छिन्नमस्ता जयंती

हिन्दू धर्म में छिन्नमस्ता जयन्ती वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। माँ दुर्गा के दस महाविद्याओं में से छठे स्वरूप को छिन्नमस्ता के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि छिन्नमस्ता जयन्ती के दिन माँ की पूजा-अर्चना करने से जातक की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं। बहुत से लोग माँ छिन्नमस्तिका को प्रचण्ड चण्डिका के नाम से भी पूजते हैं। माँ छिन्नमस्ता को माँ काली का ही अवतार माना जाता है।

Chhinnamasta Jayanti (छिन्नमस्ता जयन्ती) by Astrologer K.M. Sinha- छिन्नमस्ता जयन्ती का महत्व

हिन्दू धर्म में छिन्नमस्ता जयन्ती मनाये जाने का अत्याधिक महत्व होता है। माँ छिन्नमस्ता देवी को जीवन देने वाली जीवनदायिनी भी माना जाता है। माँ ने अपने इस स्वरूप में अपने एक हाथ में सिर और दूसरे हाथ में कैची पकड़ा हुआ है तथा मैथुन करने वाले जोड़े में उपस्थित हैं। छिन्नमस्ता माता के गले से खून की तीन धारा निकल रही हैं, उनके खून की दो धाराएँ उनके सेवकों की सहायता कर रही तथा तीसरी धारा का सेवन माता स्वयं कर रही है।

माँ छिन्नमस्ता देवी का स्वरूप करोड़ों सूर्य की भाँति उज्ज्वल है। उनका रंग गुड़हल के समान सूर्ख लाल है तथा माँ ने एक हाथ में अपना सिर तथा दूसरे हाथ में कृपाण पकड़ा हुआ है। कहा जाता है कि माँ छिन्नमस्ता की पूजा शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए की जाती हैं। इसके अलावा माता के उग्र स्वभाव होने के कारण तांत्रिकों द्वारा माँ की साधना की जाती है।

आइए जानें ज्योतिषाचार्य के.एम.सिन्हा द्वारा माँ छिन्नमस्ता की पौराणिक कथा

माँ छिन्नमस्ता जयन्ती की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माँ छिन्नमस्ता अपने सहचरियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने के लिए गई और अपने सहचरियों को उन्होंने उनकी रक्षा करने को कहा, इस बीच माँ को स्नान करने में बहुत देर हो गई और उन्हें उस समय वास्तविक समय का पता न चल पाया। उसी समय माता की सहचरियों को अत्यधिक भूख लग गई, भूख लगने के कारण माता की सहचरियों का चेहरा एकदम उदास हो गया जिसके बाद मों की सहचरियों ने उनसे भोजन की व्यवस्था करने को कहा। अपने सहपरियों की बात सुनकर माता ने कहा कि आप थोड़ा धैर्य रखिये भोजन की व्यवस्था शीघ्र हो जायेगी परन्तु ज्यादा भूख लगने के कारण उन्होंने माँ से तत्काल भोजन की व्यवस्था करने को कहा, उसी दौरान माँ हिन्नमस्ता में अपने खड्ग से स्वयं का सिर काट डाला। सिर कटते ही माँ का सिर उनके बाएं हाथ में जा गिरा। माँ के सिर में से रक्त की तीन धारा निकली उसमें से दो धारा से माता की सहचरियों में आहार ग्रहण किया और तीसरी रक्त धारा से माता स्वयं रक्तपान करने लगीं। इस तरह से माता छिन्नमस्तिका की उत्पत्ति हुई।

छिन्नमस्ता जयन्ती पूजा विधि

☸ छिन्नमस्ता जयन्ती के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके इस दिन के उपवास का संकल्प लें।

☸ उसके बाद पूजा स्थल तथा मंदिर को स्वच्छ करके माँ पार्वती की मूर्ति या तस्वीर के साथ-साथ भगवान शिव जी की मूर्ति भी स्थापित करें।

☸ मूर्ति स्थापित करने के बाद माता को नीले रंग के फूल की माला अर्पित करें तथा माता के समक्ष धूप जलाकर इतर का छिड़काव करें।

☸ उसके बाद माता के समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाकर, भोग में नारियल, मिठाई तथा विशेष रूप से उड़द की दाल का भोग अवश्य लगायें।

☸ उसके बाद माता के स्वरूप छोटी-छोटी कन्याओं का भी पूजन करके उन्हें अपने हाथों से भोजन अवश्य खिलायें ।

☸ अंत में माता की आरती करके भोग लगाया हुआ प्रसाद वितरित करें।

माँ छिन्नमस्ता पूजा मंत्र

माँ की पूजा आराधना करते समय दिये गये महामंत्र का जाप अवश्य करें इससे आपको पुण्य फल की प्राप्ति होगी तथा मनोवांछित फल और आशीर्वाद प्राप्त होगा।

मंत्रः- श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूँ हूँ फट् स्वाहा।।

 

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