क्यों मिला गणेश जी को हाथी का सिर, क्यों प्रथम पूज्यनीय हैं गणेश जी | Why did Ganesha get the head of an elephant, why Ganesha is worshiped first Benefit |

भगवान गणेश जी की महिमा को कौन नही जानता है तथा सभी पूजा-पाठ के कार्यों में गणेश जी को प्रथम पूज्यनीय देवता माना जाता है परन्तु क्या आपने कभी सोचा है कि गणेश जी को ही प्रथम पूज्यनीय क्यों माना जाता है तथा क्यों इनको हाथी का ही सिर दिया गया तो आइये हम इसकी सम्पूर्ण जानकारी हमारे प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी द्वारा समझते है –

भगवान गणेश जी को अनेक नामों से संबोधित किया जाता है जिसमे उनको गजानन एवं गजमुख के नाम से भी पुकारा जाता है। भगवान गणेश जी के इस नाम के पीछे एक बहुत बड़ा रहस्य है जिसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में मिलता है। हिन्दू धर्म में सभी देवी-देवताओं का मुख एक इंसान की ही भाँति देखने को मिलता है परन्तु गणेश जी का मुख हाथी का है लेकिन क्या आपको पता है गणेश जी का मुख पहले मनुष्यों के मुख के भांति था उसकी पौराणिक कथा इस प्रकार है।

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गणेश पुराण के अनुसार क्यों मिला हाथी का सिर

एक पौराणिक कथा के अनुसार जब नारद मुनि ने यह प्रश्न पुछा कि गणेश जी को गज का ही मुख क्यों लगा तब नारायण जी ने इसका पूरा रहस्य बताया और कहा हे नादरमुनि देवराज इन्द्र की भूल के कारण गणेश जी को हाथी का सिर मिला था।

एक समय की बात हैं देवराज इन्द्र पुष्पभद्रा नदी के तट पर टहल रहे थें और उस निर्जन वन में कोई भी जीव-जन्तु नही था। संयोगवश रम्भा नाम की एक अप्सरा उस वन में विश्राम कर रही थी और जब देवराज इन्द्र ने उन्हें देखा तो वह अतिमोहित हो गये और दोनों एक-दूसरे को देखकर आकर्षित होने लगे और उसी समय संयोगवश ऋषि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ बैकुंठ से होकर लौट रहे थें। देवराज इन्द्र ने जब ऋषि दुर्वासा को देखा तो संकोच में आकर उन्हें प्रणाम किया।

क्यों मिला गणेश जी को हाथी का सिर, क्यों प्रथम पूज्यनीय हैं गणेश जी | Why did Ganesha get the head of an elephant, why Ganesha is worshiped first Benefit |

दुर्वासा ऋषि ने आशीर्वाद स्वरुप भगवान विष्णु से जो पुष्प प्राप्त किया था उस परिजात पुष्प को देवराज इन्द्र को दे दिया और कहा यह पुष्प जिसके सिर पर होगा वह प्रतिभाशाली, तेजस्वी एवं अत्यन्त बुद्धिमान होगा। इतना ही नही देवी लक्ष्मी सदा उसके साथ रहेंगी अर्थात माता लक्ष्मी की कृपा दृष्टि सदैव उस पर बनी रहेगी और वह भगवान हरि के समान पूज्यनीय होगा।

परन्तु देवराज इन्द्र ने उस पुष्प का अनादार कर उसे हाथी के सिर पर रख दिया ऐसा करने से देवराज इन्द्र का तेज समाप्त हो गया और रम्भा भी उनको वियोग में छोड़ कर चली गई। हाथी भी मतवाला होकर इन्द्रदेव को छोड़कर वन में चला गया और उस दौरान वह हाथी एक हथिनी पर मोहित हो गया और उसके ही साथ रहने लगा। इतना ही नही बल्कि हाथी अपने मद में वन के प्राणियों को पीड़ित करने लगा तब हाथी के मद को कम करने के लिए एक ईश्वरीय लीला हुई और उस हाथी का सिर काटकर गणेश जी के धड़ से लगाया गया और परिजात पुष्प को प्राप्त वरदान गणेश जी को प्राप्त हुआ।

क्यों मिला प्रथम पूज्यनीय का वरदान

कुछ अन्य धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि परिजात का पुष्प इन्द्रदेव ने ऐरावत हाथी के मस्तक पर रख दिया तो वह हाथी दिव्य शक्तियों से अभीभूत होकर इन्द्रदेव को नीच गिरा दिया और वन में जाकर श्री हरि की उपासना-भक्ति में लीन हो गया तब उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने उसे प्रथम पूज्यनीय का अधिकार दिया।

एक तरफ जब माता पार्वती ने अपने पुत्र को शीशहीन अवस्था में देखा तो वह अपने उग्र रुप में आ गई और पुत्र दुःख से व्यथित होकर सभी देवताओं और ब्रह्मा, विष्णु और महोदव को श्राप देने के लिए उद्यत हुई। तब ब्रह्मा जी ने पुत्र गणेश जी को पुनः जीवित किया और गजराज ऐरावत का वर प्राप्त सिर जोड़कर उन्हें विघ्न नाशक एवं विघ्नहर्ता होने का वरदान दिया तभी से गणेश जी गजानन एवं विघ्नहर्ता कहलाएं।

पार्वती माता के नन्दन गणेश जी का जन्म कथा में उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का रहस्य छिपा है। अपने ही पिता के संहारक शिव जी के साथ युद्ध बल, पराक्रम व दिव्य शक्तियों  का परिचय ही गणेश जी हैं।

सिर धड़ से अलग करने की सम्पूर्ण कथा

गणेश पुराण के अनुसार एक समय की बात है जब माता पार्वती को स्नान करने जाना था और पहरा देने के लिए कोई भी नही था तब माता ने अपने उबटन से एक शिशु का निर्माण किया और उसको विनायक का नाम दिया।

माता पार्वती ने उन्हें पहरा देने के लिए कहा और स्नान करने चली गई परन्तु उसी दौरान महादेव आये और वह माता पार्वती से मिलने जा रहे थें तब गणेश जी ने उन्हें रोक दिया उनकी इस क्रिया से भगवान शिव रुष्ट हो जाते हैं और क्रोध वश अपने त्रिशूल से उनका सिर धड़ से अलग कर देते हैं और जब माता पार्वती स्नान के बाद आती है तो देखती है कि उनके पुत्र का सिर धड़ से अलग है और वह रोने लगती है तथा अपने क्रोध से वशीभूत हो जाती है तब भगवान शिव पूछते है तुम क्यों रो रही हो तब माता पार्वती उन्हें पूरी घटना बताती है। जब माता पार्वती से शिव जी कहते है तुम चिंता मत करों मै उसे पुनः जीवित कर दूंगा। अपने गणों से कहा कि उत्तर दिशा में जो सबसे पहले सिर दिखेगा उसे लेकर आना और उनके गण वैसा ही करते हैं और उत्तर दिशा में सबसे पहला सिर उन्हें इन्द्र के हाथी ऐरावत का दिखता है वह उसी ऐरावत हाथी का सिर लेकर आते है। भगवान शिव गणेश जी को हाथी का सिर लगाकर जीवित कर देते है।

कुछ विद्वानों के अनुसार यह कहा जाता है कि बुद्धिमान गणेश जी को अपने भूल का ज्ञान हो गया था। वे अपने पिता को पहचानने में भूल कर गए और सभी देवताओं से व्यर्थ की शत्रुता कर ली। इन्हीं विचारों से उन्होंने आत्मोसर्ग अर्थात आत्म बलिदान दे दिया।

गणेश जी का जन्म उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में माना जाता है। उत्तराषाढ़ा का अर्थ है बाद वाला अपराजेय, सदा विजय प्राप्ति करने वाला तथा कुछ विद्वानों एवं ज्योतिषीयों के आधार पर यह माना जाता है कि उत्तराषाढ़ा नक्षत्र वह क्षेत्र हैं जहां पर देवताओं ने असुरों पर विजय प्राप्त की थी। जिस प्रकार से पूर्व फाल्गुनी एवं उत्तरा फाल्गुनी की जोड़ी हैं उसी प्रकार उत्तराषाढ़ा एवं पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र की भी जोड़ी होती है।

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गणेश जी के उत्तम उपाय

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के अशुभ प्रभावों से पीड़ित जातकों का सदैव विघ्नहर्ता गणेश जी की आराधना करनी चाहिए। इसके साथ ही संकट-नाशन स्त्रोत का पाठ प्रतिदिन करना चाहिए जिससे बल-बुद्धि में वृद्धि होती है और सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।

गणेश जी के बारह नाम

समुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र, गजानन। भगवान गणेश जी के बारह नामों का जाप करने से जीवन में सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।

भगवान गणेश जी का प्रसद्धि श्लोक

विद्यार्थी लभते विद्यां, धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्, मोक्षार्थी लभते गतिम्।।

प्रस्तुत श्लोक के अनुसार भगवान गणेश जी के नामों का पाठ करने से विद्या प्राप्ति की इच्छा रखने वाले को विद्या, धन चाहने वाले को धन तथा पुत्र चाहने वालो को पुत्र एवं मोक्ष चाहने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

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