जातक की मृत्यु के समय जो कुण्डली बनती है वह पुण्य चक्र कहलाती है। इससे मनुष्य के अगले जन्म की जानकारी मिलती है। इससे मृत्यु के बाद व्यक्ति उसका अगला जन्म कब और कहां लेगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है। यदि मरण काल में लग्न में गुरु हो तो जातक की गति देवलोक में तथा सूर्य या मंगल हो तो मृत्यु लोक में, चन्द्रमा या शुक्र हो तो पितृ लोक और बुध या शनि हो तो नरक लोक में जाता है। यदि बारहवें स्थान में शुभ ग्रह हो तथा द्वादशेश बलवान होकर शुभ ग्रह से युति करें तो मोक्ष प्राप्त करता है। यदि बारहवें भाव में शनि राहु या केतु की युति अष्टमेश के साथ हो तो जातक को नरक की प्राप्ति होती है। जन्म कुण्डली में केतु और गुरु का सम्बन्ध द्वादश भाव से होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जानिए कुण्डली में क्या है ग्रहों का योग
☸ गुरु यदि लग्न में हो तो पूर्वजों कि आत्मा का आशीर्वाद या दोष दर्शाता है, अकेले में या पूजा करते समय उनकी उपस्थिति का आभास होता है। ऐसे व्यक्ति को अमावस्या के दिन दूध का दान करना चाहिए।
☸ दूसरे अथवा आठवें स्थान का गुरु दर्शाता है कि व्यक्ति पूर्व जन्म में संत या संत प्रवृत्ति का था और कुछ अतृप्त इच्छाएं पूर्ण न होने से उसे फिर से जन्म लेना पड़ा। ऐसे में व्यक्ति पर अदृश्य प्रेत आत्माओं का आशीर्वाद रहता है। अच्छे कर्म करने तथा धार्मिक प्रवृत्ति से समस्त इच्छाएं पूर्ण होती है। ऐसा व्यक्ति सम्पन्न घर में जन्म लेता है।
☸ गुरु तृतीय स्थान पर हो तो यह माना जाता है कि पूर्वजों में कोई स्त्री सती हुई है और उसके आशीर्वाद से जीवन में आनन्द होता है। शापित होने पर शारीरिक, आर्थिक और मानसिक परेशानियों से जीवन यापन होता है। उसमें कुल देवी या मां भगवती की आराधना करने से मनवांछित फल प्राप्त होते है।
☸ गुरु के चौथे स्थान पर होने का मतलब है कि जातक ने पूर्वजों से वापस आकर जन्म लिया है पूर्वजों के आशीर्वाद से जीवन में सम्पन्नता आती है शापित होने पर ऐसे जातक परेशानियों से ग्रस्त रहते हैं इन्हें हमेशा भय बना रहता है। ऐसे व्यक्ति को वर्ष में एक बार पूर्वजों के स्थान पर जाकर पूजा अर्चना करनी चाहिए और अपने मंगल मय जीवन की कामना करनी चाहिए।
☸ गुरु नवम स्थान पर होने पर बुजुर्गों का साया हमेशा मदद करता रहता है। ऐसा व्यक्ति माया का त्यागी और संत समान विचारों से ओत-प्रोत रहता है ज्यो-ज्यो उम्र बढ़ती जाती है वह बली, ज्ञानी बनता जाता है।
☸ गुरु एकादश भाव में होने पर व्यक्ति पूर्व जन्म में तंत्र-मंत्र गुप्त विद्याओं का जानकार या कुछ गलत करने वाला होता है। दूषित प्रेत आत्माओं से परेशान रहता है उसे मानसिक अशांति हमेशा रहती है। राहु की युति से विशेष परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को मां काली की आराधना करनी चाहिए और संयम से जीवन-यापन करना चाहिए।
☸ गुरु के दसवें भाव में होने पर व्यक्ति पूर्व जन्म के संस्कार से सन्त, प्रवृत्ति, धार्मिक, विचार, भगवान पर अटूट, श्रद्धा रखता हैं। दसवें, नौवें या ग्यारहवें स्थान पर शनि पर राहु की युति है तो ऐसा व्यक्ति धार्मिक स्थल या न्याय का पदाधिकारी होता है या बड़ा सत्त होता है।
☸ बारहवें स्थान पर गुरु के साथ राहु या शनि का योग पूर्व जन्म में इस व्यक्ति द्वारा धार्मिक स्थन या मंदिर तोड़ने का दोष बतलाता है और उसे इस जन्म में पूर्ण करना पड़ता है ऐसे व्यक्ति की अच्छी आत्माएं उद्देश्य स्वरुप से साथ देती है। इन्हें धार्मिक प्रवृत्ति से लाभ होता है। गलत खान-पान से तकलीफो का सामना करना पड़ता है।