पशुपति मंदिर से जुड़ा अनोखा रहस्य | Pashupati Mandir Benefit |

शिवजी का पशुपति मंदिर अनेक रहस्यों से जुड़ा है तथा नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर कुछ मान्यताओं के आधार लगभग सभी मंदिरों में यह मंदिर सबसे प्रमुख माना जाता है। पशुपति का शाब्दिक अर्थ है जीवन का मालिक अर्थात जीवन का देवता। पशुपतिनाथ चार दिशाओं वाला लिंग है जिसमें पूर्व दिशा वाले मुख को तत्पुरुष और पश्चिम दिशा वाले मुख को सद्ज्योत, उत्तर दिशा वाले मुख को वामवेद तथा दक्षिण दिशा वाले मुख को अघोरा कहते है। प्रत्येक मुख के दाएं में रुद्राक्ष की माला एवं बायें हाथ में कमंडल है। इसके साथ ही पांचवा मुख भी है जो ऊपर की दिशा में है इन सभी मुखों का अलग-अलग महत्व है।

भगवान शिव जी का भारत में ही नही अपितु कई देशों में मंदिर एवं तीर्थ स्थल है। इन सभी मंदिरों और तीर्थ स्थलों का अलग-अलग विशेष महत्व है जो अपने चमत्कार और धार्मिकता के कारण हम सभी को प्रभावित करता है। इन्हीं में से एक प्रसिद्ध मंदिर है नेपाल का श्री पशपुतिनाथ मंदिर, जो अपने चमत्कारों और अनूठे रहस्यों द्वारा पूरे संसार में जाना जाता है। यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिगों मे भी विशेष स्थान रखता है ऐसा माना जाता भगवान शिव आज भी इस मंदिर में व्याप्त हैः-

कौन है भगवान शिव का श्रेष्ठतम मुख

पशुपतिनाथ भगवान के पाँच मुख माने जाते है। इनमें से ईशान मुख भगवान शिव का श्रेष्ठतम मुख माना जाता है। यहाँ व्याप्त शिवलिंग के पाचों मुखों का गुण अलग-अलग है। श्री पशुपतिनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग को करिश्माई शक्तियों से परिपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि यह शिवलिंग पारस के पत्थर से बना है और पारस का पत्थर अत्यन्त गुणवान होता है जिसके स्पर्श मात्र से लोहा भी सोना बन जाता है।

दक्षिण भारत के पुजारी करते है पशुपतिनाथ की पूजा

पशुपतिनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। प्रत्येक वर्ष भारी संख्या में लोग यहां दर्शन करने के लिए आते है तथा नेपाल में स्थित इस मंदिर में सबसे अधिक संख्या भारतीय पुजारियों की मानी जाती है। पुरानी परम्पराओं के अनुसार मंदिर में चार पुजारी और एक मुख पुजारी दक्षिण भारत के ब्राह्मणों मे से रखे जाते है। यहाँ स्थित ज्योतिर्लिंग को केदारनाथ का आधा भाग माना जाता है जिसके कारण इस मंदिर की महत्ता और शक्तियाँ अत्यधिक बढ़ जाती है।

बागमती नदी के तट पर स्थित है श्री पशुपतिनाथ मंदिर

नेपाल का प्रसिद्ध मंदिर अर्थात पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से 3 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गाँव में बागमती नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर को यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल किया गया है। पशुपतिनाथ मंदिर महादेव का सबसे पवित्र मंदिर है तथा हिन्दू धर्म आठ तीर्थ स्थलों मे भी सम्मिलित है।

पशुपतिनाथ मंदिर में व्याप्त है शिव जी का भैस रुपी सिर

पशुपतिनाथ मंदिर एवं केदारनाथ मंदिर दोनों एक दूसरे जुड़े है इसलिए ऐसा माना जाता है कि जो भक्त पशुपतिनाथ मंदिर दर्शन के लिए जाते है उन्हें केदारनाथ धाम में भैंस की पीठ के रुप में शिवलिंग की पूजा होती है। पशुपतिनाथ मंदिर का दर्शन करने से पशुयोनि नही मिलती है।

क्यों नही करते नंदी के दर्शन

कई मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जो भक्त पशुपतिनाथ के दर्शन करते है उन्हें नंदी के दर्शन नही करना चाहिए अन्यथा उनको अगले जन्म में पशु योनि की प्राप्ति होगी। इस मंदिर के बाहर एक घाट बना हुआ है जिसे आर्य घाट के नाम से जाना जाता है।

केदारनाथ में स्थित है भगवान शिव का शरीर

पशुपति मंदिर से जुड़ा अनोखा रहस्य | Pashupati Mandir Benefit | 1

ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव का पीछा करते हुए जब पांडव केदारनाथ पहुंच गये तो उनके आने से पहले ही भैंस का रुप लेकर शिव जी वहाँ खड़े भैसों के झुंड मे शामिल हो गये परन्तु पांडवो ने महादेव को पहचान लिया तब भगवान शिव भैंस रुप में भूमि में समाने लगे इस दौरान भीम जी ने अपने शक्तियों के द्वारा उनके गर्दन को पकड़कर धरती में सामने से रोकने लगें। तब भगवान शिव अपने पुनः शिव स्वरुप में आये और पांडवों को क्षमा कर दियें। इस घटना के कारण भगवान शिव का मुख तो बाहर था परन्तु उनका शरीर केदारनाथ पहुंच गया था। फलतः उनका देह वाला भाग केदारनाथ एवं मुख वाला भाग पशुपतिनाथ धाम कहलाया।

इस मंदिर से जुड़ी कथा अद्भुत है पौराणिक कथाओं के अनुसार जब महाभारत के युद्ध में पांडवों ने अपने ही रिश्तेदारों का रक्त बहाया तो शिव जी उनसे बहुत क्रोधित हो गयें। तब श्री कृष्ण जी के कहने पर वे शिव जी से माफी मांगने के लिए निकल पड़े। गुप्त काशी में पांडवों को देखकर भगवान शिव अन्य स्थान पर चले गये यही स्थान आज केदारनाथ धाम से विश्व प्रसिद्ध है । शिव जी के भागने के पीछे यही कारण था कि वह नही चाहते थे कि इतने बडे अपराधों का इतने आसानी से क्षमा दे दिया जायें।

कुछ मान्यताओं के अनुसार इन भागा दौड़ी के दौरान जब शिव जी धरती में विलुप्त हुए और पुनः शिव अवतार में आये तो उनका शरीर कई अलग-अलग जगहों पर बिखर गया। नेपाल के पशुपतिनाथ में भगवान शिव जी का मस्तक गिरा था जिसके कारण इस मंदिर को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है।

केदारनाथ धाम में कूबड़ गिरा था तथा आगे की दो टांगे तुंगनाथ में गिरी यह स्थान केदारनाथ के रास्ते में पर पड़ता है। बैल का नाभि वाला हिस्सा हिमालय के भारतीय इलाके में गिरा जिसे मध्य महेश्वर के नाम से जाना जाता है यहाँ व्याप्त शिवलिंग बहुत ही शक्तिशाली मणिपूरक लिंग है। बैल के सींग गिरे उस जगह को कल्पनाथ कहते है।

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