ज्योतिष का सही अर्थ क्या है, What is the true meaning of astrology

ज्योतिषां सूर्यादिग्रहाणां बोधक शास्त्रम् अर्थात

सूर्यादि ग्रह और काल का बोध करने वाले शास्त्र को ज्योतिष शास्त्र कहा जाता है। इसमें मुख्य रूप से ग्रह, नक्षत्र आदि के स्वरूप, संचार, परिभ्रमण काल, ग्रहण और स्थिति सम्बन्धित घटनाओं का निरूपण एवं शुभाशुभ फलों का कथन किया जाता है।

 आइए जानें ज्योतिषाचार्य के.एम.सिन्हा द्वारा ज्योतिष के देवता कौन है

बृहस्पति जिन्हें ‘‘ प्रार्थना या भक्ति का स्वामी’’ माना गया है और ब्राह्मम स्वाती तथा देवगुरू (देवताओं के गुरू) भी कहलाते हैं। एक हिन्दू देवता एवं वैदिक आराध्य है। इन्हें शील और धर्म का अवतार माना जाता है और ये देवताओं के लिये प्रार्थना और बलि या हवि के प्रमुख प्रदाता है।

बृहस्पति सूर्य से पाचवाँ और हमारे सौरमण्डल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह मुख्य रूप से एक गैस पिण्ड है जिसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवें भाग के बराबर तथा सौरमण्डल में मौजूद अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुना है। बृहस्पति को शनि, अरूण और वरूण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

बृहस्पति (ग्रह) के स्वामी एवं शिक्षा के स्वामी है

संबंध- ग्रह एवं देवताओं के गुरू

निवास स्थान- बृहस्पति मण्डल या लोक

ग्रह- बृहस्पति

मंत्र- ओम बृृं बृहस्पतये नमः

जीवनसाथी- तारा

सवारी- हाथी/आठ घोड़ों वाले रथ

बृहस्पति हिन्दू देवताओं के गुरू है और दैत्य गुरू शुक्राचार्य के कट्टर विरोधी रहे है। ये नव ग्रहों के समूह के नायक भी माने जाते है। बृहस्पति ज्ञान और वाग्मिता के देवता माने जाते है इन्होंने ही बहिस्पत्य सूत्र की रचना की थी। इनका वर्ण सुवर्ण या पीला माना जाता है तथा इनके पास दण्ड, कमल और जपमाला रहती है। ये सप्तवार में बृहस्पतिवार के स्वामी माने जाते हैं। ज्योतिष में इन्हें बृहस्पति ग्रह का स्वामी माना जाता है।

बृहस्पति को खुश कैसे करें 

जब आप गायों का सम्मान करते हैं तो बृहस्पति प्रसन्न होते हैं। गाय को कुछ मीठा अवश्य खिलायें।

बृहस्पति पर समय

बृहस्पति पर एक दिन मात्र 10 घंटे में बीत जाता है।

बृहस्पति पर एक वर्ष पृथ्वी के 11.8 वर्ष के बराबर होता है।

ज्योतिष की कितनी विधायें है और उनमें असरकारी कौन सी है 

ज्योतिष भारतीय ज्योतिष का एक अंग है जो ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति का अध्ययन करता है और उनके अनुसार मानव जीवन की भविष्यवाणी करता है। ज्योतिष की कुल मान्यताओं में कई विधाएं है जो इस प्रकार है-

वैदिक ज्योतिष
नाड़ी ज्योतिष
होरा ज्योतिष
कुण्डली ज्योतिष
मिथुन ज्योतिष
ताजिक ज्योतिष
मुहूर्त ज्योतिष
नीम खाकरी ज्योतिष
बृहत्पाराशर होरा शास्त्र

इन सभी विद्याओं में वैदिक ज्योतिष सबसे प्रभावी और प्रचलित है। इसके अलावा कुण्डली ज्योतिष और होरा ज्योतिष भी काफी प्रचलित है।

वैदिक ज्योतिष ग्रहों की स्थिति और नक्षत्रों और ग्रहों की स्थिति जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के लिए सहायक होती है। प्राचीन काल से ही वेद ग्रह, नक्षत्र और अन्य खगोलीय पिण्डों का अध्ययन करने के विषय को ज्योतिष कहा गया है इसके गणित भाग के बारे में तो बहुत स्पष्टता से कहा जा सकता है कि वेदों में स्पष्ट गणनाएं दी हुई है। फलित भाग के बारे में बहुत बाद में जानकारी मिलती है। भारतीय आचार्यों द्वारा रचित ज्योतिष की पाण्डुलिपियों की संख्या एक लाख से भी अधिक है। प्राचीन काल में गणित एवं ज्योतिष समानार्थी थे परन्तु आगे चलकर इनके तीन भाग हो गये।

तंत्र या सिद्धान्तः- गणित द्वारा ग्रहों की गतियों और नक्षत्रों का ज्ञान प्राप्त करना तथा उन्हें निश्रित करना।

होराः- जिसका संबंध कुण्डली बनाने से था इसके तीन उप विभाग थे-

जातक, यात्रा, विवाह

शाखाः- यह एक विस्तृत भाग था जिसमें शुकन, परीक्षण, लक्षण परीक्षण एवं इन तीनों स्कन्धों (तंत्र, होरा, शाखा) का जो ज्ञाता होता था उसे संहितापारग कहते हैं।

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