आइए जानें ज्योतिषाचार्य के.एम.सिन्हा द्वारा ज्योतिष में योग निर्धारण किस प्रकार किया जाता है
ज्योतिष शास्त्र में दो रूप से अध्ययन किया जाता है।
प्रथम ग्रहों की युति संयुक्ती से या विशेष भाव में स्थिति से निर्मित परिस्थिति को योग नाम दिया जाता है जिसकी चर्चा पूर्व में कर चुके है। दूसरा योग का प्रयोग मुहूर्त के लिए पंचांग के प्रमुख अंग के रूप में किया जाता है जिसके विचारणीय पहलू निम्न है-
योग का निर्माण सूर्य एवं चन्द्रमा का एक दूसरे से स्थिति के अनुसार होता है यह 27 प्रकार के होते हैं।
योग का निर्धारण सूत्र, चन्द्र का भोगांश/सूर्य का भोगांश/13डिग्री 20 या (800 मिनट)
क्रम अनुसार योग इस प्रकार होते हैं-
विष कुंभ
प्रीति
आयुष्मान
सौभाग्य
शोभन
अति गंडमूल
सुकर्मा
घृति
शूल
गंड
वृद्धि
धुव्र
व्याघात
हर्षण
वज्र
सिद्धि
व्यतिपात
वरीयान
परिघ
शिव
सिद्ध
साध्य
शुभ
शुक्ल
ब्रह्म
इन्द्र
वैधृति
मुहूर्त के निर्धारण में किसी कार्य के प्रारम्भ में विष कुभ, शूल, व्याघात, परिघ, वैधृति योग के ज्योतिष के अनुसार अशुभ माना जाता है। शेष को शुभ माना गया है।
ज्योतिष विद्या का आरम्भ शायद गुरू वशिष्ट जी ने किया था बिना आत्मज्ञान के अगर कोई ज्योतिषी है।
फलित ज्योतिषः- फलित ज्योतिष उस विद्या को कहते हैं जिसमें मनुष्य तथा पृथ्वी पर ग्रहों और तारों के शुभ तथा अशुभ प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। ज्योतिष शब्द का यौगिक अर्थ ग्रह तथा नक्षत्रों से संबंध ज्योतिष का भी बोध होता है। भारत में 12 राशियों को सिद्धान्त 27 विभाग किये गये है, जिन्हें नक्षत्र कहते हैं। ये हैं अश्विनी, भरणी आदि। फल के विचार के लिये चन्द्रमा के नक्षत्र का विशेष उपयोग किया जाता है।
परिचयः- डिग्रीज्योतिष शास्त्र या एस्ट्रोलाॅजी (ग्रीक भाषा के शब्द aoTPOV के शब्द एस्ट्रोन यानि “तारा समूह” oyia और लाॅजिया (-logia)यानि अध्ययन से लिया गया है।) यह प्रणालियों प्रथाओं (Tradition) और मतों (Belief) का वो समूह है जिसके जरिये आकाशीय पिण्डों (Celestial bodies) की तुलनात्मक स्थिति और अन्य सम्बन्धित विवरणों के आधार पर व्यक्तित्व मनुष्य की जिन्दगी से जुड़े मामलों और अन्य सांसारिक विषयों को समझकर उनकी व्याख्या की जाती है और इस सन्दर्भ में सूचनाएं संगठित की जाती है। ज्योतिष जानने वाले को ज्योतिषी (Astrologer) या एक भविष्यवक्ता कहा जाता है।
तीसरी सहस्त्राब्दी ई0पू0 (3rd millennium BC) में इसके प्राचीनतम अभिलिखित लेखों में अब तक ज्योतिष के सिद्धांतों के आधार पर कई प्रथाओं और अनुप्रयोगों के निष्पादन हुआ है। संस्कøति, शुरूआती खगोल विज्ञान और अन्य विद्याओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
आधुनिक योग (Modern era) से पहले ज्योतिष और खगोल विज्ञान (Astrology and Astronomy) अक्सर अविभेद्य माने जाते थे। भविष्य के बारे में जानना और दैवीय ज्ञान की प्राप्ति खगोलीय अवलोकन के प्राथमिक प्रेरको में से एक है। पुनर्जागरण से लेकर 18 वीं सदी के अंत के बाद से खगोल विज्ञान वस्तुओं के वैज्ञानिक अध्ययन और एक ऐसे सिद्धान्त के रूप अपनी एक पहचान बनाई जिसका उसकी ज्योतिषीय समझ से कुछ लेना देना नही था।
ज्योतिषों का विश्वास है की खगोलीय पिण्डों की चाल और उनकी स्थिति या तो पृथ्वी को सीधे तरीके से प्रभावित करती है या फिर किसी प्रकार से मानवीय पैमाने पर या मानव द्वारा अनुभव की जाने वाली घटनाओं से सम्बद्ध होती है। आधुनिक ज्योतिषियों द्वारा ज्योतिष को एक प्रतीकात्मक भाषा (Symbolic Language) एक कला के रूप में या भविष्यकथन (divination) के रूप में परिभाषित किया गया है, जबकि बहुत से वैज्ञानिकों ने इसे एक छद्रा विज्ञान (pseudo science) या अंधविश्वास (Superstition) का नाम दिया है।
परिभाषाओं में अन्तर के बावजूद ज्योतिष विद्या की एक सामान्य धारणा यह है की खगोलीय पिण्ड अपने क्रम स्थान से भूत और वर्तमान की घटनाओं और भविष्यवाणी (Prediction) को समझने में मदद कर सकते हैं।
वैज्ञानिक आधारः- ज्योतिष के आधार पर शुभा शुभ फल ग्रह नक्षत्रों की स्थिति विशेष से बतलाया जाता है। इसके लिये हमें सूत्रों से गणित द्वारा ग्रह तथा तारों की स्थिति ज्ञात करनी पड़ती है अथवा पंचांगो या नाविक तथा नक्षत्रों की स्थिति प्रतिक्षण परिवर्तनशील है अतएव प्रति क्षण में होने वाली घटनाओं पर ग्रह तथा नक्षत्रों का प्रभाव भी विभिन्न प्रकार का पड़ता है। वास्तविक ग्रह स्थिति ज्ञात करने के लिए गणित ज्योतिष ही हमारा सहायक है। यह फलित ज्योतिष के लिये वैज्ञानिक आधार बन जाता है।
कुण्डलीः- कुण्डली वह चक्र है जिसके द्वारा किसी दृष्ट काल में राशि चक्र की स्थिति का ज्ञान होता है। राशि चक्र, क्रांतिचक्र से संबद्ध है जिसकी स्थिति अक्षांशो की भिन्नता के कारण विभिन्न देशों में सी नही है। अतएव राशिचक्र की स्थिति जानने के लिये स्थानीय समय तथा अपने स्थान में होने वाले राशियों के उदय की स्थिति स्वोदय का ज्ञान आवश्यक है। हमारी घड़ियाँ किसी एक निश्चित याम्योत्तर के मध्यम सूर्य के समय को बतलाती है। इससे सारणियों की जो पंचांगो में रहती है सहायता से हमें स्थानीय स्पष्ट काल ज्ञात करना होता है। स्थानीय स्पष्टकाल को इष्टकाल कहते हैं। तात्कालिक स्पष्ट से सूर्य के ज्ञान से लग्न जाना जाता है। भारतीय पद्धति में जो सात ग्रह माने जाते हैं वे हैं सूर्य, चन्द्र, मंगल आदि। इसके अतिरिक्त दो तमो ग्रह भी हैं जिन्हें राहु तथा केतु का अवरोह पात पर स्थित मानते हैं। ये जिस भाव में या जिस भाव के स्वामी के साथ स्थित हों उनके अनुसार इसका फल बदल जाता है। स्वभावतः तमोग्रह होने के कारण इनका फल अशुभ होता है।
पाश्चात्य प्रणाली में (1) मेष (2) वृष (3) मिथुन (4) कर्क (5) सिंह (6) कन्या (7) तुला (8) वृश्चिक (9) धनु (10) मकर (11) कुंभ (12) मीन राशियों के लिए क्रमशः निम्नलिखित चिन्ह हैः
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12
(1)बुध (2) शुक्र (3) पृथ्वी (4) मंगल (5) गुरू (6) शनि (7) वारूणी (8) वरूण तथा (9 ) यम ग्रहों के लिये क्रमशः निम्नलिखित चिन्ह हैः
1 2 3 4 5 6 7 8 9
सूर्य के लिये और चन्द्रमा के लिए प्रयुक्त होते हैं।
भावों की स्थिति अंको से व्यक्त की जाती है। स्पष्ट लग्न को पूर्व बिन्दु वृृत्त को आधा करने वाली रेखा के बायें छोर पर लिखकर वहाँ से वृृत्त चतुर्थांश के तुल्य तीन भाग करके भावों को लिखते है। ग्रह जिन राशियों में हो उन राशियों में लिख देते है। इस प्रकार कुण्डली बन जाती है जिसे अंग्रेजी में हाॅरोस्कोप (Horoscope) कहते है। यूरोप में भारतीय सात ग्रहों के अतिरिक्त, वारूणी, वरूण तथा यम के प्रभाव का भी अध्ययन करते हैं।
फल का ज्ञानः- फल के ज्ञान के लिए राशियों के स्वभाव का अध्ययन करना पड़ता है। कुण्डली के विभिन्न भावों से हमारे जीवन से संबंध रखने वाली विभिन्न बातों का पता चलता है जैसे प्रथम भाव से शरीर संबंधी, दूसरे भाव से धन संबंधी आदि। जिस भाव में जो राशि हो उसका स्वामी उस भाव का स्वामी होता है। एक ग्रह राशि चक्र पर विभिन्न प्रकार से किरणें फेंकता है। अतएव कुण्डली में ग्रह की दृष्टि भी पूरी या कम मानी जाती है।
ग्रह जिस ग्रह स्थान पर अत्यधिक प्रभाव रखता है उसे उच्च तथा उससे सातवें भाव को उसका नीच कहते हैं। सूर्य के सान्निध्य से ग्रह हमें कभी-कभी दिखाई नही पड़ते, तब वे अस्त हुए कहलाते है। इसी प्रकार विभिन्न स्थितियों में ग्रहों के प्रभाव के अनुसार उन्हें बाल, युवा तथा वृद्ध कहते हैं। ग्रहों के अन्य ग्रह स्वभाव की सदृृशता अथवा विरोध के कारण मित्र अथवा शत्रु होते है। अतः फलित के लिये ग्रहों के बलाबल को जाना जाता है। जो ग्रह युवा, अपने स्थान अथवा उच्च में स्थित हो तथा अपने मित्रों से युत अथवा दृष्ट हो, उसका प्रभाव बहुत होता है। इसी प्रकार वह भाव जो अपने स्वामी से युक्त अथवा दृष्ट हो और जिसमें शुभ ग्रह हों, पूर्ण फल देता है। इस प्रकार ग्रहों के बलाबल उनकी स्थिति तथा उन पर अन्य ग्रहों का भी विचार किया जाता है। इसके साथ परिस्थितियों तथा मनुष्य की दशा का भी विचार किया जाता है। इन्हीं सब कारणों से फलित बताना अत्यन्त कठिन कार्य है। जो लोग गणित ज्योतिष के ज्ञान के बिना फल बताते है। वे सही विशेषण नही कर सकते हैं अधिकांश ज्योतिषी ऐसे ही पाये जाते है। इसलिए कुछ लोगों को इस विद्या पर संदेह होने लगता है। हमारे जीवन के ऊपर सबसे अधिक सूर्य तथा चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है। अतः सूर्य कुण्डली एवं चन्द्र कुण्डली का विशेष महत्व है। सूर्य हृदय की स्थिर प्रवृत्तियाँ का तथा चन्द्रमा प्रतिक्षण चल मानसिक प्रवृत्तियों का बोधक है। चूकि सूर्य अथवा चन्द्रमा एक राशि में बहुत समय तक रहते हैं। अतः इनकी कुण्डलियों से विभिन्न व्यक्तियों पर होने वाले प्रभाव का ठीक से अध्ययन नही किया जा सकता है। अतएव लग्न कुण्डली को व्यक्ति की वास्तविक जन्म कुण्डली माना जाता है। सूक्ष्म फल के लिए होरा, द्रेष्काण, नवांश कुण्डलियों का उपयोग किया जाता है।
ग्रह दशाः- ग्रहों का विशेष फल देने के लिये समय तथा अवधि भी मिश्रित है। चन्द्र क्षेत्र का व्यतीत तथा सम्पूर्ण भोग्यकाल ज्ञात होने से ग्रह दशा ज्ञात हो जाती है। ग्रह अपने शुभाशुभ प्रभाव विशेष रूप से अपनी दशा में ही डालते है। किसी ग्रह की दशा में अन्य ग्रह भी अपना प्रभाव दिखलाते है इसे उन ग्रहों की अन्तर्दशा कहते है। इसी प्रकार उन ग्रहों की अन्तर्दशा कहते हंै। इसी प्रकार ग्रहों की अंतर, प्रत्यंतर दशाएँ भी होती है। ग्रहों की पारस्परिक स्थिति से एक योग बन जाता है जिसका विशेष फल होता है। वह फल किस समय प्राप्त होगा इसका निर्णय ग्रहों की दशा से ही किया जा सकता है। भारतीय प्रणाली में विंशोत्तरी महादशा का मुख्यतः प्रयोग होता है। इसके अनुसार प्रत्येक मनुष्य की आयु 120 वर्ष की मानकर ग्रहों का प्रभाव बताया जा सकता है।
शाखाएँः- फलित ज्योतिष की कई शाखाएं है पाश्चात्य ज्योतिष में इनकी संख्या छह है।
व्यक्तियों तथा वस्तुओं के जीवन संबंधी ज्योतिष
प्रश्न ज्योतिष
राष्ट्र तथा वित्त संबंधी ज्योतिष
वायु मण्डल संबंधी ज्योतिष
आयुर्वेद ज्योतिष
ज्योतिष दर्शन
भारतीय ज्योतिष में केवल जातक तथा संहितास दो शाखाएं ही मुख्य है। पाश्चात्य ज्योतिष की (1), (2) तथा (3) शाखाओं का जातक में तथा शेष तीन का संहिता ज्योतिष में अंतर्भाव हो जाता है।
घटक (ग्रह)
ग्रह अंग्रेजी लिंग विंशोत्तरी दशा (वर्ष) 21/08/1996
सूर्य Sun पुल्लिंग 6
चन्द्रमा Moon स्त्रीलिंग 10
मंगल Mars पुल्लिंग 7
बुध Mercury नपुंसक 17
बृहस्पति Jupiter पुल्लिंग 16
शुक्र Venus स्त्रीलिंग 20
शनि Saturn पुल्लिंग 19
राहु Dragon (Head) पुल्लिंग 18
केतु Dragon (Tail) पुल्लिंग 7
राहु एवं केतु वास्तविक ग्रह नही है इन्हें छायाग्रह माना गया है।
ग्रहों की आपसी मित्रता-शत्रुता इस प्रकार है।
ग्रह मित्र शत्रु सम
सूर्य चन्द्रमा, मंगल, गुरू शुक्र, शनि बुध
चन्द्रमा सूर्य शुक्र, शनि मंगल, गुरू, शुक्र, शनि, चन्द्रमा, राहु, केतु
मंगल सूर्य, चन्द्रमा, गुरू बुध शुक्र, शनि
बुध सूर्य, शुक्र बुध मंगल, गुरू, शनि, चन्द्रमा
गुरू सूर्य, चन्द्रमा, मंगल बुध, शुक्र शनि
शुक्र बुध, शनि सूर्य, चन्द्रमा गुरू
शनि बुध, शुक्र सूर्य, चन्द्रमा मंगल, गुरू
राशि और उनके स्वभाव और स्वामी
राशि अंग्रेजी स्वभाव राशि स्वामी
मेष Aries चर मंगल
वृषभ Taurus स्थिर शुक्र
मिथुन Gemini दो स्वभाव बुध
कर्क Cancer चर चन्द्रमा
सिंह Leo स्थिर सूर्य
कन्या Virgo दो स्वभाव बुध
तुला Libra चर शुक्र
वृश्चिक Scorpio स्थिर मंगल
धनु Sagittarius दो स्वभाव गुरू
मकर Capricorn चर शनि
कुंभ Auqarius स्थिर शनि
मीन Pisces दो स्वभाव गुरू