में राहु मकर और वृश्चिक लग्न दोनों में ही मारक बनता है।
☸ राहु की दशा में जातक को कष्ट और दुख दोनों ही मिलता है।
☸ यदि कुण्डली में राहु और केतु मारकेश से लग्न, सप्तम, अष्टम या फिर द्वादश भाव में विराजमान हों अथवा मारकेश से युति कर रहें हो तो ये दोनों ग्रह खुद ही मारकेश बन जाते है तथा अपनी दशा या अन्तर्दशा में फल देते हैं।

शनि का फल

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☸ कुण्डली के अष्टम भाव में उपस्थित शनि भी दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है।
☸ यदि कुण्डली में शनि का संबंध मारक ग्रह से हो जाए तो वह शेष सभी ग्रहों से श्रेष्ठ मारक बन जाता है।
☸ यदि कुण्डली में शनि एक अशुभ घर का स्वामी या बुरी तरह से स्थित या प्रभावित अथवा खराब स्वभाव का हो तो यह जातक को दीर्घायु प्रदान करने की शनि के आंतरिक क्षमता को बहुत कम कर देता है।

तृतीय भाव से मृत्यु का स्थान

☸ यदि कुण्डली के तृतीय भाव में शुभ स्थिति बनी हुई हो तो जातक की मृत्यु मंदिर जैसे शुभ स्थानों पर होती है।
☸ तृतीय भाव में बृहस्पति और शुक्र उपस्थित हों तो जातक के घर पर मृत्यु होने की संभावना बनती है और मृत्यु के समय जातक सचेत रहता है।
☸ तृतीय भाव में चर राशि जातक की विदेश में मृत्यु तथा स्थिर राशि में घर में एवं दृवि स्वभाव में मार्ग में मृत्यु का स्थिति बनाता है।

तृतीय घर और मृत्यु का कारण

☸ यदि कुण्डली के तृतीय भाव में चन्द्रमा स्थित हो तों अभोग के कारण जातक के मृत्यु का कारण बनता है।
☸ कुण्डली में उपस्थित तृतीय भाव का बुध ज्वर से मृत्यु का कारण बनाता है।
☸यदि कुण्डली में सूर्य बली हों तथा वो तृतीय भाव में स्थित हो तो इस स्थिति में जातक की मृत्यु राजा या सरकार दण्ड के द्वारा होता है।
☸ कुण्डली में उपस्थित तृतीय भाव का बृहस्पति जातक का मृत्यु ट्यूमर या सूजन के कारण बनता है।
☸ कुण्डली में उपस्थित तीसरे भाव का मंगल अल्सर, आग अथवा हथियार से चोट का कारण बनता है।
☸ कुण्डली में शनि और राहु की युति अथवा तृतीय घर पर दृष्टि होने से जातक की मृत्यु जहर खाने, ऊचाई से गिरकर या फिर आग लगने से होगी।
☸ यदि कुण्डली के तृतीय भाव में अनेक ग्रह उपस्थित हो तो जातक की मृत्यु अनेक रोगों द्वारा होगी।
☸ कुण्डली में उपस्थित तृतीय भाव का शुक्र मूत्र सम्बन्धी समस्याओं से मृत्यु का कारण बनाता है।

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अष्टम घर का रहस्य

☸अष्टम घर यदि कब्जे में है तो अष्टम भाव का स्वामी और अष्टम भाव में स्थित ग्रह भी मृत्यु का कारण बन जाते हैं।
☸चन्द्रमा से बाइसवें दे्रष्काण स्वामी और चौसठवें नवमांश स्वामी भी अशुभ है। त्रिक भाव का स्वामी भी जातक के मृत्यु का कारण बनता है।
☸ यदि कुण्डली के अष्टम भाव में चन्द्रमा स्थित हो तों जातक की मृत्यु जल से होगी।
☸ यदि कुण्डली के अष्टम भाव में सूर्य स्थित हो तो जातक की मृत्यु अग्नि द्वारा जलने से होती है।
☸ कुण्डली के अष्टम भाव में उपस्थित मंगल जातक की मृत्यु चोट या शस्त्र के द्वारा करता है।
☸ अष्टम भाव का बुध जातक की मृत्यु ज्वर/बुखार से कराता है।
☸ कुण्डली के अष्टम भाव में उपस्थित गुरु अनेक प्रकार के रोगों द्वारा मृत्यु का योग बनता है।
☸ अष्टम भाव का शुक्र भूख से मृत्यु कराता है।
☸ कुण्डली के अष्टम भाव में शनि उपस्थित हो तो जातक की मृत्यु प्यास से होगी।

द्वादश भाव की भूमिका

☸ यदि कुण्डली में मारक का समय नही आया हो तो इस स्थिति में भी मृत्यु हो सकती है।
☸ द्वादश घर के स्वामी को मोक्ष का प्रतीक माना जाता है तो जातक को जन्म और मृत्यु के चक्र से छुटकारा दिलाता है।
☸ जब कुण्डली में बारहवें भाव का संबंध दूसरे, सातवें अथवा आठवें भाव से होता है तो ये भाव मृत्यु के लिए जाने जाते हैं।

चन्द्रमा भी है मृत्यु का कारक

कुण्डली में चन्द्रमा को मन की संज्ञा दी गई है और यही मन को नियंत्रित करता है। चन्द्रमा के आकार के घटने और बढ़ने के कारण जातक के सोचने की प्रक्रिया पर भी प्रभाव पड़ेगा। यदि कुण्डली में चन्द्रमा पीड़ित हो तो वो अमावस्या, पूर्णिमा या एकादशी के दौरान जातक के आत्महत्या की स्थिति बनाता है।

कब बनता है चोट के कारण मृत्यु का योग

☸ सूर्य या मंगल चतुर्थ भाव में और शनि दशम भाव में हो तो जातक की मृत्यु चोट लगने से होगी।
☸ यदि कुण्डली में सूर्य लग्न में, मंगल, पंचम भाव में शनि अष्टम भाव में स्थित हो तथा चन्द्रमा कमजोर या पीड़ित हो तो जातक की मृत्यु पहाड़ी से गिरकर होगी।
☸ कुण्डली के चतुर्थ भाव में शनि, सप्तम भाव में चन्द्रमा और दशम भाव में मंगल स्थित हो तो इस स्थिति में भी जातक की मृत्यु चोट लगने के कारण होती है।
☸ कन्या राशि में उपस्थित सूर्य और चन्द्रमा यदि पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो भी जातक की मृत्यु चोट लगने के कारण ही होगी।
☸ यदि चन्द्रमा मेष या वृश्चिक राशि में हो तथा वो पाप कर्तरी योग की निर्माण कर रहा हो तो इस स्थिति में भी जातक की मृत्यु चोट के कारण होगी।
☸ यदि लग्न  द्विस्वभाव राशि में है और लग्न में ही सूर्य और चन्द्रमा स्थित हो तो ये जातक को मृत्यु का योग चोट के द्वारा बनती है।
☸ जब कुण्डली में पंचम और नवम भावों पर पापग्रहों की दृष्टि हो और वहां कोई शुभ ग्रह ना हो तो इस स्थिति में भी जातक की मृत्यु चोट लगने के कारण ही होगी।
☸ जब कुण्डली में चन्द्रमा, सूर्य, शनि और मंगल लग्न से अष्टम या त्रिकोण में स्थित होता है तो जातक की मृत्यु मोटर दुर्घटना द्वारा होती है।

जानिए कुण्डली में कैसे बनता है मृत्यु योग

☸ द्वितीय, सप्तमी, द्वादश भद्रा इन तिथियों में से कोई भी सोमवार या शुक्रवार के दिन पड़ता है तो मृत्यु योग का निर्माण होता है।
☸ जया तिथि अर्थात तृतीय, अष्टमी और त्रयोदशी को बुधवार के साथ मिलाने पर मृत्यु योग बनता है।
☸ यदि नन्द तिथि या प्रतिपदा और षष्ठी या एकादशी तिथि रविवार या मंगलवार के दिन पड़ती है तो यह अशुभ फल देगा।
☸ ज्योतिष शास्त्र में चतुर्थ, नवमी और चौदहवीं तिथि को रिक्ता तिथियों की संज्ञा दी गई, यदि इनमें से कोई भी तिथि गुरुवार के दिन पड़ता है तो अशुभ मृत्यु का योग बनता है।
☸ पूर्णा तिथियां पंचमी, दशमी, पूर्णिमा या कोई चन्द्रमा (अमावस्या) नही है। यदि ये सब तिथियां शनिवार को पड़े तो इस स्थिति में भी अशुभ मृत्यु योग का निर्माण होता है।

विशेषः- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मृत्यु योग बहुत ही अशुभ योग होता है इसलिए इस योग में आपको कोई भी शुभ कार्य नही करना चाहिए। इस दौरान यदि आप किसी यात्रा की योजना बना रहे हैं या बनाये है तो उसे टाल देना चाहिए। क्योंकि यात्रा के लिए यह योग अच्छा नही होता है।

 

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