कुण्डली में कई प्रकार के शुभ एवं अशुभ योगों का निर्माण होता है। शुभ योगों द्वारा जातकों के जीवन में सुख-समृद्धि आती है तो वहीं अशुभ योगों द्वारा जातकों के जीवन में अनेक परेशानियां घटित होती है। उन्हीं अशुभ योगों में से एक योग विष योग है और जातकों को कई परेशानियां देता है। यह योग चन्द्रमा एवं शनि के कारण बनता है तो आइये इसकी सम्पूर्ण जानकारी ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी द्वारा समझें
किसी भी जातक की कुण्डली में शनि, चन्द्रमा को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। शनि ग्रह बहुत मंद गति से कार्य करता है तथा शनि का राशि परिवर्तन ढाई वर्षों मे होता है तो वहीं चन्द्रमा लगभग सवा दो दिन में ही राशि परिवर्तन करता है।
शनि एवं चन्द्रमा की युति
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि ग्रह को क्रूर एवं पापी ग्रह के श्रेणी में रखा गया हैं तथा चन्द्रमा को मन का कारक माना जाता है साथ चन्द्रमा को माता माना गया है। चन्द्रमा का स्वभाव चंचल बताया गया। यदि किसी जातक की कुण्डली में शनि एवं चन्द्रमा किसी प्रकार से युति दृष्ट हो तो विष योग का निर्माण होता है।
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विष योग का प्रभाव
जिन जातकों की कुण्डली में विष योग का निर्माण होता है वह जातक आर्थिक, करियर एवं स्वास्थ्य सम्बन्धित परेशानियों का सामना करते हैं तथा जीवन में तनाव की स्थिति बनी रहती है। परिवार में भी संतुलन नही बना रहता है तथा कई बार वैवाहिक संबंध टूटने के कागार पर आ जाते है। घर-परिवार में सुख-समृद्धि की कमी रहती है। जातक अनैतिक कार्यों में निपूर्ण होता है। अतः विषयोग के प्रभाव से जातक अनेक परेशानियों का सामना करता है।
चन्द्रमा का निर्बल होना एवं शनि का मारक ग्रह होना
यदि किसी जातक की कुण्डली में चन्द्रमा कमजोर हो, निर्बल हो अथवा अशुभ हो तथा शनि मारक ग्रह हों तो इन ग्रहों की युति प्रबल विष योग का निर्माण करती है। उपरोक्त कुण्डली में शनि छठेश एवं सप्तमेश होकर मारक का कार्य करेगा साथ ही चन्द्रमा पक्ष मजबूत भी नही हैं क्योंकि चन्द्रमा के एक भाव पीछे सूर्य है अतः यह प्रबल विषयोग का निर्माण करेगा। जिसके कारण जातक अनेक कठिनाइयों का सामना करते हैं।
यदि विष योग कुण्डली के त्रिक भाव अर्थात छठे, आठवें एवं बारहवें भाव अथवा त्रिषडाये भाव तृतीय, षष्ठम या एकादश भाव में बन रहा है तो अधिक नकारात्मक माना जाता है परन्तु जब कभी शनि षड्बल कमजोर हो तथा चन्द्र पक्ष मजबूत हो तो विष योग का प्रभाव बहुत कम होता है।
लग्नेश शनि से विष योग का निर्माण
जब किसी जातक की कुण्डली में शनि लग्नेश होकर किसी शुभ भाव में चन्द्रमा से युति करें तो विष योग का प्रभाव नही माना जाता है। क्योंकि कोई भी लग्नेश व्यक्ति को अशुभ परिणाम नही देता है परन्तु इस योग का निर्माण कुण्डली में हो गया हो तो आपको कुछ संघर्षों के बाद सफलता मिलेगी। उपरोक्त कुण्डली कुंभ लग्न की है जिसका लग्नेश शनि होता है तथा लग्नेश शनि मकर राशि में विष योग का निर्माण कर रहें है जिसके फलस्वरुप जातक को कुछ कठिनाइयों एवं परिश्रमों के बाद शुभ फल की प्राप्ति होगी।
दो भावों में विष योग का निर्माण
केवल एक ही भाव में शनि चन्द्रमा की युति हो रही हो तो विष योग का निर्माण नही होता है कभी-कभी ये दोनों ग्रह आस-पास के भाव में जैसे एकादश भाव में शनि हो तथा द्वादश भाव में चन्द्रमा विराजमान हो तथा द्वादश भाव में चन्द्रमा विराजमान हो तथा इनकी अंशात्मक दूरी बहुत कम हो तो विष योग का निर्माण होता है।
विष योग कैसे भंग होता है
जब शनि एवं चन्द्रमा की युति होती है तब विष योग का निर्माण होता है। इस योग के प्रभाव के लिए केवल शनि और चन्द्र की युति मात्र होने से विष योग का निर्माण नही होता है। उसके लिए कुछ शर्तों का होना आवश्यक होता है। कई जातकों की कुण्डली में यह योग बनता तो दिखाई देता है परन्तु यदि उनके ऊपर सभी नियम लगाकर देंखे तो अधिकतर कुण्डलियों में यह योग भंग हो जाता है।
विष योग का उपाय
☸ जिन जातकों की कुण्डली में विष योग का निर्माण होता है। उन जातकों को प्रत्येक शनिवार के दिन पीपल के पेड़ के नीचे नारियल फोड़ना चाहिए।
☸ ज्येष्ठ माह में पानी से भरा घड़ा शनि या हनुमान मंदिर में दान करने से लाभ मिलता है साथ हनुमान जी की पूजा आराधना से भी विष योग दूर होता है।
☸ शनिवार को कुएं में कच्चा दूध डालने से भी इस योग का प्रभाव दूर होता है।
☸ सोमवार और शनिवार को विशेष मानते हुए व्रत करेें और भूखों को भोजन खिलाएं इससे आपको मुक्ति मिलेगी।
☸ नारियल को अपने चारों ओर 7 बार घुमाकर पीपल वृक्ष के नीचे फोड़ना चाहिए और उसे प्रसाद के रुप में वहीं पर सभी को बाट देना चाहिए।
☸ विष योग के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए जातकों को शिवलिंग का जलाभिषेक करना चाहिए तथा मंगलवार एवं शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।
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