खोंईछा भरने की रस्म क्या है? What is the ritual of filling khonichha?

खोंईछा भरने की रस्म क्या है?

बेटी के जीवन में खुशहाली और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए खोंईछा भरा जाता है। खोंईछा में पान, सुपारी, मिठाई, चावल, हल्दी, अक्षत आदि शामिल होते हैं। मां दुर्गा के लिए खोंईछा भरते समय, माता रानी का सोलह श्रृंगार कर के खोंईछा भरने की प्रथा है। लाल चुनरी में खोंईछा का सामान ( पान, सुपारी, मिठाई, चावल, हल्दी, अक्षत आदि ) और श्रृंगार का सामान रखकर माता रानी को अर्पित किया जाता है।

खोंईछा का महत्व

भारत के लोगों के लिए खोंईछा शब्द का अपना एक खास महत्व है। यह शब्द एक ऐसी भावना को संदर्भित करता है जो सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक जीवन में महत्वपूर्ण होती है। खोंईछा एक प्रकार का आशीर्वाद है जो आमतौर पर भारत में विवाह के बाद ससुराल जाने वाली बेटी को विदाई के समय उनके परिवार की महिलाओं के द्वारा दिया जाता है। यह विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में भिन्न-भिन्न रूपों में देखने को मिलता है लेकिन खोंईछा में आमतौर पर चावल, हल्दी, हरा दूब, फूल, मिठाई और कुछ सिक्के शामिल होते हैं।

खोंईछा भरने की रस्म क्या है? What is the ritual of filling khonichha? 1

आधुनिक युग के अनुसार खोंईछा में हो रहें हैं में बदलाव-

अब लोग अपनी सामर्थ्य के अनुसार खोंईछा को अन्य सामग्रियों के साथ भी बदलते जा रहे हैं, जैसे कि सोने या चांदी के सिक्के, गहने आदि। इसे देने से न केवल बेटी की बदलती जीवनशैली का ध्यान रखा जाता है, बल्कि इससे ससुराल में उसकी स्वागत और सम्मान भी प्रकट होता है। खोंईछा में दी जाने वाली सभी वस्तुएं बेटी के ससुराल में उसके परिवार के सदस्यों के बीच सम्बंधों को मजबूत करने में मदद करती हैं।

खोंईछा एक सामाजिक प्रथा है जो आजकल न केवल परंपरा का हिस्सा है, बल्कि यह एक ऊंची सामर्थ्य को दिखाने का भी एक माध्यम बन गया है। यह सच है कि यह प्रथा अब उसी शिखर पर नहीं है जैसा कि पहले था, लेकिन खोंईछा में मौजूद हर वस्तु का अपना महत्व है जैसे कि, विदाई पर हल्दी, दूब, फूल और द्रव्य के साथ जीरा दिया जाता है। जीरा का मतलब जीव से भी होता है और मायके से ससुराल खोंईछा में जीरा को लेकर आना शुभ माना जाता है। इसके साथ ही मछलियों को भी शुभ माना जाता है, इसलिए खोंईछा में चांदी की मछलियों का भी दान किया जाता है।

हालांकि, जीरा कठोर होता है इसलिए हो सकता है कि बेटी मायके का मोह त्याग कर ससुराल में रहे लेकिन यह सामग्री उसके नये जीवन के साथ जुड़ी हुई महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

खोंईछा भरने की रस्म क्या है? What is the ritual of filling khonichha? 2

खोंईछा के महत्व को अधिक समझने के लिए यह अवश्यक है कि हम इसकी प्रत्येक वस्तु को समझें-

खोंईछा भरने की रस्म क्या है? What is the ritual of filling khonichha? 3

शादी के बाद विदाई में पहली बार जीरा और उसके बाद हर बार चावल दिया जाता है। चावल का दाना नये जीवन की संपत्ति को प्रतिष्ठित करता है, जबकि हल्दी की पांच गांठें नए जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भरती हैं और परिवार को एक साथ बांधे रखने के लिए प्रेरित करती हैं।

हरी दूब परिवार को जीवन देने के लिए होती है और इसलिए यह प्रतीक है कि बेटी के आने वाले जीवन में समृद्धि और सुख हो।

द्रव्य और सोना-चांदी लक्ष्मी की कृपा को आमंत्रित करते हैं इसलिए इन्हें भी खोंईछा में शामिल किया जाता है।

खोंईछा का धार्मिक महत्व भी है क्योंकि दुर्गापूजा पर मां दुर्गा को भी खोंईछा भरा जाता है। कई जगहों पर देवी-दुर्गा के मंदिर में खोंईछा भरने की मन्नत भी मानी जाती है। इसके पीछे की भावना यह है कि बेटी अन्नपूर्णा होती हैं, और मां अपनी बेटी का आंचल धन-धान्य से भरकर उसे लक्ष्मी और अन्नपूर्णा के रूप में ही ससुराल भेजती हैं ।

खोंईछा हमेशा पूजा घर में उसी समय पूजा के अनुसार दिया जाता है और इसके साथ देवी मां के गीत गाए जाते हैं और मनोकामनाएं मांगी जाती हैं। यह एक प्रकार की परंपरा है जो परिवार को एक साथ बांधे रखती है और नए जीवन की शुभ आरंभ के लिए आशीर्वाद प्रदान करती है।

खोंईछा भरने की रस्म क्या है? What is the ritual of filling khonichha? 4

क्या है खोंईछा की मान्यता

खोंईछा से जुड़ी मान्यता यह है कि इससे लोग धर्म-कर्म और आस्था से जुड़ते हैं और ईश्वर की कृपा प्राप्त करते हैं। पहले, लोग माता रानी के सामने आंचल फैलाकर कुछ मांगते थे। जब भक्तों पर माता की कृपा होती थी, तो वे अपने आंचल में माता रानी के लिए कुछ रखकर अर्पित करते और प्रार्थना कर उनका धन्यवाद करते थे। यही प्रथा बाद में एक रस्म में बदल गई और विदाई के समय बेटी और माता रानी को खोंईछा भरने की परंपरा शुरू हो गई।

188 Views
× How can I help you?