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नवग्रह पीड़ा निवारणार्थ यन्त्र-मन्त्र-रत्न एवं जड़ी धारण तथा व्यावसायिक वस्तुएँ की सामान्य जानकारी, नवग्रह पीड़ा (रोग)

नवग्रह पीड़ा निवारणार्थ यन्त्र-मन्त्र-रत्न एवं जड़ी धारण तथा व्यावसायिक वस्तुएँ की सामान्य जानकारी, नवग्रह पीड़ा (रोग) 1

सूर्य

पीड़ित सूर्य से होने वाले रोगः बुखार, कमजोरी, दिल का दौरा, पेट सम्बन्धित बीमारियाँ, त्वचारोग, चोट लगना, दौरे लगना, दौरे पड़ना, हिस्टीरिया इत्यादि
सूर्य वैदिक जप मंत्रः- ओम् आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयत्रमृतं मत्र्य च। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो यति भुवनानि पश्यन्।।
सूर्य तांत्रिक मंत्रः ओम् ह्नीं ह्नीं सूर्याय नमः।
जप संख्याः- 7 हजार लेकिन कलयुग मे जप संख्या 28 हजार
सूर्य मध्य भाग्य, वर्तुल मण्डल, अंगुल 12, कलिंग देश, कश्यप गोत्र, रक्त वर्ण, सिंह राशि का स्वामी है। इसका वाहन सप्ताश्व एवं समिधा मदार है।
दान हेतु वस्तुएंः- माणिक, सोना, तांबा, गेहूँ, घी, गुड़, केसर, लाल वस्त्र, मूँगा लाल, लाल गौ एवं लाल चंदन।
दान का शुभ समयः- रविवार के दिन सूर्योदय के समय
धारण रत्नः माणिक 3 या 4 रती का।
उपरत्नः- तामड़ा या कण्टकिज धारण करें यदि यह उपरत्न न हो तो सूर्य का यन्त्र अथवा बेल वृक्ष की जड़ गले या बाहु में धारण करें।
सूर्य यन्त्र
6 1 8
7 5 3
2 9 4

कार्य व्यवसाय का क्षेत्रः– राज्य प्रशासनिक कार्य, इमारती लकड़ी, सोना रुई एवं अनाज अर्पित करें तथा रविवार व्रत कथा पढ़े।

चन्द्रमा

पीड़ित चन्द्रमा से होने वाले रोगः- पेट की बीमारियाँ, अनिद्रा, कफ सम्बन्धी, पाचन रोग, बुखार, गठिया, मानसिक असंतुलन, जलघात एवं जानवरों का हमला इत्यादि।
चन्द्रमा वैदिक जप मंत्रः- ओम् इमं देवा असपत्न र्ठ. सुवध्वं महते क्षत्राय महते जानराज्यायेन्दस्येन्द्रियाय। इमममुष्यै पुत्रम मुस्यै विष एष वोैमीराजा सोमोडस्माकं ब्रह्मणाना् र्ठ राजा
चन्द्रमा तांत्रिक मंत्रः- ओम् ऐं ह्नीं सोमाय नमः 
जप संख्याः- 11 हजार लेकिन कलयुग मे जपसंख्या 44 हजार
चन्द्रमाः- अग्निकोण, चतुरस्त्र मण्डल, अंगुल 4, यमुना तटवर्ती देश, अत्रि गोत्र, श्वेत कर्ण, कर्क राशि का स्वामी है। इसका वाहन हिरण एवं समिधा पलास है।
दान हेतु वस्तुएःमोती सोना चाँदी, चावल, मिश्री, दही, सफेद वस्त्र, सफेद फूल, शंख, कपूर, बांस की डलिया, सफेद बैल एवं सफंद चंदन इत्यादि।
धारण हेतु रत्नः 4-5 रत्ती का मोती।
उपरत्नः- गोदन्ती या चन्द्रकान्त मणि धारण करे अथवा चन्द्रमा का यंत्र तथा खिरनी की जड़ को सफेद वस्त्र मे बाँधकर बाहु या गले मे धारण करें।
चन्द्रमा यंत्र 
7 2 9
8 6 4
3 10 5

कार्य व्यवसाय का क्षेत्रः- जल से सम्बन्धित व्यवसाय, कांच के बने सामान तथा सोमवार का व्रत करें।

मंगल

पीड़ित मंगल से होने वाले रोगः- गले की बीमारी, कण्ठ रोग, फोड़ा, फुन्सी, रक्त विकार, गठिया के बुखार, आँखो की बीमारी, दौरे पड़ना, सिर दर्द तथा रक्त सम्बन्धी रोग इत्यादि।
मंगल वैदिक जप मंत्रः-ओम् अग्निर्मूद्र्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम्। अपा र्ठ. रेता र्ठ. सि जिन्वति।।
मंगल तांत्रिक मंत्रः- ओम् ह्नीं श्रीं मगलायं नमः।
जप संख्याः- 10 हजार लेकिन कलयुग मे जप संख्या 40 हजार
मंगलः- दक्षिण दिशा, त्रिकोण मण्डल, अंगुल 3, अवन्ति देश, भारद्वाज गोत्र, रक्त वर्ण। मेष व वृश्चिक राशि का स्वामी। इसका वाहन भेड़ा एवं समिधा खदिर (खैर) है।
दान हेतु वस्तुएंः- मूंगा, सोना, ताँबा, मसूर, गुड़, गेहूँ, घी, लाल कपड़ा, लाल फूल, कस्तूरी, केशर, लाल बैल तथा लाल चन्दन।
धारण हेतु रत्नः- मूँगा 6-7 रत्ती।
उपरत्नः- विद्रुम मणि या संगमूँगी अथवा अकीक एवं मंगल का यंत्र या अनन्तमूल वृक्ष की जड़ को लाल कपड़े में बाँधकर गले या बाहु में धारण करें।
मंगल यंत्र
8 3 10
9 7 5
4 11 16

कार्य व्यवसाय का क्षेत्रः- औषधि, घड़ी, ईंट, गेहूँ, भूमि आदि।                                               

                                                 बुध

पीड़ित बुध से होने वाले रोगः दिमागी फितूर, नाक-कान की बीमारी, वात सम्बन्धी बीमारी, पित्तभेद, चर्म रोग, कोढ़, विष तथा ऊँचाइयों से गिरना इत्यादि।
बुध वैदिक जप मंत्रः- ओम् उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते स र्ठ. सृजेथामायं च। अस्मिन्त्सधस्थे-अध्युत्तरस्मिन्। विश्वे देवा यजमानश्च सीदत।।
बुध तांत्रिक मंत्रः- ओम् ऐं श्रीं श्रीं बुधाय नमः।
जप संख्याः- 9 हजार लेकिन कलयुग मे जप संख्या 36 हजार।
बुधः- ईशान कोण, बाणाकार मण्डल, अंगुल 4, मगध देश, अग्नि गोत्र, हरित वर्ण। मिथुन व कन्या राशि का स्वामी है। इसका वाहन सिंह एवं समिधा अपामार्ग है।
दान हेतु वस्तुएंः- पन्ना, सोना, काँसे का बर्तन, मूँग, खाँड़, घी, हरा कपड़ा, सब फूल, हाथी दाँत, कपूर, शस्त्र तथा फल।
धारण हेतु रत्नः- पन्ना 3 या 4 रत्ती।
उपरत्नः- हरा मरगज अथवा बुध-यन्त्र या विधारा की जड़ हरे डोरे या कपड़े में बाँधकर गले या बाहु में धारण करें।
बुध यंत्र
9 4 11
10 8 6
5 12 7

कार्य व्यवसाय का क्षेत्रः- मूँग, रेशम, सूत, कापी, लेखन सामग्री (स्टेशनरी)।

                                                  गुरु

पीड़ित गुरु से होने वाले रोगः- पेट में गैस रहना, बुखार, कान से मवाद गिरना तथा वायुयान दुर्घटना इत्यादि।
गुरु वैदिक जप मंत्रः- ओम् बृहस्पते Sअति यदर्योैअर्हा-द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। यदीदयच्छ वस Sऋतप्रजा तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।।
गुरु तांत्रिक मंत्रः- ओम् ऐं क्लीं बृहस्पतये नमः।
जप संख्याः- 19 हजार लेकिन कलयुग मे जप संख्या 76 हजार।
गुरुः- उत्तर दिशा, दीर्घ चतुरस्त्र मण्डल, अंगुल 6, सिन्ध देश, अंगिरा गोत्र, पीत वर्ण। धनु व मीन राशि का स्वामी है। इसका वाहन हाथी एवं समिधा पीपल है।
दान हेतु वस्तुएंः पुखराज, सोना, काँसा, चने की दाल, खाँड़, घी, पीला फूल, पीला कपड़ा, हल्दी, पुस्तक, घोड़ा, भूमि तथा पीला फल।
धारण हेतु रत्नः- पुखराज 5-6 रत्ती।
उपरत्नः- सुनेहला धारण करें अथवा बृहस्पति का यन्त्र या बभनेठी (भारंगी) की जड़ पीले कपड़े में बाँधकर गले या बाहु में धारण करें।
गुरु यंत्र
10 5 12
11 9 7
6 13 8

कार्य व्यवसाय का क्षेत्रः- किराना, वकालत, ब्याज पर पैसा।

                                                 शुक्र

पीड़ित शुक्र से होने वाले रोगः- कोढ़, वात-पित्त-कफ सम्बन्धी, वीर्य विकार, नेत्र पीड़ा, मूत्र पीड़ा, गुदा रोग, गर्भाशय की कमजोरी, पेट का दर्द तथा अण्डकोश की सूजन इत्यादि।
शुक्र वैदिक जप मंत्रः- ओम् अत्रात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिवत् क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानर्ठ. शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोैमृतं मधु।।
शुक्र तांत्रिक मंत्रः- ओम् ह्नीं श्रीं शुक्राय नमः।
जप संख्याः- 16 हजार लेकिन कलयुग मे जप संख्या 64 हजार।
शुक्रः- पूर्व दिशा, षट्कोण मण्डल, अंगुल 9, भोजकट देश, भृगु गोत्र, श्वेत वर्ण। वृष तुला राशि का स्वामी है। इसका वाहन अश्व एवं समिधा उदुम्बर (गूलर) है।
दान हेतु वस्तुएंः- हीरा, सोना, चाँदी, मिश्री, दूध, चावल, सफेद एवं चिन्हित कपड़ा, सफेद फूल, सुगन्ध, दही, सफेद घोड़ा, भूमि तथा सफेद चन्दन।
धारण हेतु रत्नः- हीरा 4-5 रत्ती।
उपरत्नः- सफेद पुखराज, स्फटिक या जरकन धारण करें। अथवा शुक्र का यन्त्र या मजीठ की जड़ को सफेद कपड़े में बाँधकर गले या बाहु में धारण करें।
शुक्र यंत्र
11 6 13
12 10 8
7 14 9

कार्य व्यवसाय का क्षेत्रः- प्रसाधन सामग्री, फूल, वाहनों की खरीद-बिक्री।

                                                  शनि

पीड़ित शनि से होने वाले रोगः- पेट और पैरों की बीमारियां, गैस, पेड़ से गिरना, पत्थर से चोट लगना, वाहन दुर्घटना इत्यादि।
शनि वैदिक जप मंत्रः- ओम् शन्नों देवीरभिष्टय Sआपो भवन्तु पीतये। शं यो रभिस़्वन्तु नः।।
शनि तांत्रिक मंत्रः- ओम् ऐं ह्नीं श्रीं शनैश्चराय नमः।
जप संख्याः- 23 हजार लेकिन कलयुग मे जप संख्या 92 हजार।
शनिः- पश्चिम दिशा, धनुषाकार मण्डल, अंगुल 2, सौराष्ट्र देश, कश्यप गोत्र, कृष्ण वर्ण। मकर कुम्भ राशि का स्वामी है। इसका वाहन गीध एवं समिधा शमी है।
दान हेतु वस्तुएंः- नीलम, सोना, लोहा, काला उड़द, काली तिल, कुलथी, तेल, काला कपड़ा, कस्तूरी, महिषी, काली गौ तथा काला खडाऊ (जूता-चप्पल इत्यादि)
धारण हेतु रत्नः- नीलम 4-5 रत्ती।
उपरत्नः- कटैला, काले घोड़े के नाल या नाव के कांटे की अँगूठी, शनि यंत्र काले कपड़े या धागे में बाँधकर गले या बाहु में धारण करें।
शनि यंत्र
12 7 14
13 11 9
8 15 10
कार्य व्यवसाय का क्षेत्रः- लकड़ी, लोहा, जूता, कोयला।

                                            राहु

पीड़ित राहु से होने वाले रोगः दिल का दौरा, दिल की कमजोरी, जहर (विष) देना व लेना, आत्म-हत्या पाचन संस्थान के रोग इत्यादि।
राहु वैदिक जप मंत्रःओम् कयानश्चित्र Sआभुवदूती सदावृध: सखा । कयाशचिष्ठयौवृता।।
राहु तांत्रिक मंत्रः- ओम्  ह्नीं राहवे नमः।
जप संख्याः- 18 हजार लेकिन कलयुग मे जप संख्या 72 हजार
राहुः- नैऋत्य कोध, सूर्पाकार मण्डल, अंगुल 12, राठीनापुर (मलय) देश, पैठीनस गोत्र, कृष्ण वर्ण। कन्या राशि का स्वामी। इसका वाहन व्याघ्र एवं समिधा दूर्वा है।
दान हेतु वस्तुएंः- गोमेद, सोेना, रत्न, सीसा, तिल, सरसों का तेल, सप्त धान्य, उरद, कम्बल, नीला कपड़ा, तलवार, घोड़ा एवं सूप, काला फूल, लौह उपकरण, तिल भरा ताम्रपत्र।
धारण हेतु रत्नः- गोमेद 6-7 रत्ती
उपरत्नःतुरसावा धारण करें अथवा राहु का यन्त्र या सफेद चन्दन की जड़ काले कपड़े मे बाँधकर धारण करें।
राहु यंत्र
13 8 15
14 12 10
9 16 11
कार्य व्यवसाय का क्षेत्रः- तेल, अलसी, चना, हड्डी के सामान।

                                               केतु

पीड़ित केतु से होने वाले रोगः- घाव होना, दाँत का सड़ जाना, जल जाना और पसदायक सारी बिमारियाँ एवं गर्भपात केतु से ही होता है।
केतु वैदिक जप मंत्रः- ओम् केतुं कृण्वत्र केतवे मर्या अपेशसे। समुषद्धिरजायथाः।।
केतु तांत्रिक मंत्रः- ओम्  ऐं ह्नीं केतवे नमः।
जप संख्याः- 17 हजार लेकिन कलयुग मे जप संख्या 68 हजार
केतुः- वायव्य कोण, ध्वजाकार मण्डल, अंगुल 6, अन्तर्वेदी (कुश) देश, जैमिनी गोत्र, धूम्र वर्ण मीन राशि का स्वामी है। इसका वाहन कबूतर एवं समिधा शमी या दूवा है।
दान हेतु वस्तुएंः- लहसुनिया, सोना, लोहा, तिल, सप्तधान्य, काला कपड़ा, धूमिल तेल, धूमिल फूल, नारियल, कम्बल, बकरा।
धारण हेतु रत्नः- लहसुनिया 7-9 रत्ती।
उपरत्नः- गोदन्ती या लाजावर्त धारण करें अथवा केतु का यन्त्र या असगन्ध वृक्ष की जड़ को काले कपड़े में बाँधकर गले या भुजा में धारण करें।
केतु यंत्र
14 9 16
15 13 11
10 17 12
कार्य व्यवसाय का क्षेत्रः- अभ्रक, चावल, फिल्म उद्योग, राजनीति।

 

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