हिन्दू धर्म में अन्य प्रजातियों की भाँति नाग प्रजाति का भी उल्लेख मिलता है। नाग प्रजाति ने ही सर्वप्रथम शिवलिंग की पूजा अर्चना का प्रारम्भ किया था। नाग प्रजाति भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय है और भगवान शिव के गले में सदैव वासुकी नामक सांप लिपटा रहता है। अतः यह पूर्ण रूप से माना जा सकता है कि सनातन धर्म में नागों का विशेष महत्व था तथा सनातन धर्म मे नागों का पर्व नागपंचमी मनाया जाता है।
हिन्दु महाकाव्य में पाँच महाबलशाली और भयंकर विषधारी नागों का उल्लेख मिलता है जो सिधे भगवान को चुनौति देते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इन नागों ने अपने बल के मत में चर होकर भगवान को परास्त करने का साहस किया था।
पांच महाशक्तिशाली नागों का उल्लेख इस प्रकार हैं
कालिया नाग
हम सभी कालिया नाग और भगवान कृष्ण के युद्ध से भति-भांति परिचित है। जब कालिया नाग ने यमुना को अपना स्थान बना लिया तो उसके विष के कारण पूरी यमुना नदी विषैली हो जाती है तब इस परेशानी को सुलझाने के लिए भगवान कृष्ण ने अपने वाल्यवस्था में यमुना के अंदर प्रवेश किया और कालिया को पराजित करके पूरे नदी को स्वच्छ किये।
तक्षक नाग
तक्षक नाग को ऋषि कश्यम का पुत्र माना जाता है। कई मान्यताओं के अनुसार पांडु पुत्र अर्जुन ने अपने वाण से तक्षक नाग के पुरे परिवार को जलाकर मार डाला तब तक तक्षक नाग बदले की भावना से बार-बार अर्जुन को मारने का प्रयास किया करता था परन्तु हर बार भी कृष्ण उनकी रक्षा करते थे। तक्षक नाग एकमात्र ऐसा नाग हैं जो नागलोक में रहकर पाताल लोक में निवास करते है।
कर्काेटक नाग
कर्काेटक नाग भगवान भोलेनाथ के गण थे, तथा भगवान शिव के परम भक्त भी थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर जब शिव जी ने उनसे वरदान मांगने के लिए कहा तब कर्काेटक नाग ने कहा मुझे आपके गले में स्थान चाहिए तब शिवजी ने इस वरदान को पूर्ण नहीं किया क्योंकि वासुकी नाग पहले से ही उनके गला में लिपटा रहता था और शिवजी ने उनके भक्ति से प्रसन्न होकर उनको अपने शिवलिंग पर स्थान दिया । अर्थात भगवान शिव के गले पर लिपटने वाला नाग एवं शिवलिंग पर उपस्थित नाश किन-भिन्न है।
शेषनाग
माता कद्र और ऋषि कश्य के बड़े पुत्र थे साथ ही भगवान विष्णु के परम भक्त भी थे। उन्होंने अपने नाग परिवार को त्याग कर गंधमादन पर्वत पर भगवान विष्णु की तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रहमा जी ने उन्हें उनके फन पर सृष्टि का भार उठाने का आशीर्वाद दिया।
वासुकी नाग
वासुकी नाग भगवान शिव को अत्यन्त प्रिय है तथा वासुकी शेषनाग के भाई भी समुद्र मंथन के दौरान वासुकी नाग को ही रस्सी के रूप में उपयोग किया गया था।