हिन्दू धर्म में गणेश चतुर्थी का त्यौहार एक मुख्य त्यौहार माना जाता है। हिन्दू धर्म के लोग इसें बहुत ही भक्ति भाव और हर्षोल्लास के साथ मनाते है। इस त्यौहार भगवान गणेश जो विघ्न को हरने वाले बुद्धि के देवता तथा प्रारम्भ के देवता है उनके सम्मान में मनाया जाता है। यह त्यौहार भाद्रपद के शुक्ल चतुर्थी से आरम्भ होता है तथा अनंत चतुर्दशी के पश्चात समाप्त होता है।
गणेश चतुर्थी की कथाः-
प्राचीन समय में भगवान भोलेनाथ हिमालय के पहाड़ो में समाधि के लिए चले गए। उस समय माता पार्वती अकेली थी। भगवान शिव के अनुपस्थिति में उन्होंने कैलाश पर एक बलवान बेटे की उत्पत्ति के बारे में सोचा फिर उन्होंने चंदन के लेप के माध्यम से भगवान गणेश का मूर्ति बनाया और उसने जीवन डाल दिया। एक बार जब वह अपनी सहेलियों जया और बिजया के साथ स्नान करने जा रही थी तब उन्होंने भगवान गणेश को एक कार्य सौंपा, उन्होंने भगवान लम्बोदर से कहा कि मै स्नान करने जा रही हूं तुम दरवाजे पर ही रहो और जब तक मेरा आदेश ना हो किसी को भी अन्दर आने की अनुमति मत देना। ऐसा कहकर वह माता पार्वती स्नान के लिए चली गई। उसके जल्द बाद ही भगवान शिव समाधि से आ गये उन्होंने कैलाश पर एक नये बालक को देखा अपितु उनकों पता नही था। भगवान गणेश उनके पुत्र है वह भगवान शंकर अन्दर जाने लगे। उस पर भगवान गणेश में उनको अन्दर जाने से रोका उन्होंने कहा कि मेरी माता अन्दर स्नान कर रही है बिना उनके अनुमति के मै आपको अन्दर प्रवेश करने नही दे सकता। भगवान शंकर के आग्रह पर भी जब श्री गणेश ने उन्हें अन्दर जाने की अनुमति नही दी तब सभी देवी-देवताओं ने मिलकर गणेश जी से वैसा ही अनुरोध किया। उन्होंने भगवान गणेश को बताया कि भगवान शिव आपके पिता है और आपके माता से मिलने का अधिकार उनको है परन्तु भगवान गणेश ने इस पर भी मना कर दिया उन्होंने कहा कि मै अपने पिता का आदर करता हूँ परन्तु मेरी माता का आदेश है कि बाहर से आने वाले सभी लोग को बाहर ही रोक देता है। भगवान गणेश की बातें सुनकर शिव के अनुयायी (गण, विष्णु, ब्रह्म, इंद्र, नारद, सर्प आदि) ने उनको शिष्टाचार सीखाना आरम्भ कर दिया । इंद्र द्रेव क्रोध वश उन पर भगवान गणेश हमला कर दिये परन्तु गणेश जी शक्ति के अवतार के रुप अवतरित थे उन्होंने सबको पराजित कर दिया परन्तु अंत में भगवान शिव आ गये और उन्होंने क्रोधवश भगवान गणेश का गला अपने त्रिशूल से काट दिया जैसे ही घटना के बारे में माता पार्वती को पता चला वह अत्यन्त क्रोधित हो गई। उन्होंने गणेश जी के सिर और शरीर को गोद में रखकर विलाप करना आरम्भ कर दिया। माता पार्वती ने कहा कि अगर मुझे मेरी संतान पुनः जीवित नही मिला तो मै सम्पूर्ण संसार को नष्ट कर दूंगी। माता के वचन को सुनकर सभी देवी-देवता भयभीत हो गये उन्होंने भगवान शिव से सब-कुछ सही करने का आग्रह किया। भगवान शिव ने अपने अनुयायी को सिर की तलाश में भेज दिया और बोला कि ऐसे का सिर का लेकर आओं जो उत्तर दिशा की तरफ मुँह करके अपने बच्चे से विपरीत दिशा में सो रहा हो। गणों के तमाम मेहनत के बावजूद उन्हें उत्तर दिशा में एक हाथी मिला जो अपने बच्चे के विपरीत सोच रहा था। गणों ने हाथी के सिंर को काटकर कैलाश पर लाया और भगवान शिव ने गणेश के शरीर पर वह सिर जोड़ दिया इस प्रकार भगवान गणेश को पुनः जीवनदान मिला परन्तु माता पार्वती ने कहा उनका पुत्र एक हाथी की भाँति प्रतीत हो रहा है। सब उसका मजाक बनायेंगे उनको कोई सम्मान नही मिलेगा तत्पश्चात भगवान शिव, विष्णु, ब्रह्म, इंद्र गणों और सम्पूर्ण देवी देवताओं ने गणेश जी को आशीर्वाद शक्तियां और अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये और बोला कि कोई भी गणेश जी का मजाक नही बनायेगा अपितु कोई भी शुभ कार्य करने से पहले गणेश जी को सर्वप्रथम पूजा जायेगा। माता लक्ष्मी ने कहा कि गणेश मेरे पुत्र समान है और अब से उनका स्थान मेरे बगल में होगा तथा ज्ञान और धन पाने के लिए लोग मेरे साथ उनकी भी पूजा करेंगे।
कैसे मनाई जाती है गणेश चतुर्थीः-
गणेश चतुर्थी पर्व का तैयारी लोग एक सप्ताह पूर्व ही कर लेते है। भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्तियों का निर्माण कलाकार और कारीगरों द्वारा आरम्भ कर दी जाती है तथा सम्पूर्ण बाजार गणेश जी की रंग बिरंगी मूर्तियों से भरा होता है। जो लोग समुदाय में गणेश चतुर्थी मनाते है। वो समुदाय के योगदान से गणेश जी श्री विशाल प्रतिमा की स्थापना करते है। भगवान गणेश के पण्डाल को फूल, माला, लाईट आदि के माध्यम से सजाते है और वहाँ पर मंदिर के पुजारी सदोपचार का पालन करते हुए नियमित भगवान गणेश जी की पूजा-अर्चना और उनके मंत्रों का जाप करते है। भक्त पण्डाल में गणेश जी के दर्शन के लिए आते है और उनके प्रतिमा पर कुमकुम और चंदन का लेप लगाते है तथा नारियल, मोदक, गुड़, दूर्वा, फल-फूल, माला आदि भी भगवान गणेश के समक्ष अर्पित करते है।सम्पूर्ण भारत में गणेश चतुर्थी का त्यौहार मनाया जाता है परन्तु भारत देश के महाराष्ट्र में इसे वर्ष का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। इस त्यौहार को लोग अपने घरों में भी मनाते है लोग गणेश जी की मूर्ति लाकर घर में स्थापित करते है तथा प्रातः काल एवं सायंकाल उनकी पूजा अर्चना भी करते है। भगवान गणेश के समक्ष भक्तजन भक्ति नृत्य और गायन करते है तथा उनको कपूर, धूप बत्ती, मिठाई और मोदक भी चढ़ाते है एवं आरती के साथ पूजा को समाप्त करते है।
गणेश चतुर्थी महोत्सव की तैयारियाँः-
गणेश चतुर्थी पव्र का त्यौहार कम से कम एक सप्ताह पूर्व कर दिया जाता है। भक्त जन इस पर्व के लिए भगवान गणेश का प्रिय मिठाई ‘मोदक’ बनाते है। मोदक चावल या गेहूँ के आटे में नारियल, सूखे मेवें, मसालें और गुड़ के मिश्रण का उपयोग करके पूजा के लिए मुख्य रुप से बनाया जाता है और 21 मोदक को भगवान गणेश के समक्ष रस्म के रुप में चढ़ाया जाता है। गणेश चतुर्थी के लिए भक्त जन ‘करन्जी’ भी बनाते है। जो मोदक के समान हीे हातो है परन्तु ये ‘अर्धवृत्ताकार’ होता है।
गणेश चतुर्थी की रस्मे, विसर्जन विधि एवं महत्वः-
गणेश चतुर्थी का त्यौहार भाद्रपद माह के चतुर्थी से आरम्भ होता है तथा इसकी समाप्ति अनन्त चतर्दशी पर होती है। ग्यारहवें दिन नृत्य, गायन और जुलूस के माध्यम से गणेश जी के मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। जिसे ‘गणेश विसर्जन’ के नाम से जाना जाता है। विसर्जन के वक्त लेाग बप्पा मोरया, लड्डू चारिया, पूचया वर्षी लाऊकारिया और बप्पा मौरया रे से नारा लगाते है। गणेश जी के मूर्ति के विसर्जन दौरान भक्तजन फूल-फल, माला, नारियल, कपूर और मिठाई अर्पित करते है तथा भगवान गणेश से अगले वर्ष पुनः आने की प्रार्थना करते है।
गणेश चतुर्थी से जुड़ी एक अन्य कथाः-
मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान गणेश स्वर्ग की यात्रा कर रहे थे तब वहाँ उनका मुलाकात चन्द्रमा से हुआ। चन्द्रमा को अपनी सुन्दरता पर बहुत गर्व था उन्होंने गणेश जी के भिन्न आकृति को देखकर उनका उपहार कर दिया। इस बार गणेश जी ने उसे श्राप दे दिया। चन्द्रमा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान गणेश जी क्षमा-याचना मांगी तथा श्राप से मुक्ति पाने के लिए उपाय पूछा। भगवान गणेश जी ने उन्हें गणेश चतुर्थी का व्रत रखने का सुझाव दिया। चन्द्रदेव ने भगवान गणेश के बताए अनुसार गणेश चतुर्थी का व्रत पूरी लगन एवं श्रद्धा से किया तत्पश्चात उनको श्राप से मुक्ति मिल गई। इस प्रकार जो भी व्यक्ति गणेश जी की पूजा-आराधना करता है उसके समस्त दुःखो का नाश हो जाता है तथा उन्हें सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है।
गणेश चतुर्थी का महत्वः-
भगवान गणेश को देवताओ में प्रथम स्थान दिया गया है तथा उन्हें बल, बुद्धि का देवता भी माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार इन्हीं के कृपा से परिवार में सुख और समृद्धि आती है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है अर्थात ये अपने भक्तजनों के सभी कष्टों को हर लेते है। लोगों का मानना है कि गणेश चतुर्थी का व्रत करने से घर में माँ लक्ष्मी का वास होता है और अनंत चतुर्दशी पर गणेश जी के मूर्ति के विसर्जन के साथ भक्तजनों के सभी कष्ट दूर हो जाते है।
गणेश चतुर्थी पूजा विधिः-
☸ सर्वप्रथम स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
☸तत्पश्चात पूजा की चैकी पर लाल कपड़ा बिछाकर अक्षत डालकर गणेश जी की मूर्ति स्थापित कर दें।
☸ उसके बाद गंगाजल के माध्यम से भगवान गणेश का अभिषेक कर दें।
☸ अभिषेक करने के बाद दूर्वा, अक्षत, फूल, माला इत्यादि अर्पित कर दें।
☸ गणेश जी के मूर्ति के समक्ष धूप, दीपक आदि प्रज्जवलित करें।
☸ भगवान गणेश के समक्ष उनका पसंदीदा मोदक का भोग भी लगाएं।
गणेश चतुर्थी 2023 शुभ तिथि एवं मुहूर्तः-
2023 में गणेश चतुर्थी का त्यौहार 19 सितम्बर दिन मंगलवार को मनाया जायेगा। गणेश विसर्जन की तिथि इस बार 28 सितम्बर 2023 को पड़ी है। चतुर्थी तिथि का प्रारम्भ 18 सितम्बर 2023 को दोपहर 12ः39 से आरम्भ हो रहा है तथा उसकी समाप्ति 19 सितम्बर 2023 को दोपहर 01 बजकर 43 मिनट पर होगा।