दीपावली

दीपावलीः-

दीपावली प्रत्येक वर्ष शरद ऋतु में मनाया जाने वाला एक सनातन त्यौहार है जो कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। दीपावली संस्कृत शब्द दीपावली (दीप+अवली) से लिया गया है जिसका अर्थ होता है दीपकों की पंक्ति।
दीपावली भारत का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्यौहार है और आध्यात्मिक रुप से यह अन्धकार पर प्रकाश की विजयष् को दर्शाता है। दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनो दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। दीपावली को सिंख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते है। जैन धर्म के लोग दीपावली कों महावीर के मोक्ष दिवस के रुप में मनाते है तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रुप में मनाते है।

   क्यों मनायी जाती है दीपावलीः-

दीपावली मनाने के पीछे अलग-अलग कारणों को दर्शाया गया है, यहाँ हम आपको 05 पौराणिक कथाएं बतायेंगे। मान्यता यह है कि इन्ही कारणों के वजह से दीपावली मनाने की रीति आरम्भ हुई।

सतयुग की दीपावलीः-

सर्वप्रथम दीपावली को सतयुग में मनाया गया था जब समुद्र मंथन हुआ था तो उससे ऐरावत, चन्द्रमा, उच्चेश्रवा, परिजात, वारुणी, रम्भा आदि 14 रत्नों के साथ हलाहल विष भी निकला और अमृत धट को लेकर धनवन्तरी वैद्य प्रकट हुए इसलिए स्वास्थ्य के आदि देव वैद्य धनवन्तरी की जयन्ती से ही दीपोत्सव का महापर्व आरम्भ होता है।
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी अर्थात धनतेरस को ही महामंथन से सबसे अन्त में महालक्ष्मी की उत्पत्ति हुई और सभी देवताओं द्वारा उनके स्वागत में प्रथम दीपावली मनाई गई है।

त्रेतायुग दीपावलीः-

त्रेतायुग का नाम जब भी आता है, ध्यान में श्रीराम की छवि आने लगती है  क्योंकि त्रेतायुग को भगवान श्रीराम के नाम के नाम से भी जाना जाता है, श्रीराम चरित मानस और कई पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि महाबलशाली रावण के वध और 14 वर्ष वनवास में बिताने के बाद जब राम जी भ्राता लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ अयोध्या लौटे तो उनके आगमन के खुशी में सभी नगर को दीपों से सजाया गया चारों तरफ मिठाईयाँ बाटी गयी है और यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक दीप-पर्व बन गया।

द्वापर युग की दीपावलीः-(01)

द्वापर युग को श्रीकृष्ण के लीला युग के नाम से जाना जाता है और द्वापर युग में दीपावली से 02 कथाएँ जुड़ी हुई है, प्रथम कहानी श्री कृष्ण के बचपन का है, जब उन्होंने इन्द्र के पूजा का विरोध किया था और गोवर्धन पूजा करने का निर्णय किया, जिससे प्राकृतिक सम्पदा के प्रति सामाजिक चेतना का शंखनाद हुआ और गोवर्धन पूजा के रुप में अन्नकूट के परम्परा की शुरुआत हुई, कुट का अर्थ है पहाड़, अन्नकुट का अर्थ होता है भोज्य पदार्थों का पहाड़ जैसा ढ़ेर अर्थात प्रचुरता से उपलब्धता, कृष्ण-बलराम को कृषि का देवता भी माना जाता है, उनके द्वारा शुरु की गई अन्नकुट परम्परा आज भी दीपावली का अंग है, यह पर्व प्रायः दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाता है।

द्वापर युग की दीपावलीः(02)

दूसरी घटना श्री कृष्ण के विवाह के बाद की है, नरकासुर राक्षस का वध एवं अपनी प्रिय पत्नी सत्यभामा के लिए परिजात वृक्ष लाने की घटना के एक दिन पहले अर्थात रुप चतुर्दशी से जुड़ी है इसलिए इसको नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। अमावस्या के तीसरे दिन श्रीकृष्ण ने द्रौपदी के आमंत्रण पर भोजन स्वीकार किया जिन्हें वो अपनी बहन मानते थे, जब द्रौपदी जी ने श्रीकृष्ण से पूछा की क्या बनाऊँ , आप भोजन में क्या ग्रहण करेंगे ? तब कृष्ण भगवान मुस्कुराकर बोले कल अन्नकुट में ढेर सारे पकवान खाकर पेट भारी हो गया है  इसलिए मै आज केवल खिचड़ी खाऊंगा, इस प्रकार संसार के पालनकर्ता ने संदेश दे दिया था कि तृप्ति भोजन से नही, मन के भाव से होती है और प्रेम पकवान से अधिक महत्वपूर्ण है।

कलयुग की दीपावलीः-

वर्तमान में मनाये जाने वाले दीपावली को स्वामी रामतीर्थ और स्वामी दयानन्द के निर्वाण के साथ  भी जोड़ा जाता है, अपनी आत्मज्योति के परम ज्योति से महामिलन के लिए विराट नंदन भी अमरदीपों के रुप में स्मरण करके इस पर्व को चुना था, जिनकी दिव्यकीर्ति प्रेम, अहिंसा और संयम के रुप में आज भी संसार को आलोकित किया है।

कैसे मनाया जाता है दीपावलीः-

दीपावली के कई दिनों पहले से ही घरों की लिपाई, पुताई, साफ-सफाई और सजावट प्रारम्भ हो जाती है। इस दिन माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है और उनके आगमन और स्वागत के लिए घरों को सजाया जाता है। दीपावली के दिन पहनने के लिए नये कपड़े खरीदें जाते है, मिठाईयां खरीदी जाती है आदि।
दीपावली का त्यौहार पाँच दिनों तक मनाया जाता है, ये त्यौहार धनतेरस से भाई दूज तक चलता है, दीपावली के दिन शाम मे लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है, उन्हें बतासे और फल का प्रसाद चढ़ाया जाता है, नये कपड़े पहने जाते है और एक-दूसरे के गले मिलकर दीपावली की शुभकामनाएं दी जाती है तथा प्रसाद एवं मिठाईयां भी वितरित की जाती है। दीपावली के त्यौहार में मुख्य रुप से फूलझड़ी और पटाखे छोड़े जाते है।
दीपावली की त्यौहार सभी के जीवन में उमंग व उत्साह प्रदान करता है, हालांकि इस दिन कुछ लोग जुआ भी खेलते है जो घर व समाज के लिए बड़ी बुरी आचरण है, सभी को इस बुराई से बचना चाहिए और पटाखें को भी सावधानीपूर्वक छोड़ना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आपके किसी भी कार्य एवं व्यवहार से किसी को भी हानि नही पहुंचे तभी दीपावली का पर्व मनाना सार्थक और आनन्दमय होगा।

दीपावली के दिन क्या करें क्या नहीः-

1. दीपावली के दिन गंदे वस्त्र नही पहनना चाहिए और ना ही प्रवेश द्वार पर कभी भी गंदगी रखना चाहिए।
2. दीपावली के दिन किसी को उपहार में चमड़े से बनी वस्तु को नही देना चाहिए।
3. इस दिन (दीपावली) पूजा में सफेद रंग के पुष्प का प्रयोग करना चाहिए।
4. दीपावली के दिन गरीब और जरुरतमंदो की सहायता करना चाहिए।
5. दीपावली के दिन घरों को आम के पत्तो और रंगोली से सजाना चाहिए।
6. दीपावली के दिन पूजन में गाय के घी का उपयोग करना चाहिए ऐसा करने से सदैव माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
7. दीपावली के दिन पूजा में जल सिंघाड़ा, कमल का फूल, गोमती चक्र, समुद्र के जल, शंख और मोती का बहुत महत्व माना गया है। यदि ये सभी वस्तुएँ उपलब्ध हो जाती है तो इसे पूजा में अवश्य शामिल करें।

दीपावली सामग्री और पूजन विधिः-

लक्ष्मी पूजन सामग्रीः– माँ लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति, कुमकुम, रोली, अक्षत, चंदन, नारियल, सुपारी, अशोक/आम के पत्ते, हल्दी, धूप, कपूर, रुई, मिट्टी और पीतल के दीपक, कलावा, दही, शहद, गंगाजल, फूल, फल, सिंदूर, गेहूं-जौ, दुर्वा, पंचामृत, बताशे, लाल-वस्त्र,चौकी, कमल गट्टे का माला, कलश, शंख, थाली, चांदी का सिक्का, बैठने के लिए आसन एवं प्रसाद।

माँ लक्ष्मी पूजन की तैयारीः-

☸ लक्ष्मी पूजा के लिए सर्वप्रथम प्रातः काल घर की अच्छे से साफ-सफाई करें।
☸ स्नान के पश्चात् घर के मन्दिर में दीपक जलाएं।
☸ शाम को पूजा से पहले घर में गंगाजल छिड़क कर शुद्धिकरण करें।
☸ तत्पश्चात् चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं।
☸ कपड़े मे एक मुट्ठी गेहूं रखे और उसके ऊपर जल से भरें एक कलश को स्थापित करें।
☸ कलश के अंदर सिक्का, सुपारी, गेंदे का फूल, अक्षत आदि डालें।
☸कलश के मुँह पर आम या अशोक के पाँच पत्ते भी लगाए और कलश के ऊपर एक छोटी सी थाली आदि रखे जिसमे थोड़ी सी चावल रख दें।
☸ इसके बाद चौकी पर हल्दी से चौक बनाकर उसपर माँ लक्ष्मी की प्रतिमा रख दें।
☸ माँ लक्ष्मी के दाहिनें तरफ गणेश जी की भी प्रतिमा/मूर्ति रखें।
☸ तत्पश्चात् थाली में हल्दी, कुमकुम और अक्षत रखें और साथ ही दीप भी प्रज्जवलित करें।

माता लक्ष्मी पूजन विधिः-

☸ सर्वप्रथम कलश को तिलक लगाकर पूजा आरम्भ करें।
☸ तत्पश्चात् हाथ में फूल और चावल लेकर माँ लक्ष्मी का ध्यान करें।
☸ ध्यान के बाद भगवान श्री गणेश और माता लक्ष्मी को फूल और अक्षत अर्पण करें।
☸ तत्पश्चात् दोनों मूर्तियों को दूध, दही, शहद, तुलसी और गंगाजल के मिश्रण से स्नान कराएं।
☸ इसके बाद स्वच्छ जल से स्नान कराके पुनः चौकी पर विराजित कर दें।
☸ स्नान कराने के पश्चात् उन्हें (श्री गणेश और माँ लक्ष्मी) टीका लगाएं और फूलो की माला पहनाएं।
☸ इसके बाद परिवार के सभी लोग मिलकर गणेश जी और लक्ष्मी की कथा सुनें और माँ लक्ष्मी की आरती उतारें।

दीपावली की शुभ तिथि एवं मुहूर्तः-

शुभ तिथिः– 24 अक्टूबर 2022
लक्ष्मी पूजा मुहूर्तः– शाम 06ः53 से रात्रि 08ः16 बजे तक।
पूजा की कुल अवधिः– 01 घण्टा 23 मिनट।

दीपावली का महत्वः

दीपावली सभी धर्मों के लोगों के लिए खुशी का त्यौहार है। दीपावली का उद्देश्य अंधेरे से उजाले की ओर जाना है, दीपावली का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने के लिए मनाया जाता है, दीपावली के बहाने ही सभी लोग अपने घर की साफ-सफाई एवं रंग पेंट कर लेते है, दीपावली के दिन घरों को मोमबत्ती, मिट्टी के दीपक और विद्युत बल्बों आदि से सजाया जाता है। सभी लोग नये कपड़े पहनते है, पटाखें एवं फूल-झड़ियां जलाते है, एक दूसरे को मिठाई का आदान-प्रदान करते है, इस प्रकार दीपावली का त्यौहार सभी के लिए खुशियां लाता है।
हम सभी के जीवन में दीपावली का यह महत्व है कि यह हमें जीवन की एक नई दिशा की ओर ले जाती है, यह प्रकाश का त्यौहार है, यह हमारे जीवन में प्रकाश के महत्व के अर्थ कों समझाता है, दीपावली वह पर्व है जो अंधेरे के बाद उजाले का प्रतिनिधित्व करता है।

सभी घर मे हो उजाला,
आये ना रात काली,
सभी घर में मने खुशिया,
सभी घर में हो दीपावली।

 

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