हमारे वैदिक ज्योतिष शास्त्रों भूमि के कारकों का अधिक उल्लेख नही मिलता है परन्तु शोधों एवं विशेषज्ञों द्वारा भूमि के एक से अधिक कारक पाये जाते है जिन्हें दो या दो से अधिक ग्रहों, भावों एवं राशियों की युति से बनाया जाता है। हम यहाँ कुछ प्रमुख भूमि कारकों की विवेचना कर रहे हैं जो इस प्रकार से है।
मंगल + चन्द्रमा = कृषि योग्य खेती
मंगल एवं चन्द्रमा की युति- कृषि खेती की भूमि का कारक
मंगल भूमि है और कृषि के लिए पानी की आवश्यकता होती है एवं चन्द्रमा को जल माना गया है। इसलिए यह युति खेती के लिए जमीन बनाती है।
विशेषः- किसी भी प्रकार की भूमि के लिए मंगल ग्रह ही जिम्मेदार होता है।
बुधः- व्यवसायिक तथा दुकान की भूमि, हरे-भरे मैदान की भूमि एवं खेल का मैदान
शुक्रः- बना हुआ सुंदर घर
शनिः- बड़े उद्योगों की भूमि के लिए
राहुः- बंजर भूमि, कंद मूल का स्थान
केतुः- मंदिर की भूमि, कंद मूल की स्थान
उपरोक्त कारकों का उपयोग निम्न प्रकार से है
बुध + शुक्र = एक बना हुआ घर जिसमें दुकान भी हो सकता है।
सूर्य + मंगल+ बुध = सूर्य आत्मा (देवता), मंगल, पत्थर, बुध, सीमेंट अर्थात मंदिर, राज महल आदि।
मंगल + शुक्र + राहु = बहु मंजिली इमारतों के लिए जिम्मेदार तथा बड़े वाहनों का कारक कर्क के मंगल की युति राहु से हो तो जर्जर इमारत का कारक माना जाता है। मकर के मंगल की युति, राहु से हो तो – पुरानी बड़ी इमारत का कारक होता है।
कुछ अन्य देव के कारक
राहु;- नाग देव अर्थात बलराम, शेष नाग, लक्ष्मण वासुकी इत्यादि।
केतु;- ध्वजा, निशान, साहिब, चर्च का क्राॅस एवं मस्जिद की गुम्बद।