जीवित्पुत्रिका व्रत 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा। यह व्रत हर वर्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आयोजित किया जाता है जिसे जीवितपुत्रिका व्रत के रूप में जाना जाता है, इसे कई स्थानों पर जिउतिया व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए करती हैं। जीवितपुत्रिका व्रत एक निर्जला व्रत होता है, जिसमें महिलाएं बिना जल के रहती हैं। इस व्रत के माध्यम से, माताएं अपनी संतान के समृद्धि और उच्च जीवन की कामना करती हैं, और इसे मान्यताओं के अनुसार, यह उनकी संतान की सुरक्षा में मदद करता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत 2023 मुहूर्त
नहाय खाय – 5 अक्टूबर 2023
जीवीत्पुत्रिका व्रत – 6 अक्टूबर 2023
व्रत पारण – 7 अक्टूबर 2023
अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 6 अक्टूबर 2023 को सुबह 06 बजकर 34 मिनट पर शुरू होगी और 7 अक्टूबर 2023 को सुबह 08 बजकर 08 मिनट पर समाप्त होगी। इसके बाद व्रत पारण कर सकते हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत में बरतें ये 5 सावधानी
जीवित्पुत्रिका व्रत के एक दिन पहले नहाने-धोने और पूजा-पाठ का आयोजन किया जाता है। इस दिन व्रती छठ व्रत की तरह ही स्नान करते हैं और इसके बाद भोजन करते हैं। उन्हें इस दिन लहसुन, प्याज, मांस और तामसिक आहार से दूर रहना चाहिए। इसके दूसरे दिन, व्रती निर्जला व्रत अनुसरण करते हैं।
एक बार जीवित्पुत्रिका का व्रत का पालन करने के बाद, यह व्रत हर साल किया जाना चाहिए। इसे बीच में छोड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि यह एक परंपरागत आचरण माना जाता है। प्रारंभ में, सास इस व्रत का पालन करती हैं, और उसके बाद घर की बहू इसका पालन करती हैं।
वह महिला, जो जीवित्पुत्रिका व्रत रखती है, उसको इस व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक होता है। इसके अलावा, उसे मन, वचन, और कर्म से भी शुद्ध रहना चाहिए। इस दौरान लड़ाई-झगड़े और कलह-क्लेश से दूर रहना बेहद महत्वपूर्ण होता है।
जीवित्पुत्रिका का व्रत पूरी तरह से निर्जला रखा जाता है। व्रत के दौरान आचमन करना भी वर्जित माना जाता है। इसलिए जीवित्पुत्रिका व्रत में जल का एक भी बूंद ग्रहण नहीं करना चाहिए।
जीवित्पुत्रिका व्रत के नियम पूरे तीन दिनों के लिए होते हैं। पहले दिन नहाय-खाय और दूसरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। इसलिए तीसरे दिन, आपको सुबह उठकर स्नान करने और पूजा-पाठ करने के बाद ही व्रत का पारण करना चाहिए।
जीवित्पुत्रिका व्रत के नियम
शुद्धि और स्नान
व्रत के दिन, आपको सुबह उठकर शुद्धि करनी चाहिए और नहाना चाहिए। स्नान करने से आप शारीरिक और मानसिक रूप से पवित्र रहेंगे।
निर्जला व्रत
जीवित्पुत्रिका व्रत में आपको दूसरे दिन निर्जला व्रत रखना होता है, जिसका मतलब है कि आप उस दिन कुछ भी नहीं खा सकते हैं, न तो पानी पी सकते हैं। इसका पालन करना जरूरी होता है।
व्रत का उद्देश्य
यह व्रत मां के द्वारा पुत्र के लंबे और सुरक्षित जीवन की कामना के लिए किया जाता है। आपको व्रत के समय इस उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए।
पूजा और मन्त्र
व्रत के दिन, मां के मंदिर में पूजा करनी चाहिए और मां की कृपा के लिए मंत्र जपना चाहिए।
व्रत का त्याग
जीवित्पुत्रिका व्रत के बाद, अपने व्रत को ध्यानपूर्वक समाप्त करें और अच्छे से भोजन करें। व्रत के समापन के बाद आपको पूजा के द्वारा व्रत को समाप्त करना चाहिए।
जीवित्पुत्रिका पूजा के नियम
जीवित्पुत्रिका व्रत के दौरान पूजा के विशेष अवसर पर सरसों का तेल और खली का उपयोग किया जाता है। यह परंपरागत उपाय किया जाता है जिसका मान्यता यह है कि इससे संतान को पूरे साल किसी की बुरी नजर नहीं लगती है और वह निरोगी रहता है। इस व्रत का पारण नवमी तिथि के दिन स्नान और ध्यान के बाद किया जाना चाहिए।
नहाय-खाय से शुरुआत करने वाली महिलाओं को व्रत को पूरी ईमानदारी और नियमों के साथ आचरण करना चाहिए। व्रती महिलाओं को श्रद्धा और विश्वास के साथ गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की मूर्ति की पूजा करनी चाहिए। जीवित्पुत्रिका व्रत में चील और सियार की गोबर से बनाई गई मूर्ति का विशेष ध्यान रखना चाहिए और इसे पूजा के अनुसार समर्पित करना चाहिए।